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    अहंकार रहित जीवन जीने की कला सिखाती है भागवत कथा

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 15 Nov 2021 10:28 PM (IST)

    अहंकार विनाश का कारण है भागवत कथा मनुष्य को अहंकार रहित जीवन जीने की कला सिखाती है। ऐसे में सभी को इसे रुचि के साथ सुनकर समझने व अपने जीवन में उतारने ...और पढ़ें

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    अहंकार रहित जीवन जीने की कला सिखाती है भागवत कथा

    सिद्धार्थनगर : अहंकार विनाश का कारण है, भागवत कथा मनुष्य को अहंकार रहित जीवन जीने की कला सिखाती है। ऐसे में सभी को इसे रुचि के साथ सुनकर समझने व अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

    रविवार को नगर पंचायत बिस्कोहर के संग्रामपुर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक आचार्य पंडित पुजेश महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा सुनने का व्यक्ति जब संकल्प करता है, उसी समय परमात्मा उसके हृदय में आकर निवास कर लेते हैं। भगवान की कथा ऐसी है कि इसका ज्यों-ज्यों पान करते हैं, त्यों-त्यों इच्छा बढ़ती जाती है। कथा रस कभी घटता नहीं निरंतर बढ़ता रहता है। नित्य नए आनंद की अभिवृद्धि होती रहती है। श्रीमद्भागवत आध्यात्म दीपक है, जिस प्रकार एक जलते हुए दीपक से हजारों दीपक प्रज्वलित हो उठते हैं, उसी प्रकार भागवत के ज्ञान से हजारों, लाखों मनुष्यों के भीतर का अंधकार नष्ट होकर ज्ञान का दीपक जगमगा उठता है। भगवान का आश्रय ही सच्चा आश्रय है। आगे व्यासजी ने द्वापर युग में जन्मे 16 कलाओं में निपुण भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का मार्मिक वर्णन किया। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर श्रद्धालु नंद के आनंद भयो जय कन्हैयालाल की गीत पर जमकर झूमे और श्रीकृष्ण के स्वरूप के दर्शन किए। आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनाते हुए सचित्र वर्णन किया। राजेन्द्र प्रसाद मिश्र राम नरेश सिंह लल्ला सिह, माहेश्वरी मिश्रा, बुद्धि सागर मिश्रा, राहुल तिवारी, प्रमोद मिश्रा, दीपक मिश्रा, चुनाई गौतम आदि मौजूद रहे। राम-केवट संवाद का कलाकारों ने किया मंचन सिद्धार्थनगर : शाहपुर में चल रहे रामलीला कार्यक्रम में रविवार की रात कलाकारों ने दिखाया कि राजा दशरथ कैकेयी द्वारा मांगे वरदान को सुनकर अचेत हो गए। बार-बार होश में आते हैं और राम-राम कह कर पुन: बेहोश हो जाते हैं। इधर रानी ने दूत को भेजकर राम को वहां बुलाया और कहा कि तुम्हारे पिताजी की इच्छा है कि तुम्हारे स्थान पर अब अयोध्या का राजतिलक भरत का हो और तुम्हारे पिता ने तुम्हें 14 वर्ष के लिए वनवास जाने की आज्ञा दी है। इस पर राम ने कहा कि पिता की आज्ञा शिरोधार्य, तब कैकेयी ने कहा कि वह शीघ्र ही वन जाने की तैयारी करे। उसने तपस्वियों के वस्त्रों को राम को सौंपते हुए कहा कि अब अधिक विलंब न करें। यह समाचार लक्ष्मण और सीता ने सुना तो वह भी राम के साथ जाने को तैयार हो गए। इसके बाद राम, लक्ष्मण व सीता वन चले जाते हैं। रास्ते में गंगा पार करने के लिए नाव की आवश्यकता पड़ती है। जहां राम-केवट संवाद होता है, जिसमें प्रभु श्रीराम को गंगा पार जाने के लिए नाव की जरूरत थी। वहीं केवट उनके चरणों को पखारने के लिए आतुर था। महेश जायसवाल, अशोक, डब्लू, अशोक अनजाना, मक्कू, मधुसूदन अग्रहरि सहित काफी संख्या में दर्शक मौजूद रहे।

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