शील, समाधि और प्रज्ञा ही कल्याणकारी
श्रावस्ती: शील धर्म की नीव है। समाधि धर्म की दीवार है, जबकि प्रज्ञा छत। यही बुद्ध की देशना है। उक्त
श्रावस्ती: शील धर्म की नीव है। समाधि धर्म की दीवार है, जबकि प्रज्ञा छत। यही बुद्ध की देशना है। उक्त विचार पूर्वाराम विहार में भंते विमल तिस्य ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जैसे एक मकान नीव के बिना संभव नहीं है। दीवार के बिना मकान बन नहीं सकता और छत के बिना रहने योग्य नहीं होता। ठंडी हवा, बरसात और धूप से सुरक्षा नहीं होती है। वैसे ही शील के बिना, समाधि के बिना धम्म कल्याण नहीं करता। शील, समाधि और प्रज्ञा ही कल्याणकारी है।
शिष्यों के बीच ज्ञान गंगा बहाते हुए उन्होंने कहा कि बौद्ध धम्म अनुयायी पंचशील ग्रहण करते हैं, लेकिन आचरण में उदासीन होने के कारण धम्म प्रगति नगण्य रहती है। केवल कर्मकांड बनकर रह जाता है। पुरानी वेशभूषा और भाषा में बदलाव न होने से बौद्ध समाज दिखाई नहीं देता है, जबकि भारत में बौद्धों की आबादी एक करोड़ है। उन्होंने कहा कि बुद्ध के बताए पंचशील का पालन ही बौद्धों की सही पहचान है। 'कुशल कर्म करते रहे, करे न पाप लवलेश। मन निर्मल करते रहे यही बुद्ध संदेश'।
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