UP News: पहले नीलामी रुकवायी, फिर लंदन से मंगवाया; अब सिद्धार्थनगर को दिया जाए बुद्ध के पुरावशेष
सिद्धार्थनगर के लोग प्रधानमंत्री मोदी से महात्मा बुद्ध के पुरावशेषों को वापस लाने की मांग कर रहे हैं। ये अवशेष जो कभी पिपरहवा से निकले थे पहले लंदन और फिर दिल्ली लाए गए हैं। स्थानीय लोग चाहते हैं कि इन अवशेषों को बुद्धभूमि सिद्धार्थनगर में स्थापित किया जाए ताकि क्षेत्र का गौरव पुनः स्थापित हो सके और बुद्ध के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके।

जितेन्द्र पाण्डेय, सिद्धार्थनगर, कपिलवस्तु। यह नाम सामने आते ही एक ऐसे महात्मा की तस्वीर आंखों में उभरती है, जिन्होंने संसार को ज्ञान व शांति का मार्ग दिया। वह नाम महात्मा बुद्ध का है। दो माह पहले उनके पवित्र पुरावशेषों की वियतनाम के नौ शहरों में प्रदर्शनी लगी थी। वहां डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों ने उनका दर्शन करके खुद को धन्य माना।
वहां के लोगां ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संदेश भेजकर आभार जताया है। प्रधानमंत्री मन की बात में इन संदेशों का जिक्र कर चुके हैं। उनकी भावनाएं मन को छूने वाली हैं। कपिलवस्तु अर्थात पिपरहवा से निकले पिपरहवा रत्न का कुछ हिस्सा लंदन में रखा हुआ था। बुधवार को प्रधानमंत्री ने उसे लंदन से दिल्ली मंगाया।
पूरा देश इसके लिए प्रधानमंत्री का आभार जता रहा है। सिद्धार्थनगर के लोग तो कायल हो गए हैं प्रधानमंत्री के। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने तो दूसरी बार सिद्धार्थनगर का मान बढ़ाया है। पहले हांगकांग में नीलामी रुकवायी। फिर लंदन से मंगवाया। अब बस अंतिम गुहार- उन पवित्र पुरावशेषों को सिद्धार्थनगर भेज दें।
सिद्धार्थविश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के सहायक आचार्य डा.शरदेंदु त्रिपाठी बुधवार से ही भावविह्वल हैं। तथागत के पुरावशेष दिल्ली आने को लेकर उनकी आंखें नम हो जा रही हैं। वह कहते हैं कि तथागत के पुरावशेष अपनी मिट्टी पर रहें, इसलिए तत्कालीन राजाओं व गणराज्यों द्वारा उनकी अस्थियों व उनसे जुड़ी चीजों को पवित्र कलशों में रखकर पिपरहवा समेत आठ स्थानों पर रखा था।
ये वह स्थान हैं, जिनका तथागत के जीवन से सीधा जुड़ाव है। अस्थिकलशों का उन आठ स्थानों पर रखना एक संदेश था कि इस पर प्रथम अधिकार वहां के लोगों का है, जहां वह रखे गए थे, लेकिन 1898 में अंग्रेज जमींदार विलियम क्लक्सटन पेप्पे ने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कार्य किया।
उसने पिपरहवा की खोदाई करायी तो प्राचीन स्तूप के अलावा पवित्र अस्थिकलश समेत मौर्य कालीन रत्न व अन्य चीजें निकलीं। रत्नकलश आदि पेप्पे अपने साथ लंदन लेकर चला गया। 127 वर्ष से बुद्धभूमि के लोग इस अन्याय को झेल रहे थे।
भला हो प्रधानमंत्री का, जिन्होंने बुधवार को इन पुरावशेषों को लंदन से दिल्ली मंगवा दिया। उन्होंने तो सात मई को हांगकांग में होने वाली इन अवशेषों की नीलामी को भी रुकवाई थी। अब बस एक मांग और प्रधानमंत्री इन अवशेषों के कुछ हिस्से को सिद्धार्थनगर भेज दें।
ताकि बुद्धभूमि के लोगों के साथ न्याय हो सके। उन्होंने बताया कि सात जुलाई को प्रधानमंत्री कार्यालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को इस संबंध में पत्र भी भेजा है। बता दें कपिलवस्तु में भगवान बुद्ध का बाल्यकाल गुजरा था।
यहां उन्होंने जीवन के 29 वर्ष व्यतीत किये हैं। उन्हीं के बचपन के नाम सिद्धार्थ के नाम पर इस जिले की स्थापना हुई है। बुद्ध से गहरा जुड़ाव होने के कारण अब यहां के लोग यही मांग कर रहे हैं कि खोदाई में निकले पुरावशेषों को बुद्धभूमि पर वापस लाया जाए।
राज्यसभा सदस्य बृजलाल भी भेजेंगे प्रधानमंत्री को पत्र
राज्यसभा सदस्य व पूर्व डीजीपी बृजलाल का कहना है कि निश्चित ही प्रधानमंत्री ने संसार में सिद्धार्थनगर का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया। तथागत के पुरावशेषों को लंदन से मंगाकर यहां के लोगों की बड़ी सौगात दी है। अब जरूरत इस बात की है कि उन पुरावशेषों को बुद्धभूमि पर वापस लाया जाए। उन्होंने कहा कि इसे लेकर वह भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखेंगे और मांग करेंगे कि पवित्र अस्थिकलश को सिद्धार्थनगर वापस लाया जाए।
आठ मूल स्तूपों में से एक है कपिलवस्तु स्तूप
भगवान बुद्ध के कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के बाद बने आठ मूल स्तूपों में से कपिलवस्तु स्तूप एक है। इस स्तूप का निर्माण लगभग 2500 वर्ष पहले शाक्यों के द्वारा करवाया गया तथा इसका संवर्धन मौर्य एवं कुषाण काल में हुआ । इतिहासकारों के अनुसार मौर्य काल में इसमें बहुमूल्य रत्न भी रखवाए गए। जिसे पिपरहवा रत्न कहा जाता है। इसके साथ ही इसमें ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान बुद्ध के धातु अवशेष भी रखे गए।
- 1898 में अंग्रेज जमींदार विलियम क्लक्सटन पेप्पे द्वारा इस स्तूप का उत्खनन करके मौर्य कालीन रत्न व अवशेष प्राप्त किए गए।
- 1971 में पुरातत्वविद केएम श्रीवास्तव ने पिपरहवा स्तूप का उत्खनन करवाया तथा प्रारंभिक चरण में विभिन्न कलश प्राप्त किये। उनमें भी जो धातु अवशेष प्राप्त हुए उन्हें भगवान बुद्ध का माना गया तथा उसे दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में संग्रहित कर दिया गया।
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