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    सोनभद्र की सियासत में एक दशक तक रही नक्सलियों की दखल, चुनाव में जारी किए जाते थे फरमान; अब खत्म हुआ खौफ

    सोनभद्र की सियासत में कभी नक्सलियों की खुलेआम दखल थी। उनकी दहशत का असर यह था कि उनके एक बुलावे पर ग्रामीण बैठक के लिए इकट्ठा होते थे फिर उनकी फरमान सुनते थे। छह इंच छोटा करने और सरेआम गोली मारने वाले नक्सली अपनी बंदूक के बल पर लोगों से चुनाव बहिष्कार या किसी के पक्ष में मतदान का फरमान जारी करते थे।

    By julfequar haider khan Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 20 May 2024 01:47 PM (IST)
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    सोनभद्र की सियासत में एक दशक तक रही नक्सलियों की दखल

    संवाद सहयोगी, सोनभद्र। जनपद की सियासत में कभी नक्सलियों की खुलेआम दखल थी। उनकी दहशत का असर यह था कि उनके एक बुलावे पर ग्रामीण बैठक के लिए इकट्ठा होते थे, फिर उनकी फरमान सुनते थे। छह इंच छोटा करने और सरेआम गोली मारने वाले नक्सली अपनी बंदूक के बल पर लोगों से चुनाव बहिष्कार या किसी के पक्ष में मतदान का फरमान जारी करते थे। उनका यह दबदबा वर्ष 1998 से वर्ष 2006 तक पूरी तरह से कायम था। नक्सलवाद समाप्त होने के बाद अब मतदाता न सिर्फ निर्भीक होकर मतदान करते हैं बल्कि लोकतंत्र को मजबूत करते हैं।

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    वर्ष 1998 के पूर्व से नक्सलियों ने जनपद के साथ ही चंदौली और मीरजापुर जिले के कुछ हिस्सों में अपनी पकड़ मजबूत करना शुरू कर दिया था। इसके बाद वर्ष 2000 के दशक में नक्सलियों का खौफ सिर चढ़कर बोलने लगा था। विजयगढ़ के युवराज की गोली मारकर हत्या, कई लोगों की पुलिस के मुखबिर होने की आशंका में छह इंच छोटा करने की घटना के बाद सोनांचल में नक्सलवाद चरम पर हो गया था।

    नक्सली करते थे फैसले

    स्थिति यह थी कि पुलिस की तमाम कांबिंग के बावजूद नक्सलियों का हस्तक्षेप विकास कार्यों से लेकर चुनावी फैसले को लेकर होने लगा था। नक्सली बसुहारी से सटे पोखरिया गांव के जंगल में हथियार चलाने का प्रशिक्षण कैंप चलाते थे और जनपद के युवाओं को अपनी टीम में जोड़ते थे।

    नक्सलियों ने वर्ष 2002 में विधानसभा चुनाव से पूर्व नगवां ब्लाक के बिहार सीमा से सटे कुछ गांवों में काला झंडा फहराया था और चुनाव बहिष्कार का फरमान जारी किया था। तब नक्सली संजय कोल, लालव्रत कोल, रामसजीवन ऊर्फ गुरुजी, मुन्ना विश्वकर्मा, अजीत कोल, गिरधर गोपाल और बिहार के कुछ नक्सली महुली, चरगड़ा, चौरा, खोड़ैला, पोखरिया क्षेत्र में संदेश देकर ग्रामीणों को इकट्ठा करते थे और चुनाव बहिष्कार का एलान करते थे। या फिर किसी एक दल के पक्ष में मतदान करने का फरमान सुनाते थे।

    मुन्ना विश्वकर्मा की गिरफ्तारी के बाद पूरी तरह से खत्म हो गईं नक्सल गतिविधियां

    जनपद में वर्ष 2012 से नक्सल गतिविधियां पूरी तरह से खत्म हो गईं। तब पुलिस ने कुख्यात नक्सली कमांडर मुन्ना विश्वकर्मा को गिरफ्तार किया था। इसके पूर्व कई कुख्यात नक्सली या तो गिरफ्तार हुए या फिर पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए। नक्सलियों ने सबसे ज्यादा नगवां ब्लाक के पहाड़ी क्षेत्रों और चोपन व कोन थाना क्षेत्र के बिहार व झारखंड की सीमा से सटे जंगलों को अपना ठिकाना बनाया था।

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