प्राचीन धरोहरों से घिरा रामपुर मथुरा
रामपुर मथुरा(सीतापुर), रामपुर मथुरा कस्बा हजारों वर्ष पुरानी अपनी आध्यात्मिक, ऐतिहासिक संस्कृति को संजोए हुए है। आजादी के पूर्व यह क्षेत्र मुख्य तौर पर रामपुर रियासत के अधीन था। जहां के राजा रामसिंह थे। इस क्षेत्र का अध्यात्म से गहरा संबंध था। लगभग पांच सौ वर्ष पहले दहावर और चौका नदियों से घिरा यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व से जुड़ा है। कहते हैं कि यहां रैक्वार वंश का शासन था। जिनका संबंध रामनगर बाराबंकी के राजघराने से रहा। इनके शासन काल में ही इस ग्राम का नाम रामपुर पड़ा। आजादी के बाद रामपुर मथुरा के नाम से जाना गया। इस क्षेत्र में कई प्राचीन धरोहरें हैं। इनमें से एक चौका नदी के तट पर स्थित अति प्राचीन मुरलीधर मन्दिर है। इसके अलावा गुमानेश्वर मन्दिर, किले के अन्दर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा मित्त पर निर्मित हनुमान जी की प्रतिमा, बासुरा गोडैचा मार्ग पर प्राचीन सेथराम शिव मंदिर है। जो यहां का महत्व बढ़ाती हैं।
चंद्रभागा चौका नदी के तट पर स्थित मुरलीधर मंदिर तुलसीदास की याद दिलाता है। कृष्ण जी का यह मंदिर चार सौ वर्ष पूर्व तुलसीदास के ठहरने का गवाह बना। नैमिष यात्रा के दौरान नाव से जाते समय तुलसीदास यहां ठहरे थे। इस दौरान चातुर्मास किया और रामायण के कुछ अंशों की रचना की थी। यह पांडुलिपियां आज भी यहां के राजघराने के पास सुरक्षित रखी हैं।
अति प्राचीन गुमानेश्वर शिव मंदिर भी धरोहर है। हैरामपुर के तत्कालीन राजा गुमान सिंह ने शिव मंदिर का निर्माण 1815 में कराया था। इस मंदिर का निर्माण कछुवा की पीठ बना कर किया गया। जो भगवान विष्णु एवं शिव के प्रेम का प्रतीक है। शिवालय के दक्षिण पूर्व कोने पर गणेश जी उत्त्तर में पार्वती जी की प्रतिमा विराजमान है। अगहन शुक्ल द्वितीया से पूर्णिमा तक मुरलीधर मंदिर के निकट विशाल मेला लगता है।
इसी तरह प्राचीन सेथराम का शिव मंदिर भी है। यह स्थान कभी घनघोर जंगल एवं नैमिषारण्य की सीमा में आता था। कार्तिक पूर्णिमा को यहां एक दिवसीय मेला लगता है। चतुर्दशी को शिव भक्त घर से मन्दिर तक परिक्रमा करते हैं। रामपुर मथुरा के पं रज्जन लाल मिश्र व सेथराम के पुजारी शम्भू गिरि बताते हैं कि इन ऐतिहासिक धरोहरों के जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। लेकिन विडंबना है कि आज तक किसी ने इस विरासत को संजोने का प्रयास नहीं किया।
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