Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यूपी में मराठा गौरव को बयान करता है यह स्थान, कन्हैया से भी है खास जुड़ाव

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Fri, 24 Nov 2017 06:09 PM (IST)

    सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक चेतना के प्रतीक हनुमान धाम पर बरने के पेड़ों से घिरे शांत एवं छायादार स्थान पर कुछ समय विश्राम कर मीठे जल के कुएं का ज ...और पढ़ें

    Hero Image
    यूपी में मराठा गौरव को बयान करता है यह स्थान, कन्हैया से भी है खास जुड़ाव

    शामली [लोकेश पंडित]। महाभारत एवं मराठाकालीन संस्कृति को अपने आप में समेटे शामली का श्री मंदिर हनुमान टीला हनुमान धाम युग परिवर्तन का गवाह है। किंवदंती के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर से युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र जाते हुए इसी मार्ग को अपनाया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक चेतना के प्रतीक हनुमान धाम पर बरने के पेड़ों से घिरे शांत एवं छायादार स्थान पर कुछ समय विश्राम कर मीठे जल के कुएं का जल पीकर अपनी प्यास शांत की।

    आध्यात्म, इतिहास समेटे है हनुमान टीला

    इसके बाद श्रीकृष्ण ने यहां पर शक्ति के आराध्य श्री बाबा बजरंग बली की उपासना कर इस स्थान को धन्य किया। इसी के चलते कालांतर में इस नगरी को पहले श्याम वाली, फिर श्यामा नगरी और वर्तमान में शामली पुकारा जाता है।

    क्रांतिकारियों का पनाहगाह

    स्वतंत्रता के आंदोलन में हनुमान टीला मंदिर आजादी के दीवानों का पनाहगाह व रणनीति तैयार करने का केंद्र था। क्रांतिकारियों ने अपने छिपने के लिए इस स्थान को सब प्रकार से सुरक्षित समझा। अंग्रेजी साम्राज्य में पुरानी तहसील की होली जलाकर अंग्रेजी शासन के अफसर असलम के जुल्म सहकर मुकाबला करते हुए स्वतंत्रता की पुण्य ज्योति जगाकर बाबा बजरंग बली के इसी धाम से अमर शहीदों ने 1857 की क्रांति का बिगुल बजाया। आजादी के दीवानों ने यहीं से बलिदान की अमिट गाथा लिखी। बलिदानियों की गौरयमयी गाथा आज भी इतिहास के स्वर्ण पन्नों में अंकित है।

    हनुमान जी का डेरा

    इस सिद्धपीठ स्थान पर संत बाबा धर्मदास ने दो माह तक निरंतर खड़ी तपस्या की। ये संत सिद्ध पुरुष थे। संत को यहीं से मोक्ष की प्राप्ति हुई, जिनकी समाधि आज भी यहां विद्यमान है। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा था कि यह जगह चमत्कारिक है। इस जगह पर हनुमान जी का डेरा है। उनकी भक्ति करने पर सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।

    1967 में जीर्णोद्धार

    यह जगह पूर्व में पूरी तरह बीहड़, झाड-झंखाड़ से घिरी थी। यहां जादू टोनों को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होती थीं। पूर्णतया उपेक्षित और 15 से 20 फुट ऊंचे नीचे गड्ढे वाले इस स्थान पर पूर्व में दिन में आने से ही कंपकपी आती थी। महापुरुषों के वचन और अंत में सब कुछ ईश्वराधीन मानकर कुछ उत्साही बालकों ने इस चमत्कारी स्थल को अपना आदर्श एवं कर्म मानकर चार मई 1967 को इस देव भूमि के निर्माण का संकल्प लिया और इसका जीर्णोद्धार किया।

    चारों मठों के शंकराचार्य पहुंचे

    ऊबड-खाबड़ भूमि के समतलीकरण के बाद इस तपोभूमि पर 14 मार्च 1969 में पधारे चारों मठों के शंकराचार्य व विभिन्न मठों के मठाधीश एवं दंडी स्वामियों ने अपने सार-गर्भित प्रवचनों से हनुमानधाम को अभिभूत किया।

    शंकराचार्य को सपने में दिखे

    14 मार्च 1969 को ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य कृष्ण बोधाश्रम जी को सपने में बाबा बजरंग बली ने दर्शन दिए। सुबह उन्होंने अपने प्रिय शिष्य दंडी स्वामी भूमानंद जी (संस्थापक भूमा निकेतन, हरिद्वार) को आदेश दिया कि श्री मंदिर हनुमान टीले पहुंचकर वहां विराजमान प्राचीन श्री बाबा बजरंग बली को सुप्तावस्था से उठा कर जागृत करो। गुरु के आदेशानुसार भूमानंद जी महाराज ने बाबा के स्थान को मंत्रों द्वारा जागृत किया। तभी से यहां पर चमत्कार होने लगे।

    महाराज ने उपस्थित मंडल के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि तुम लोग इसके निर्माण में लग जाओ, यह स्वयं ही सिद्ध पीठ के रूप में चमक उठेगा। तुम्हारा पुरुषार्थ सफल होगा और स्वयं बाबा बजरंग बली इस योजना को पूर्ण करेंगे। 

    कई हस्तियां दर्शन को पहुंचीं

    इस पावन तीर्थ स्थान पर नेपाल के भारत में नियुक्त राजदूत भीम बहादुर पांडेय, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह,  पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी, उमाशंकर दीक्षित (गृहमंत्री भारत सरकार), केदारनाथ पांडेय (पूर्व रेल मंत्री), जीडी तपासे (पूर्व राज्यपाल हरियाणा), एम चेन्ना रेड्डी (पूर्व राज्यपाल उत्तर प्रदेश), विरेंद्र वर्मा (पूर्व राज्यपाल हिमाचल), सूरजभान (पूर्व राज्यपाल उत्तरप्रदेश), पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, सुषमा स्वराज, कल्याण सिंह समेत कई राजनेताओं ने बाबा बजरंग बली की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

    1969 से होती है रामलीला

    इस देव स्थान के दक्षिण में रामलीला मैदान है, जहां पर 1969 से प्रतिवर्ष रामलीला का आयोजन होता है। रामलीला मंच के ठीक सामने अग्रवाल समाज एवं सर शादीलाल एंटरप्राइजेज लिमिटेड, शुगर मिल शामली व समाज के सहयोग से महाराज अग्रसेन सांस्कृतिक भवन का निर्माण किया गया है। रामलीला द्वार के बराबर में नि:शुल्क हनुमान चिकित्सालय एवं हनुमान सेवादल स्थित है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक माह की 10 तारीख को आंखों के ऑपरेशन की नि:शुल्क व्यवस्था है।

    हनुमान जी की तीन मूर्तियां

    हनुमान टीले में हनुमान जी की तीन मूर्तियां विराजमान हैं। खुदाई से प्राप्त छोटी सी मूर्ति जो पहले नंबर पर है, वह श्री बाला जी महाराज की है। दूसरी मूर्ति भक्त शिरोमणि हनुमान जी, तीसरी मूर्ति शक्ति स्वरूप बजरंग बली की है। खुदाई से प्राप्त श्री भैरव बाबा की मूर्ति भी यहां प्रतिष्ठित है। इस देव स्थान पर साधु संतों, निर्धनों, असहाय व्यक्तियों के लिए प्रतिदिन अन्न क्षेत्र से नि:शुल्क भोजन व्यवस्था है। निर्धन बच्चों की शिक्षा व विवाह भी संपन्न कराए जाते हैं।

    अनेकों देवी देवता

    तालाब के मध्य में देवाधिदेव भगवान शंकर की मूर्ति, मनकेश्वर महादेव, जगन्नाथ, गणेश, परशुराम, रानी सती, मां जगदंबा, श्री सत्यनारायण, मां संतोषी, राधा कृष्ण, मां पार्वती व शनि देव आदि अनेकों भगवानों की भव्य मूर्तियां भी स्थापित हैं।

    शामली के चारों तरफ शिवालय

    उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार मराठा काल में जब दिल्ली को स्वतंत्र कराने के लिए मराठा सैनिकों ने यहां पड़ाव डाला, तब छावनी की सुरक्षा के लिए इस नगरी के चारों कोनों पर भगवान शिव के शिवालयों की स्थापना की गई। इन शिवालयों को छापामार युद्ध नीति के अनुसार एक दूसरे को भूमिगत सुरंगों से जोड़ा गया। मराठों द्वारा मुख्य रूप से निर्मित मनकामेश्वर श्री महादेव का मंदिर अपने में मराठा गौरव व इतिहास को समेटे हुए है।