हंस-हंसिनी स्थल का कब होगा उद्धार
नैमिषारण्य (सीतापुर) : क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसे पौराणिक धर्म स्थल हैं जिनका बहुत महत्व है। लेक
नैमिषारण्य (सीतापुर) : क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसे पौराणिक धर्म स्थल हैं जिनका बहुत महत्व है। लेकिन संरक्षण व देखरेख के अभाव में यह धर्म स्थल अस्तित्व खोते जा रहे हैं। ऐसा ही पौराणिक धार्मिक स्थल है, हंस-हंसिनी। 84 कोस की परिधि में स्थापित हंस- हंसिनी बहुत प्राचीन स्थल है। नैमिषारण्य के निकट ही गोमती किनारे स्थित इस स्थान तक पहुंचना ही सबसे मुश्किल है। हंस-हंसिनी के विषय में कहते हैं कि यहां गोमती नदी के तट पर स्नान का बहुत महत्व है। कालांतर में एक राजा थे, जिनके हाथ नहीं थे। भ्रमण करते हुए वह यहां पहुंचे और तट पर स्नान किया। जिसके बाद उनके हाथ पूर्व की तरह हो गए। इस स्थान पर वर्तमान में एक मंदिर है। जिसमें हंस-हंसिनी की मूर्ति स्थापित है। इस स्थान तक पहुंचने का रास्ता न होने से लोग पहुंच नहीं पाते। आस पास जंगल है और सुनसान स्थान। ऐसे में श्रद्धालु चाहकर भी नहीं पहुंच पाते। कुछ लोग जाते हैं तो अजीजपुर गांव होकर। यह रास्ता कच्चा व ऊबड़ खाबड़ है। इसके बाद कुछ रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। मंदिर के पड़ोस रहने वाले बाबा दास ने बताया कि प्रकाश व्यवस्था के लिए एक सोलर लाइट लगी थी। वह पिछले दिनों कुंभ से लौटे तो बैटरी व लाइट गायब मिली। हंस-हंसिनी पौराणिक तीर्थ है। बड़ी मुश्किल से वहां तक पहुंचे और दर्शन हो सके।
रामकटोरी, मुरैना यहां पर यात्रियों के लिए सुविधाएं होनी चाहिए। पहले इसका सुंदरीकरण कराया जाए।
मुरारीलाल गुप्ता, मुरैना यहां तक पहुंचने के लिए रास्ता व ठहराव स्थल का निर्माण प्राथमिकता से होन चाहिए।
जीतेंद्र पगारे, ओंमकारेश्वर हस धर्म स्थल के संरक्षण का प्रयास होना चाहिए। दूर-दूर से लोग दर्शन की उम्मीद से आते हैं।
हरीशंकर शर्मा, मध्य प्रदेश बजट के अभाव में सुंदरीकरण के कार्य नहीं हो पा रहे। चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद प्रयास करेंगे और सुंदरीकरण कराया जाएगा।
राजीव पांडेय, एसडीएम
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