बांस की टोकरी व रोटी-बेटी का है रिश्ता
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जरूरतें न्यूनतम होने के बावजूद आय के स्त्रोत बढ़ाने के लिए व्यक्ति आदिक ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जरूरतें न्यूनतम होने के बावजूद आय के स्त्रोत बढ़ाने के लिए व्यक्ति आदिकाल से नवीन मार्गों का सृजन करता आया है। परिणाम स्वरूप वर्तमान समय में साधनों की भरमार हुईं और लोग जगह-जगह व्यवस्थित होकर नित्य की जरूरतें पूरी करने में संलग्न हैं। इस क्रम में जनपद के वनों में रहने वाला आदिवासी समाज भी शामिल है, जो अपने जीवन की सभी आवश्यकताएं वनोपज से ही पूरी करता है। इसमें प्रमुख रूप से बांस उल्लेखनीय है। सबसे बड़ी बात है कि इसी बांस से निर्मित उत्पाद को बेचकर आदिवासी समाज सुबह-शाम की रोटी का जुगाड़ करता है। वहीं अपनी बेटियों की शादी के लिए इसी उत्पाद को मुख्य स्त्रोत मानता है।
वनवासियों के उभरते रहे हैं आक्रोश
जनपद की धरती पर वनों की अधिकता है। इसमें विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे बाहुल्यता में पाए जाते हैं। इसमें प्रमुख रूप से बांस भी पाया जाता है। बता दें कि जनपद में आदिवासी समाज भी अधिक दायरे में पसरा हुआ है। उनके सभी रस्मों-रिवाज वनोपज से प्राप्त आय पर ही निर्भर रहता है। वनों पर एकाधिकार रखने वाला आदिवासी समाज आज वन विभाग के नियमों के दायरे में है। पहले जैसी स्वतंत्रता अब नहीं रही। समय-समय पर वनवासियों के आक्रोश भी उभरे, जिसे वन के नियमों में रहने के लिए बाध्य किया गया। इसमें प्रमुख रूप से वनों के प्रमुख पौधों को काटने पर प्रतिबंध लगाना। इससे वनवासियों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बावजूद आर्थिक रूप से बेहद कमजोर यह वर्ग काफी समय पहले से बांस के उत्पाद पर निर्भर है।
जरूरी शौक का मुख्य स्त्रोत है बांस
जनपद के सोनभद्र, ओबरा, रेणुकूट व कैमूर वन प्रभाग में बांस प्राप्त किये जाते हैं। इसमें भी ओबरा प्रभाग में बांस बहुतायत में प्राप्त होता है। इसके इर्द-गिर्द व वनों के भीतर रहने वाले आदिवासी समाज के लिए बांस आय के मुख्य स्त्रोत में शामिल है। इस उत्पाद पर आज भी हजारों आदिवासी परिवार निर्भर है। लेकिन समय के नियमों ने उनके जीवन को प्रतिकूल कर दिया है। वे आज भी वैसे ही गुजर-बसर कर रहे हैं जैसे अनादिकाल में करते रहे हैं। इस संबंध में डीएफओ सोनभद्र श्रद्धा यादव ने बताया कि आदिवासी समाज को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। लेकिन वन के पेड़ों के उत्पाद के व्यावसायीकरण पर रोक है। इस दायरे में आने पर नियमों के साथ टैक्स देना होगा जो सभी पर एक समान लागू है।

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