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    आंसू बहा रहा है आयुर्वेदिक अस्पताल

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 17 Nov 2018 11:38 PM (IST)

    ब्रिटिश काल से स्थानीय चौराहे पर स्थापित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय अपनी बदहाली पर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। यहां पर बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। आवश्यक दवाइयों का भी अभाव है, फलता मरीजों की भी काफी कमी यहां रहती है।

    आंसू बहा रहा है आयुर्वेदिक अस्पताल

    सिद्धार्थनगर : ब्रिटिश काल से स्थानीय चौराहे पर स्थापित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय अपनी बदहाली पर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। यहां पर बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। आवश्यक दवाइयों का भी अभाव है, फलता मरीजों की भी काफी कमी यहां रहती है।

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    अंग्रेजी दवाओं के दुष्प्रभाव के चलते आयुर्वेद पद्धति की दवा खाने की लोगों में मांग बढ़ी है। लोग पेट के रोगों, शुगर, ब्लड प्रेशर जैसे अनेकों गंभीर रोगों के लिए योग आयुर्वेद की शरण में जाना चाहते हैं, पर जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते अब उन्हें पहले जितनी भी सुविधाएं उक्त अस्पताल में मयस्सर नहीं है। अस्पताल परिसर में लगा हैंडपंप, विद्युत व्यवस्था, फर्नीचर आदि को नए ढंग से दुरुस्त किया जाए। क्षेत्र के प्रभाकर त्रिपाठी ने बताया कि योग के साथ साथ अब आयुर्वेद की हम लोग शरण में जाना चाहते हैं, परंतु स्थानीय अस्पताल पर पर्याप्त सुविधा उपलब्ध न होने से हम लोग इससे वंचित होना पड़ता है, इसी प्रकार महेंद्र शुक्ला ने बताया की अंग्रेजी दवाओं से एक बीमारी ठीक नहीं होती दूसरी बीमारी के गिरफ्त में हम लोग आ जाते हैं, अब इस आयुर्वेदिक अस्पताल का कायाकल्प हो जिससे हम लोग इसका लाभ उठा सकें। अशोक कुमार ने कहा कि हमें शुगर है, हम आयुर्वेदिक पद्धत से लगातार दवा चलाना चाहते हैं, जो हर समय अस्पताल पर नहीं रहती, जिम्मेदारों को चाहिए कि ऐसे लोगों के लिए नियमित व्यवस्था प्रदान की जाए। इसी तरह का कहना वाजिद खान का भी था, उन्होंने कहा की आयुर्वेद वाकई जीवनदायिनी शाखा है, अस्पताल के हर कमी को अविलंब पूरा किया जाना चाहिए। 50 - 60 के दशक में जब क्षेत्र में कोई अस्पताल नहीं था, तब इस अस्पताल पर रोगियों की लाइन लगती थी। क्षेत्र के आमी नदी से लेकर के राप्ती नदी के मध्य पढ़ने वाले 50 गांव से अधिक के लोग यहां इलाज कराने आते थे, तब उन लोगों का भरोसा था की इस अस्पताल पर जाने से हमारी सारी पीड़ा खत्म हो जाएगी। लेकिन अस्पताल खुलते गए, अंग्रेजी दवाओं का जमाना आ गया। प्रशासन ने अस्पताल पर कम ध्यान देना शुरू कर दिया। जिससे अस्पताल बदहाल हो गया। 80- 90 के दशक में तैनात डॉक्टर बीके श्रीवास्तव के समय इनके ट्रांसफर के साथ डॉक्टर का पद ही यहां से चला गया। चिकित्सालय फार्मासिस्ट के भरोसे चलता है। जिससे अस्पताल धीरे धीरे उपेक्षित होता गया । रोगियों ने भी आना कम कर दिया। क्षेत्र के गोपाल दुबे, दुर्गेश, राजाराम, सत्यम आदि ने अस्पताल पर डॉक्टर की तैनाती व संसाधनों के मुहैया कराए जाने की मांग कर रहे हैं।

    एसडीएम बांसी प्रबुद्ध सिंह ने कहा कि अस्पताल की क्या स्थिति है इससे हम परिचित तो नहीं। यदि उसमे पर्याप्त व्यवस्थाओं का अभाव है तो निरीक्षण कर व्यवस्था सुधार के लिए जिम्मेदारों से बात करूंगा।