हल्दी की खेती से साबिर ने कमाया मुनाफा
रेउसा के गांव ककरहिया के किसान साबिर ने हल्दी की खेती को दी प्राथमिकता कई किसानों ने भी परंपरागत खेती के बजाय हल्दी की खेती को आजमाया

सीतापुर : परंपरागत खेती के बजाय हल्दी की खेती रेउसा इलाके के गांव ककरहिया कबरियनपुरवा निवासी किसान साबिर के लिए फायदे का सौदा साबित हुई। उनके पिता भी हल्दी की खेती को ही तवज्जो देते थे। समय के साथ हल्दी की खेती में कुछ समस्याएं भी आईं, लेकिन साबिर ने पुश्तैनी खेती को ही प्राथमिकता दी। नतीजा ये रहा कि, एक बीघे में हल्दी की फसल तैयार करने वाले साबिर ने एक एकड़ में हल्दी बो रखी है। वह कहते हैं कि, हल्दी की खेती के लिए उन्होंने पिताजी से पैसे उधार लिए थे। एक ही वर्ष में उन्होंने पिताजी से लिए रुपये वापस कर दिए। हल्दी की खेती से मुनाफा हुआ तो आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी। मौजूदा समय में एक एकड़ में हल्दी की खेती की है। 25 हजार की लागत में 50 हजार का मुनाफा
साबिर अली के मुताबिक हल्दी की खेती में एक बीघे पर लगभग 25 हजार का खर्च आता है। एक बीघे में 30 क्विंटल हल्दी पैदा होती है। बाजार भाव के हिसाब से इतनी हल्दी करीब 70 हजार रुपये से अधिक की बिकती है। ग्रामीण बाजारों के अलावा हल्दी को लखनऊ मंडी भी भेजा जाता है। मई के आखिरी सप्ताह में होती है बोआई
हल्दी बोआई के लिए मई का आखिरी सप्ताह सही समय माना जाता है। बलुई दोमट या मटियार में हल्दी की उपज अच्छी होती है। गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। साबिर अली कहते हैं कि, हल्दी की अच्छी फसल के लिए दो-तीन निराई करना आवश्यक होता है। हल्दी की फसल छह माह में तैयार होती है। इन किसानों ने आजमाए हल्दी की खेती में हाथ
साबिर अली को देख गांव के ही अब्दुल सत्तार, वसीर अहमद, रज्जाक अली, जुवेर आदि किसानों ने भी हल्दी की खेती को प्राथमिकता दी। गांव के कई अन्य किसान भी हल्दी की खेती कर रहे हैं।
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