सुदामा चरित्र ने नरोत्तमदास को बनाया महाकवि
सीतापुर : सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु,
सीतापुर :
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पांय उपानह की न¨ह सामा।।
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।।
कभी हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाने वाली यह पंक्तियां आज भी लोगों को जुबानी हो गई। यह पंक्तियां नरोत्तम दास द्वारा रचित सुदामाचरित की हैं। ब्रजभाषा का यह खंड काव्य ¨हदी साहित्य की अनमोल थाती है। इस खंड काव्य ने नरोत्तम दास को महाकवि के रूप में विभूषित किया है। मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर ¨हदी साहित्य में अमर होने वाले चंद साहित्यकारों में नरोत्तम दास का विशिष्ट स्थान है। नरोत्तमदास वह विशिष्ट साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपने काव्य में सबसे पहले 'कवित्त' (घनाक्षरी) और 'सवैयों' और का प्रयोग किया। यह विधा अकबर के समकालीन अन्य कवियों ने अपनायी थी। डॉ. रामकुमार वर्मा ने नरोत्तमदास के काव्य के संदर्भ में लिखा है कि 'कथा संगठन,' 'नाटक यता', भाव, भाषा आदि सभी ²ष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है।'
जीवन परिचय -
सीतापुर जिले की सिधौली तहसील के बाड़ी गांव के निकट स्थित अल्लीपुर में नरोत्तमदास का जन्म हुआ था। इनके जन्म के वर्ष को लेकर कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। कुछ लोगों का मत है कि इनका जन्म वर्ष 1493 (संवत 1550) में हुआ। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'हिन्दी साहित्य' में नरोत्तमदास के जन्म का उल्लेख वर्ष 1488 (संवत 1545) में होना स्वीकार किया है। इस प्रकार अनेक विद्वानों के मतों के आधार पर इनके जीवनकाल का निर्धारण उपलब्ध साक्ष्यों के आलोक में वर्ष 1493 से वर्ष 1582 के मध्य किया गया है। इसके अलावा जार्ज ग्रियर्सन के अध्यन के अनुसार महाकवि का जन्म वर्ष 1553 काल (संवत 1610)
माना जाता है। महाकवि का देहावसान वर्ष 1548 (संवत 1605) में हुआ।
नरोत्तमदास का साहित्य -
नरोत्तमदास के खंडकाव्य'सुदामाचरित्र'ने इन्हें महाकवि की श्रेणी में ला खड़ा किया है। इस ग्रंथ में नरोत्तमदास ने सुदामा के घर की दरिद्रता का बहुत ही सुंदर वर्णन है। यद्यपि यह छोटा है, तथापि इसकी रचना बहुत ही सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है। भाषा भी बहुत ही परिमार्जित है। बहुतेरे कवियों के समान भरती के शब्द और वाक्य इसमें नहीं हैं। कुछ लोगों के अनुसार इन्होंने इसी प्रकार का एक और खंडकाव्य'ध्रुवचरित'भी लिखा है। पर वह कहीं देखने में नहीं आया।
अनुपलब्ध साहित्य -
गणेश बिहारी मिश्र की 'मिश्रबंधु विनोद' के अनुसार 1900 की खोज में इनकी कुछ अन्य रचनाओं 'विचार माला' तथा 'ध्रुव-चरित' और 'नाम-संकीर्तन' के संबंध में भी जानकारियां मिलती हैं परंतु इस संबंध में अब तक प्रामाणिकता का अभाव है। नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, की एक खोज रिपोर्ट में भी 'विचारमाला' व 'नाम-संकीर्तन' की अनुपलब्धता का वर्णन है। 'ध्रुव-चरित' आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद 'रसवती' पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुए।
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