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    'कानबाई में नहीं था प्रदीप का नाम, खींच ले गई मौत'

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 17 Feb 2019 10:37 PM (IST)

    शामली: 'प्रदीप का तो नाम भी नहीं था कानबाई में जाने वाले जवानों में, लेकिन मौत उसे खींच ले गइ ...और पढ़ें

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    'कानबाई में नहीं था प्रदीप का नाम, खींच ले गई मौत'

    शामली: 'प्रदीप का तो नाम भी नहीं था कानबाई में जाने वाले जवानों में, लेकिन मौत उसे खींच ले गई और वह शहीद हो गया।.. और हम सभी को हमेशा के लिए छोड़कर चला गया'। यह सच घर के बाहर घेर में बैठे लोगों को बताते हुए शहीद प्रदीप के पिता जगदीश प्रजापति की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। लोगों ने सांत्वना दी और कहा कि ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती।

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    शहीद के पिता जगदीश प्रजापति ने बताया कि 13 फरवरी यानी बुधवार को प्रदीप सुबह जम्मू पहुंच गए थे। श्रीनगर का रास्ता कई दिन से बंद था तो जम्मू मे बड़ी संख्या में जवान थे, जिन्हें श्रीनगर जाना था। बुधवार देर रात जो कानबाई निकलनी थी, उसमें शामिल जवानों की सूची में प्रदीप का नाम नहीं था। वह प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह जल्दी ही अपने यूनिट में पहुंच जाएं। प्रदीप को पता चला कि सुबोध नाम के जवान के घर से फोन आया है और उनकी मां बीमार है, जिसके चलते सुबोध छुट्टी लेकर घर चले गए। प्रदीप ने सुबोध की जगह अपना नाम सूची में दर्ज करा दिया। गुरुवार दोपहर करीब 11.30 प्रदीप की अपनी मां सुनेलता से बात हुई थी तो तब यह बात बताई थी कि वह रास्ते में है। आंसू पूछते हुए पिता ने कहा कि क्या पता था कि अब कभी बेटे से बात नहीं होगी।

    शहीद के चचेरे भाई उमेश ने बताया कि ऐसा कई बार हुआ होगा कि कानबाई में नाम न होने पर भी प्रदीप चले गए हों, लेकिन अब लग रहा है कि ऐसा क्यों हुआ। नियति को यही मंजूर था कि जिस वाहन में प्रदीप थे, उसी वाहन में विस्फोटक से भरी कार ने टक्कर मारी। 'मुझे बता किस अफसर से

    करनी है ट्रांसफर की बात'

    पिता जगदीश प्रजापति ने बताया कि नौ साल से प्रदीप श्रीनगर में ही तैनात थे। बटालियन बदलती रहीं, लेकिन जगह नहीं बदली। बोले कि वे कई बार कहते थे कि 'प्रदीप बहुत टाइम हो गया श्रीनगर में। अब वहां से ट्रांसफर करा लें', लेकिन प्रदीप हमेशा कहते थे कि 'पिताजी यहां नहीं तो कहीं और, नौकरी तो करने ही है। ट्रांसफर इतना आसान नहीं होता'। शहीद के पिता ने बताया कि कुछ दिन पहले जब वह छुट्टी लेकर आए थे तो कहा था कि हमें बता दें कि किस अफसर से ट्रांसफर की बात करनी है। हम रिक्वेस्ट कर लेंगे। निराली आदत थी.. बस याद बची हैं

    शहीद के पिता से बात कर रहे बनत निवासी सोमपाल से कह रहे थे कि 'प्रदीप की निराली आदत थी। अपने से बड़ों का बड़ा सम्मान करता था। हर वक्त चेहरे पर मुस्कान रहती थी। बच्चों से उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा करता था। अब तो ये यादें ही बची हैं'। आज होगी शहीद प्रदीप की तेहरवीं

    सोमवार को अस्थि विजर्सन के बाद शहीद प्रदीप की तेहरवीं होगी। सुबह अस्थि लेकर परिवार के कुछ लोग हरिद्वार जाएंगे और जैसे ही अस्थि विसर्जित कर देंगे तो बनत स्थित घर में हवन शुरू हो जाएगा। शहीद के बेटों की परीक्षा के चलते परिवार ने तीसरे दिन ही तेहरवीं करने का फैसला किया है।