मंजरी प्रेम में जब बलिया के वीर ने चीर दी शिला
मंजरी प्रेम में जब बलिया के वीर ने चीर दी शिला सबहेड-- प्रेम का असली मायने सिखाता है शिलाखं
मंजरी प्रेम में जब बलिया के वीर ने चीर दी शिला
सबहेड-- प्रेम का असली मायने सिखाता है शिलाखंड, पर्यटक होते हैं आकर्षित
गोवर्धन पूजा:::::::
- हर वर्ष दीपावली के एक दिन बाद विराट गोवर्धन पूजा पर लगता है मेला
- राबर्ट्सगंज से सात किमी की दूरी पर आज भी खड़ा है खंडित पत्थर जागरण संवाददाता, सोनभद्र : दुनिया के वीरों के इतिहास में वीर लोरिक का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। विभिन्न आख्यानों में वीर लोरिक की कहानी अत्यंत प्रेरक और वीरोचित सुनाई देती है। इसी में शामिल है सोनभद्र के मंजरी से वीर लोरिक का प्रेम-प्रसंग। उसके प्रेम में वीर लोरिक बलिया जिले से सोनभद्र पहुंचे और धूमधाम से शादी किए। मान्यता है कि मंजरी के कहने पर लोरिक ने अपनी तलवार से शिला के एक बड़े भाग को दो टुकड़े में बांट दिया। यह शिला आज भी दो खंडों में विभाजित दिखाई देती है। इसे देखने के लिए लोग बहुत-बहुत दूर से आते हैं। तब से लेकर आज तक इस शिला के पास गोवर्धन पूजा के दिन भव्य मेला लगता है। राबर्ट्सगंज शहर से सात किमी दूर सोन इको प्वाइंट के पास यह खंडित पत्थर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
कल होगा पूजन, कोविड-19 का रखा जाएगा ख्याल
हर वर्ष दीपावली के एक दिन बार गोवर्धन पूजा होता है। यहां दंगल आदि का आयोजन होता है। वाराणसी, बलिया, आजमगढ़, प्रयागराज सहित कई जनपदों के पहलवान आते हैं। इस बार कोविड-19 की वजह से बड़ा आयोजन तो नहीं होगा, लेकिन पूजन का भव्य आयोजन रखा गया है। आयोजन समिति से जुड़े रोशन लाल यादव बताते हैं कि इस बार का आयोजन 16 नवंबर को होगा। इसी गोवर्धन पूजा के मौके पर यहां एक साल के मौसम की भविष्यवाणी भी की जाती है। 200 किमी दूर आया था प्रेम प्रस्ताव
अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति जवाबदेह यह खंडित पत्थर बलिया के वीर लोरिक व अगोरी की मंजरी के अखंड प्रेम की निशानी के रुप में खड़ा है। बताया जाता है कि जिस समय बलिया जिले के गौरा के रहने वाले वीर लोरिक ने करीब 200 किमी दूर सोनभद्र के अगोरी स्टेट की रहने वाली मंजरी को अपना प्रेम प्रस्ताव दिया, तो मंजरी मन ही मन खुश हो गईं थी। मंजरी को देखने के बाद वीर लोरिक ने सोच लिया था कि वो मंजरी के अलावा किसी से ब्याह नहीं करेंगे, उधर मंजरी के खयालों में भी दिन-रात केवल लोरिक का चेहरा और बलशाली भुजाएं थीं। रोशन लाल यादव बताते हैं कि इधर, मंजरी पर अगोरी के राजा मुलागत की निगाह थी। राजा के बारे में कहा जाता है कि राजा काफी अत्याचारी था। जब मंजरी और लोरिक के प्यार के बारे में मंजरी के पिता को पता चला तो वो भयभीत हो गए। क्योंकि वह मुलागत के कृत्यों से पूरी तरह से वाकिफ थे। ऐसे में मंजरी के पिता ने लोरिक से तत्काल संपर्क किया और मंजरी से जिसका घर का नाम चंदा था। तत्काल विवाह करने को कहा। 85 मन की थी लोरिक की तलवार
मां काली के भक्त वीर लोरिक की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी तलवार (तेगा) 85 मन की थी। युद्ध में वे अकेले हजारों के बराबर थे। लोरिक को पता था कि बिना मुलागत को हराये वह मंजरी को विदा नहीं करा पाएंगे। युद्ध की तैयारी के साथ बलिया से बरात सोन नदी तट तक आ गई। राजा मुलागत भी तमाम उपाय किये कि बारात सोन नद को न पार कर सके, कितु बारात नदी पार कर अगोरी किले तक जा पहुंची। बारात के यहां तक पहुंचने के पहले भीषण युद्ध हुआ। मंजरी को विदा कराकर ले जाते समय मंजरी के कहने पर वीर लोरिक ने अपने तेगा से चट्टान को मध्य से चीर दिया था। उसी समय से लोरिक और मंजरी के अखंड प्रेम निशानी यह शिलाखंड बन गया।
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