मौलाना थानवी के 'चिराग' से फैली इल्म की 'रोशनी'
अनुज सैनी, शामली : दुनिया के मुस्लिम समाज में मौलाना अशरफ अली थानवी का नाम अदब के साथ लिया जात
अनुज सैनी, शामली : दुनिया के मुस्लिम समाज में मौलाना अशरफ अली थानवी का नाम अदब के साथ लिया जाता है। मौलाना द्वारा लिखी गई हयातुल्ला मुस्लमीन, बाहिस्ती जेवर (जन्नत का जेवर) व कुरान की तफ्तीर दुनिया की सभी भाषाओं में लिखी जा चुकी है। थानाभवन में मौलाना अशरफ अली थानवी की मजार पर देश-विदेश से लोग पहुंचकर उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते है।
मौलाना अशरफ अली थानवी ने 900 से अधिक किताबें लिखी। मुस्लिम समुदाय को इल्म से जोड़ा। मौलाना थानवी, थानाभवन कस्बे के शेख फारूखी अब्दुल हक के यहां साल 1863 में पैदा हुए थे। अशरफ अली ने मेरठ में रहते हुए कुरान-ए-करीम की पढ़ाई की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए देवबंद चले गए। देवबंद में दारुल उलूम कायम होने के बाद कोर्स पूरा करने वाले तालिब-ए-इल्म की पहली जमात में मौलाना अशरफ अली थानवी भी एक थे। देवबंद से मौलवी की पढ़ाई पूरी करने के बाद कानपुर के एक मदरसे में बच्चों को तालीम देने चले गए। यहां 14 साल बच्चों को तालीम दी। कानपुर से आने के बाद मौलाना अशरफ अली थानवी ने पूरी जिदंगी थानाभवन में ही बिताई। अशरफ अली को बचपन से ही किताबें लिखने का शौक था। उन्होंने छात्र जीवन में कई किताबें भी लिखी। अपनी पहली दीनी किताब 18 वर्ष की उम्र में ही लिख दी थी। उनकी इस्लाही निसान, इस्लाहुर रसूल, इस्लाहे इन्कलाबे उम्मत भी विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें है। ये समाज को दीनी राह दिखाती हैं। कस्बे के बच्चों को बेहतर तालीम देने के लिए मौलाना ने अपने उस्ताद हाजी इमदादुल्ला के नाम से मदरसा इमदादिया उलूम की स्थापना 1301 हिजरी में की थी, जो आज खानख्वाह के नाम से मशहूर है। मौलाना ने अपनी सारी जमीन इस मदरसे के नाम कर दी थी। इसकी आमदनी से ही मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों का खर्च चलता है। मौलाना थानवी 17 जुलाई 1943 को दुनिया से चले गए। मौलाना की इच्छा के मुताबिक, उनकी मजार कच्ची बनाई गई है।
-----------
मौलाना अशरफ अली थानवी ने मुस्लिम समाज को शिक्षित करने की दिशा में अहम प्रयास किए। उनके प्रयासों का असर पूरे विश्व पर देखने को मिल रहा है। मौलाना ने दुनिया को इंसानियत का पैगाम दिया।
-शेख-उल-हदीस मौलाना यामिन
------------
मौलाना थानवी न केवल दीनी बल्कि दुनियावी तालीम के भी पैरोकार थे। उनके द्वारा लिखी गई हयातुल्ला मुस्लिमीन, बहिस्ती जेवर व कुरान की तफ्तीर दुनिया की सभी जबानों में अनूदित हैं। उनकी किताबों पर 500 से अधिक शोध हो चुके हैं।
- अहते श्याम उल्ला खान
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।