ओझा-सोखा की चौखट से जादू-टोना का खेल!
ओबरा (सोनभद्र) : भूत-प्रेत या जादू-टोना के चक्कर में परसोई के अमरिनिया टोले में बाप की टांगे (बड़ी कुल्हाड़ी) से सिर और गले पर आठ से अधिक वार करके बेटे ने हत्या कर दी। जान से मारने की घटना ने एक बार फिर से हमारे वर्तमान समाजिक व्यवस्था की सोच पर सवाल खड़े कर दिये है। भूत-प्रेत या जादू-टोना को लेकर यह पहली हत्या नहीं है, बल्कि सोनभद्र में माह-दो माह में कहीं न कहीं हत्या या मारपीट की घटनाएं होती रहती है। बाप की हत्या करने के बाद बेटा फरार हो गया जबकि इसके पहले के कई मामलों में हत्यारा खुद थाने पर आकर घटना की सूचना देता था और कहता था कि हमने भूत-प्रेत करने वाले को मार डाला।
दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं होने से वनवासियों में अधिकांश कुपोषण के शिकार है, इस कारण वे विभिन्न बीमारियों के चपेट में आते रहते है। जंगलों में चिकित्सा के नाम पर महज खाना-पूर्ति की जा रही है। दवा-चिकित्सा का नितान्त अभाव है। मरता क्या न करता? उसे अपनी या अपने परिजन के जान बचाने के लिए सोखाओं के चौखट पर जाना पड़ता है। इन्हीं ओझा-सोखा के चौखट से भूत-प्रेत या जादू-टोना का खेल प्रारंभ होता है और लोगों की हत्याओं तक पहुंच जाता है।
अशिक्षा से सोखाओं के चढ़े भाव
ओबरा (सोनभद्र) : अमूमन हर दूसरे गांव में भूत-प्रेत या जादू-टोना से निजात के लिए ओझाई करने वाले मौजूद मिलेंगे। उसमें से कुछ की तो रोटी ही उसी पर चलती है। भूत-प्रेत भगाने वाले ओझा-सोखा के पास अभाव ग्रस्त लोग ज्यादातर जाते है। ग्रामों या वनों में शिक्षा के अभाव के चलते सोखाओं के भाव चढ़ हुए है। दारू-मुर्गा की मांग पूरी करते-करते परेशान इंसान तनाव ग्रस्त हो जाता है और अन्त में बीमारी से परेशान व्यक्ति कथित तौर पर भूत-प्रेत या जादू-टोना करने वाले को खत्म करने का ठान लेता है। बाप की हत्या बेटा करता है या अपने परिजनों में से भी किसी को मारने का योजना बना डालता है।
हत्यारों को नहीं होता गम
ओबरा (सोनभद्र) : बाप या चाचा की हत्या करने के बाद भी हत्यारों को किसी प्रकार का गम नहीं होता है। इसके पहले भी हत्यारे से पूछा गया था कि आपने उसे क्यों मारा? तो एक ही जवाब होता है कि हमारे लोगों को भूत-प्रेत या जादू-टोना करके मार डालता है। इससे अच्छा है कि उसे ही मार डाला। अब मर गया तो भूत-प्रेत या जादू-टोना नहीं करेगा..। इस तरह के जवाबों से आप आसानी से समझ सकते है कि उन्हे हत्या का गम नहीं है, बल्कि वे सोचते है कि अब उसके लोगों(पत्नी या बेटे) की भूत-प्रेत या जादू-टोने से मौत नहीं होगी।
ओझा भी कम दोषी नहीं
ओबरा (सोनभद्र) : बीमारी से पीड़ित इंसान को जिले भर में फैले ओझा या सोखा उसी के परिजन को इसके लिए प्राय: जिम्मेदार ठहरा देता है, जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति अपने प्रिय जन को अप्रिय बना बैठता है और हत्या तक कर बैठता है। जब तक पूरे क्षेत्र में पर्याप्त शिक्षा का प्रसार और चिकित्सा की व्यवस्था सुचारु रूप से न हो जाय तब तक अंध विश्वास फैलाने वालों के ऊपर भी प्रशासन को कड़ी निगहबानी करनी होगी तभी जाकर अंध विश्वास में हत्याओं को रोका जा सकता है।
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