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    छगड़ीहवा में बूढ़ी राप्ती नदी को तीन दशकों से पुल की आस, ईएफसी के नौ महीने बाद भी नहीं बढ़ी प्रक्रिया

    Updated: Mon, 03 Nov 2025 03:41 PM (IST)

    सिद्धार्थनगर के छगड़ीहवा में बूढ़ी राप्ती नदी पर पुल का इंतजार तीन दशकों से है। हर साल वादे होते हैं, पर निर्माण शुरू नहीं हुआ। 20-24 गांवों के लोग नाव या लकड़ी के पुल से यात्रा करते हैं, जो खतरनाक है। मार्च 2024 में ईएफसी होने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ है। ग्रामीणों को बलरामपुर जाने के लिए 25-30 किमी अधिक चलना पड़ता है। पुल बनने से पचपेड़वा-बलरामपुर मार्ग की दूरी कम हो जाएगी।

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    जागरण संवाददाता, सिद्धार्थनगर। इटवा तहसील क्षेत्र के ग्राम पंचायत छगड़ीहवा स्थित बूढ़ी राप्ती नदी पर पक्का पुल बनने की उम्मीद पिछले तीन दशक से अधूरी है। हर वर्ष आश्वासन तो मिलते हैं, लेकिन निर्माण कार्य की शुरुआत आज तक नहीं हो सकी। नदी पार करने के लिए नागरिकों को कभी नाव तो कभी लकड़ी के पुल का सहारा लेना पड़ता है, जो हर समय जानलेवा जोखिम साबित होता है।

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    करीब 20 से 24 गांवों के लोगों के लिए यह मार्ग आवागमन की मुख्य कड़ी है। लेकिन इस स्थिति में यात्रा करना ‘टेढ़ी खीर’ बना हुआ है। खासतौर पर राजस्व ग्राम बेलभरिया की स्थिति सबसे अधिक विकट रहती है। बाढ़ आने पर यह गांव चारों ओर से कट जाता है और संपर्क पूरी तरह टूट जाता है। सिद्धार्थनगर और बलरामपुर जिलों की सीमा पर बहने वाली बूढ़ी राप्ती नदी पर पुल निर्माण के लिए राज्य सेतु निगम द्वारा नाप भी की जा चुकी है।

    मार्च 2024 में ईएफसी (एक्सेसिबल फार कंस्ट्रक्शन) भी हो चुकी है, लेकिन नौ महीने बीत जाने के बाद भी आगे की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी। फिलहाल नदी पर लकड़ी का पुल बनाकर लोग किसी तरह आवाजाही करते हैं। पानी अधिक होने पर नाव चलती है और पानी घटने पर फिर वही लकड़ी का पुल इस्तेमाल किया जाता है।

    यह स्थिति हर समय लोगों की जान के लिए खतरा बनी रहती है। इस मार्ग से बुद्धिखास, केरवनिया, जनकौरा, गदाखौवा, मुड़िला मिश्रा, पिपरिया, सिमराहा, मोथीहवा, बसंतपुर सहित कई गांवों के लोगों को बलरामपुर पहुंचने के लिए 25 से 30 किमी अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है। यही परेशानी बलरामपुर जिले के सीमावर्ती गांवों के लोगों को सिद्धार्थनगर आने में भी झेलनी पड़ती है। अगर पुल बन जाए तो पचपेड़वा-बलरामपुर मार्ग की दूरी भी काफी घट जाएगी।

    पूर्व प्रधान घनश्याम चौधरी ने बताया कि नदी पर पुल न होने से लोगों को पार करने में घंटों लग जाते हैं। रमाकांत मौर्या ने कहा कि अगर किसी महिला को प्रसव पीड़ा हो जाए, तो अस्पताल ले जाने में 15-20 किमी अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है। राधेश्याम, विनोद, राजू, मनोज सहित अन्य ग्रामीणों ने पक्के पुल के निर्माण की मांग दोहराई है

    समस्या संज्ञान में है। पुल के लिए मार्च में ईएफसी हो चुकी है, लेकिन शासनादेश जारी नहीं हुआ है। शासनादेश मिलते ही आगे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

    -अशोक तिवारी, एसडीओ, सेतु निगम

    पुल निर्माण की स्वीकृति के लिए प्रस्ताव प्रमुख सचिव के पास भेजा गया है। जल्द ही स्वीकृति मिल जाएगी। इसके बाद अन्य औपचारिकताएं पूर्ण होते ही निर्माण कार्य प्रारंभ होगा।
    -जगदंबिका पाल, सांसद, डुमरियागंज