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    भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं छठी मइया

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 24 Oct 2017 10:16 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, बीना (सोनभद्र) : छठी मइया भगवान शंकर की बहू यानि कार्तिकेय की पत्नी हैं।

    भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं छठी मइया

    जागरण संवाददाता, बीना (सोनभद्र) : छठी मइया भगवान शंकर की बहू यानि कार्तिकेय की पत्नी हैं। लोक परम्परा में सूर्य व छठी मइया में भाई बहन का रिश्ता है। साक्ष्यों के आधार पर जापान से लेकर प्राचीन यूनान तक सूर्य की पूजा का प्रमाण मिलता है। आध्यात्मिक गुरु डा. लक्ष्मी नारायण चौबे महाराज ने बीना में प्रवचन के दौरान उक्त विचार व्यक्त किया। कहा कि पुराणों के अनुसार राजा प्रियमवद का कोई संतान नहीं था। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर राजा की पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी हुई खीर दी।

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    बताया कि जिसके प्रभाव से उन्हें पुत्र पैदा हुआ लेकिन वह मरा हुआ था। राजा प्रियमवद पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र के वियोग में वे प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति में छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाऊंगी। राजन तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी कल्याण के लिए प्रेरित करो। षष्ठी देवी के कथन पर राजा और रानी ने विधि-पूर्वक पूजन किया। उन्हें पुत्र की प्राप्ति भी हुई।

    उगते हुये व डूबते हुये सूर्य की पूजा का विधान सृष्टि काल से ही है। श्री चौबे ने बताया कि साक्ष्यों के आधार पर जापान से लेकर प्राचीन यूनान तक सूर्य की पूजा का प्रमाण मिलता है। उगते सूरज का देश जापान के लोग स्वयं को सूर्य पुत्र कहते हैं। तो यूनान में हिलियस के नाम से सूर्य की पूजा होती है। भारत में सूर्य मंदिरों का निर्माण काल पहली सदी से आरम्भ हुआ है। उसी काल में ईरान से मग नामक जातियां भारत में आकर मगध में बसीं। उन्हीं जातियों ने मगध में सूर्य की उपासना आरम्भ की।

    इसके पूर्व वैदिक काल में तीन संध्या की जाती थी। सुबह की संध्या गायत्री से की जाती थी, जिसकी देवी सविता थीं। इसलिए इन्हीं के मंत्र से अ‌र्घ्य दिया जाता है। गायत्री, सूर्य की उपासना वैदिक काल से ही रही है।

    त्रेता युग में राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए आदित्य हृदय स्त्रोत द्वारा सूर्य देव की उपासना की थी। भगवान राम के कुलदेव भी सूर्य भगवान ही है। महाभारत काल में कर्ण जो सूर्य पुत्र कहलाते हैं वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अ‌र्घ्य देते रहे। उसी काल में द्रौपदी ने पांडवों की विपतियों को दूर करने के लिए छठ व्रत किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने अपने कुष्ठ निवारण के लिए 12 माह में बारह जगहों पर सूर्य उपासना की थी। साथ ही जिस स्थान पर वे पूजन किये, वहां पर तालाब भी बनवाये। इसमें बनारस में भी एक तालाब लोलार्क है।