सोनभद्र में तीन दिनों तक थकान और चुनौती के बीच पत्थरों के मलबे में जिंदगी की चली तलाश
सोनभद्र में तीन दिनों तक पत्थरों के मलबे में जिंदगी की तलाश जारी रही। बचाव दल ने थकाऊ और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। मलबे की गहराई और पत्थरों के वजन के कारण बचाव कार्य मुश्किल था, फिर भी जिंदगी को बचाने की हर संभव कोशिश की गई।

मौसम की चुनौती और पत्थर के भारी मलबे के बीच सिर्फ एक ही लक्ष्य था किसी न किसी रूप में जिंदगी की तलाश।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र। बिल्ली-मारकुंडी पत्थर खदान में लगभग तीन दिनों तक 68 घंटे लंबा रेस्क्यू अभियान मानव धैर्य, तकनीक और साहस का अनोखा उदाहरण रहा। एनडीआरएफ की दो टीम, जिसमें 35-35 सदस्य आठ-आठ घंटे की शिफ्ट में लगातार काम कर फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया। हालांकि इस दौरान कोई भी व्यक्ति जिंदा नहीं मिला। लंबे अभियान में जवानों की थकान, मौसम की चुनौती और पत्थर के भारी मलबे के बीच सिर्फ एक ही लक्ष्य था किसी न किसी रूप में जिंदगी की तलाश।
68 घंटे तक चले निरंतर प्रयास के दौरान टीमों ने बारी-बारी से शिफ्ट बदलते हुए काम किया, ताकि किसी भी समय खोज का प्रयास धीमा न पड़े। रात के समय भी लाइटिंग सिस्टम, जनरेटर और विशेष उपकरणों के सहारे अभियान जारी रहा। प्रशासनिक अफसरों ने भी मौके पर डटे रहकर पूरे आपरेशन की निगरानी की और हर घंटा प्रगति की समीक्षा की।
अभियान की शुरुआत 15 नवंबर की शाम छह बजे से शुरू की गयी। विदित हो कि ड्रिलिंग के दौरान खदान का बड़ा चट्टान अचानक खिसककर नीचे गिर पड़ीं। कुछ लोगों के फंसे होने की आशंका ने पूरे प्रशासन को अलर्ट कर दिया। मौके पर एनडीआरएफ की विशेष टीमें पहुंचीं और तुरंत आपरेशन शुरू कर दिया। अभियान को सुरक्षित और तेज बनाने के लिए प्रशिक्षित डाग स्क्वाड भी लगाया गया। खास प्रशिक्षण वाले कुत्तों ने पत्थर, धूल और संकरे रास्तों के बीच जाकर लाइफ डिटेक्शन की कोशिश की और टीमों को संकेत दिए कि किन क्षेत्रों में ज्यादा खोज की संभावना है।
भारी व खिसकते पत्थरों के बीच अभियान बड़ी चुनौती
रेस्क्यू टीमों के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारी और लगातार खिसकते पत्थरों का ढेर था। पत्थर का पहाड़ इतना बड़े स्तर पर जमा था कि दो बार पूरा मलबा पलट कर हटाना पड़ा। हर बार यह प्रक्रिया जोखिम भरी थी, क्योंकि मलबा हटाते समय कोई भी ढीली चट्टान नीचे आ सकती थी। इसके बावजूद जवानों ने सुरक्षा उपकरणों और मशीनों की मदद से बेहद सतर्कता के साथ कार्य जारी रखा। कई मौकों पर टीम के सदस्यों ने एक-दूसरे की जान बचाते हुए आगे बढ़कर खतरनाक हिस्सों को सुरक्षित किया।
अंतिम दिन मीडिया को मौके पर बुलाया गया
अभियान की पारदर्शिता और स्थिति की गंभीरता को समझते हुए प्रशासन ने मीडिया को भी अंतिम दिन मौके पर घटनास्थल का प्रत्यक्ष निरीक्षण कराया। मीडिया को बुलाकर अभियान के वास्तविक हालात, रेस्क्यू की तकनीकी कठिनाइयां और टीमों के प्रयास को नजदीक से दिखाया गया। इसका उद्देश्य यह था कि आम जनता तक सही और तथ्यपूर्ण जानकारी पहुंचे तथा किसी भी तरह की अफवाहों पर रोक लग सके।
खदान का मलबा हटाकर जीवन की तलाशा चुनौतीपूर्ण था। एनडीआरएफ के 70 सदस्य दो टीम में लगातार 15 नवंबर की शाम से काम करते रहे। इस दौरान डाग स्क्वाड का भी प्रयोग जीवन के संकेत को खोजने के लिए किया गया।
- नवीन शर्मा, उप कमांडेंट एनडीआरएफ।

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