समरसता भारतीय संस्कृति का मूल तत्व
विश्व में शाश्वत शांति स्थिरता तथा समरसता की कुंजी गीता में मौजूद है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : विश्व में शाश्वत शांति, स्थिरता तथा समरसता की कुंजी गीता में मौजूद है। गीता से विश्व समुदाय रक्तरंजित, आतंकवाद व भेदभाव जैसी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकता है। यह बातें गीता जयंती के अवसर शुक्रवार को राबर्ट्सगंज के जयप्रभा मंडपम में गीता जयंती समारोह समिति द्वारा गीता में सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी पर वक्ताओं ने कही। कहा कि समरसता भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है।
सबसे ज्यादा बिखरा हुआ समाज है वर्तमान में: सदियों से हमारे ऋषि-मुनियों ने सामंजस्यपूर्ण श्रेष्ठ संस्कृति से युक्त समता मूलक समाज के लिए सतत प्रयास किया है, लेकिन दुर्भाग्यवश अपने गौरवशाली अतीत तथा अपने धर्मशास्त्र को विस्मृत कर देने के कारण आज सबसे ज्यादा बिखरा हुआ समाज है।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व नगरपालिका चेयरमैन अजय शेखर ने कहा कि गीता के अनुसार जीवनपथ पर चलने से ही समाज में समरसता आयेगी। विषय प्रवर्तन करते हुए अरुण चौबे ने कहा कि गीता से समाज में समरसता संभव है, क्योंकि गीता किसी मजहब, संप्रदाय का धर्मशास्त्र नहीं है यह मानवमात्र का धर्मशास्त्र है। गोष्ठी के संयोजक डा. वी सिंह ने कहा कि गीता के अनुसार प्रत्येक मनुष्य परमात्मा का विशुद्ध अंश है। सभी मानव परमात्मा के जितना ही पावन हैं, यह विचार हम आचरण में लाकर समरस समाज बना सकते हैं। पारसनाथ मिश्र, रामनाथ शिवेंद्र ने भी संबोधित किया। गोष्ठी को बालेश्वर यादव, प्रमोद मिश्रा, डा. ओमप्रकाश त्रिपाठी ने भी संबोधित किया। इस मौके पर विनोद कुमार श्रीवास्तव, पीयूष त्रिपाठी, पारसनाथ मिश्र, राणाप्रताप सिंह, इंद्रदेव मौर्य, भोलानाथ मिश्र, जगदीश पंथी, डा. कुसुमाकर आदि रहे।
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