Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    खेत में गेहूं की बुवाई में देरी अब किसानों के लिए पड़ेगी भारी

    By MUKESH CHANDRA SRIVASTAVAEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Sat, 08 Nov 2025 05:20 PM (IST)

    अक्टूबर में हुई बारिश से धान की कटाई में देरी हुई है, जिसका असर गेहूं की बुवाई पर पड़ेगा। इरी ने किसानों को 20 नवंबर तक गेहूं की बुवाई करने और जीरो टिलेज तकनीक अपनाने का सुझाव दिया है। समय पर बुवाई से 69% अधिक पैदावार हो सकती है। उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है, और किसानों को उन्नत किस्मों का उपयोग करना चाहिए।

    Hero Image

    पकने के समय अधिक गर्मी भी शुरू हो जाएगी, जिसके कारण दाने भी सिकुड़ सकते हैं।

    मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, सोनभद्र। इस साल अक्टूबर की शुरूआत व अंतिम सप्ताह में हुई बारिश के कारण धान की कटाई में देरी हो रही है। हालांकि अब यह देरी भारी पड़ने वाली है। कारण कि धान की कटाई में एक दिन की देरी हाेती है तो गेंहू की बोआई 0.8 दिन की देरी मानी जाएगी। अगर गेंहू की बोआई में देरी होगी तो उसके पकने के समय अधिक गर्मी भी शुरू हो जाएगी, जिसके कारण दाने भी सिकुड़ सकते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ऐसे में जरूरी है कि हरहाल में 20 नवंबर तक गेहूं की खेती कर ली जाए। ताकि फसल तैयार हो तो उसे पर्याप्त ठंडी का मौसम भी मिल सके। वहीं अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (सार्क) ने किसानों को जीरो टिलेज गेंहू बुआई का सुझाव दिया है। इसमें खेत को जोतने की जरूरत, उपज भी बेहतर होती है। इससे मजदूरी व ईंधन की भी बचत होती है। ज़ीरो टिलेज से किसान अब लंबे समय वाली, अधिक उपज देने वाली गेंहू की किस्में भी अपना सकते हैं।

    बदलते जलवायु परिदृश्य में इस विधि से गेंहू की बोवाई पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। अब देर सर्दियों में तापमान अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ने लगता है, जिससे देर से बोई गई फसल को गर्मी का झटका लगता है और दानों का भराव प्रभावित होता है। समय पर बुवाई से फसल के प्रमुख विकास चरण ठंडी सर्दियों के अनुकूल वातावरण में पूरे होते हैं, जिससे उच्च उपज और बेहतर दाने की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

     

    सही समय पर बोआई से ही बिना किसी अतिरिक्त लागत के 69 प्रतिशत अधिक पैदावार

    उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गेंहू उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल गेंहू उत्पादन का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा देता है। गेंहू की खेती राज्य के लाखों किसानों की आजीविका का आधार है। गेंहू बोने का सबसे अच्छा समय एक से 20 नवंबर तक है। इस अवधि में बोए गए गेंहू को सर्दी का पूरा फायदा मिलता है जिससे अधिक फुटाव होता है और दाने भी बेहतर विकसित होते हैं। लेकिन अगर बोवाई 20 नवंबर के बाद होती है, तो प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन 40-50 किलोग्राम पैदावार की हानि होती है।

    अध्ययनों से पता चला है कि केवल समय पर बोवाई सुनिश्चित करके ही किसान किसी अतिरिक्त लागत के बिना 69 प्रतिशत तक ज्यादा पैदावार पा सकते हैं। धान के साथ ही गेंहू पर भी इरी के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र कई नवाचारों पर काम कर रहा है। खासकर विश्व बैंक समर्थित यूपीएग्रीज परियोजना के तहत धान की सीधी बोआई (डीएसआर) पर। इससे धान की कटाई 7-10 दिन पहले हो जाती है, साथ ही पानी, मजदूरी और डीजल की भी बचत होती है। इसी प्रकार यह संस्थान ज़ीरो टिलेज गेंहू पर भी कार्य कर रहा है।

    प्रदेश में 320-340 लाख टन गेंहू की पैदावार
    उन्नत किस्में: छोटी और मध्यम अवधि की धान की किस्में (इनब्रेड/हाइब्रिड) और ताप सहनशील गेंहू की किस्मों को अपनाना ज़रूरी है। इन कृषि उपायों को अपनाकर प्रदेश के कई जिलों में किसानों को बेहतर पैदावार, कम लागत और अच्छी मिट्टी की स्थिति का लाभ मिल रहा है। आज राज्य में लगभग 97 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेंहू बोया जाता है, जिससे हर साल 320-340 लाख टन गेंहू पैदा होता है। आने वाले वर्षों में यह उत्पादन 450-500 लाख टन तक बढ़ाया जा सकता है।

    धान समय पर काटें, खेत तुरंत तैयार करें, इसमें देरी न करें। हर एक दिन जो आप बचाते हैं, वही आपकी फसल की पैदावार और दाने की गुणवत्ता बढ़ाता है और आमदनी में इजाफा करता है। इसके साथ ही 20 नवंबर से पहले गेंहू की बोआई कर लें। धान की कटाई का गेंहू की बुवाई से सीधा संबंध है। एक नवंबर के बाद धान की कटाई में हर एक दिन की देरी से गेंहू की बुवाई में 0.8 दिन की देरी होती है। देर से बुवाई होने पर गेहूं की फसल पकते समय अधिक गर्मी का सामना करती है, जिससे दाने सिकुड़ जाते हैं। पैदावार कम हो जाती है और मंडी में दाम भी कम मिलते हैं। इस लिए किसान तत्काल ही धान कटाई व गेंहू बोआई में जुट जाए।

    -

    डा. सुधांशु सिंह, निदेशक, दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (इरी)