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    मुख्तार अनीस के जीवन का प्रवाह रही समाजवादी विचारधारा

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 01 Apr 2021 12:50 AM (IST)

    मुख्तार अनीस कई सालों से पीड़ित थे।

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    मुख्तार अनीस के जीवन का प्रवाह रही समाजवादी विचारधारा

    स्मृति शेष

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    -रघु ठाकुर

    हालांकि मुख्तार अनीस कई वर्षो से बीमार थे और फालिज से पीड़ित थे। उनका सार्वजनिक जीवन भी क्रमश: कम होता गया था। परंतु वे जीवट के इंसान थे। जो आरंभ से अंत तक विचारधारा से समाजवादी और लोहिया के अनुयायी रहे। 1960 के दशक से मेरा उनसे परिचय था। जब कभी भी दिल्ली आते थे फोन तो करते ही थे। अगर मै दिल्ली में होऊं तो मिलने का भी प्रयास करते थे।

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    मुख्तार अनीस के राजनीतिक जीवन की शुरुआत ही डॉक्टर लोहिया की विचारधारा से हुई थी। समाजवादी युवजन सभा, फिर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और समाजवादी विचारधारा ही उनके जीवन का प्रवाह रहा। उनका मन डॉक्टर लोहिया के विचारों को समíपत था। लोहिया की मौत के बाद वे राजनारायण जी के निकट सहयोगी रहे।

    स्वर्गीय राजनारायण योद्धा भी थे और योद्धा तैयार करने वाले सेनापति भी थे। परंतु उनकी कसौटी कठोरता से व्यक्ति परक होती थी। मुख्तार भी उससे प्रभावित हुए। मैं जनता दल के काल में उनके साथ उनके जिले सीतापुर में एक कार्यक्रम में गया था। वह सही मायनों में जन नेता थे। हर आदमी वह किसी भी जाति या धर्म का हो, बिना किसी भेदभाव के मुख्तार भाई या अनीस भाई कहकर ही पुकारता था। उनसे भारी अपेक्षाएं रखता था और वह यथा संभव पूरा भी करते थे। मेरे समकालिक साथियों में स्वर्गीय मोहन सिंह एवं मुख्तार भाई ही ऐसे थे जो निरंतर संपर्क व सम्मान रखते थे। सच्चे थे, जिन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। 'जस की तस धर दीनी चदरिया' की युक्ति उन पर सटीक बैठती थी। वे तीन बार मंत्री भी रहे परंतु उनके मन व दिमाग पर मंत्री पद कभी भी हावी नहीं हो सका। अगर वह गंभीर रूप से बीमार न हुए होते तो पिछले दशक में लोहिया साहित्य को बड़ी मात्रा में प्रकाशित कर पाते। उन्होंने इसकी योजना भी बनाई थी। यद्यपि अस्वस्थता ने उन्हें नहीं करने दिया।

    1990 के बाद उनका स्वर्गीय मधु लिमये जी के पास आना जाना काफी बढ़ा था। मधु जी के मार्गदर्शन में उन्होंने डॉक्टर लोहिया पर केंद्रित एक ग्रंथ प्रकाशित किया था। लोहिया की मृत्यु के बाद तत्कालीन संसोपा ने दिल्ली में जनवाणी दिवस का आयोजन किया था। इसमें भी मुख्तार भाई सदल बल शामिल हुए थे। 1967 में लोहिया की मौत के बाद से भारतीय राजनीति में दलीय वा नेतृत्व की ऐसी तानाशाही संस्कृति विकसित हो गई है, जिसकी वजह से विचारधारा को समíपत होनहार युवकों की क्षमता और प्रतिभा का समुचित उपयोग नहीं हो सका। राजनीतिक कार्यकर्ता नेता व नेता परिवार के आतंकवाद से जूझते-जूझते धारा से ही कट जाता है। इसके शिकार मुख्तार भाई भी हुए।

    आज मुख्तार भाई हमारे बीच नहीं हैं। लगभग छह दशक के साथी को अंतिम क्रातिकारी सलाम। (लेखक विख्यात समाजवादी चिंतक हैं।)