वासंतिक नवरात्र---चतुर्थ श्रृंगार गौरी
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वासंतिक नवरात्र
शक्ति आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र में नवगौरी पूजा-आराधना के क्रम में चौथे दिन 21 मार्च, बुधवार को श्रृंगार गौरी के दर्शन-पूजन की मान्यता है। इनका मंदिर ज्ञानवापी परिसर (मस्जिद का पार्श्व भाग) में है। नौ दुर्गा पूजन के क्रम में चौथे दिन कुष्मांडा देवी यानी दुर्गाजी का दर्शन किया जाता है। इनका मंदिर दुर्गाकुंड के पार्श्व में है।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार वासंतिक नवरात्र के चतुर्थ दिन भक्तों के कल्याणार्थ परांबा जगदंबिका श्रृंगार गौरी के रूप में अवतरित हुई। इस दिन भगवती श्रृंगार गौरी के दर्शन से राजपद में व्याप्त बाधाओं का निराकरण होता है और मनोकामना सद्य: पूर्ण होती है। भगवती दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप का नाम कुष्मांडा है। अपनी मंद मुस्कान द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हे कुष्मांडा देवी कहा गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार व्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति है। इनकी आठ भुजाएं है। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात है। इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र व गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को लेने वाली जपमाला है।

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