इतिहास में दर्ज है शामली की शौर्य गाथा
अनुज सैनी, शामली देश की आजादी में शामली के वीर सपूतों ने प्राणों की बाजी लगाई तो यहां क
अनुज सैनी, शामली
देश की आजादी में शामली के वीर सपूतों ने प्राणों की बाजी लगाई तो यहां की वीरांगनाएं भी पीछे नहीं रहीं। जंग-ए-आजादी की पहली 1857 की क्रांति में जिले के युवाओं ने प्राणों की आहुति दी, वहीं महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद और भगत ¨सह समेत अनेक आजादी के दीवानों की अगुवाई में यहां के क्रांतिकारियों ने दास्ता की बेड़ियों को तोड़ने का काम किया। कई जेल गए तो असंख्यों ने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते वीरगति प्राप्त की। वीर मर्दानियों ने टोलियां बनाकर गोरी हुकूमत से लोहा लिया और देश के नाम पर प्राण न्यौछावर कर दिए। जंग-ए-आजादी में क्रांतिकारी चौधरी मोहर ¨सह ने गोरों की गर्दन झुका दी थी। अंग्रेजी फौज को मोहर ¨सह ने नाको तले चने चबवा दिए, वहीं जिले के युवाओं व महिलाओं ने भी हाथों में हथियार थामकर मुक्ति का संग्राम छेड़ा था। शामली उस समय लड़ाई का अहम केंद्र था।
चौ. मोहर ¨सह ने लिया था मोर्चा
आजादी की लड़ाई में उन दिनों नेतृत्व की अभूतपूर्व क्षमता रखने वाले शामली के चौधरी मोहर ¨सह ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया था। उनकी अगुवाई में नौजवानों की अलग-अलग टुकड़ियां अंग्रेजों से मुकाबला करती थी। गोपनीय सूचनाएं एक-दूसरे को देकर क्रांतिकारी, अंग्रेजी फौज पर टूट पड़ते थे। मोहर ¨सह ने ही शामली तहसील पर हमला बोलकर उसे अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त करा लिया था। करीब दो महीने तक तहसील पर अंग्रेज फटक भी नहीं पाए थे।
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रशीद अहमद गंगोही का बड़ा योगदान
आजादी की लड़ाई में सहारनपुर के रशीद अहमद गंगोही का अहम योगदान रहा। उनकी प्रेरणा से यहां कैराना, थानाभवन और शामली में गोपनीय मंत्रणाएं होती थीं। रणनीति तैयार की जाती थी। देवबंद के रेशमी रूमाल आंदोलन से भी शामली काफी हद तक प्रभावित रहा। आजादी के मतवालों में फूट डालने के लिए अंग्रेजों ने बड़ी कोशिशें कीं, लेकिन वह कामयाब नहीं हुए। रशीद अहमद गंगोही ने अंग्रेजों का गोला-बारूद लूट लिया, तो शामली में भी क्रांतिकारी गोरों पर बर्र की तरह टूट पड़े। अंग्रेजों की कब्जे वाली तहसील पर काजियों ने हमला बोला था। यहां तहसीलदार इब्राहिम खां को मौत के घाट उतार दिया गया था।
खूब लड़ी शामली की मर्दानी
आजादी की लड़ाई में शामली की वीरांगनाओं का अहम योगदान रहा। बसेड़ा गांव की बख्तरी, शामली की इंदर कौर जाट, थाना भवन की हवीबा खातून में तो अछ्वुत नेतृत्व क्षमता थी। जब नौजवान अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे तब इन वीरांगनाओं ने भी अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। कितनों ने अपने जेवर तक बेचकर आजादी के मतवालों का सहयोग किया। ये वीरांगनाएं हाथों में तलवार और भाले लेकर गोरी हुकूमत की नाक में दम कर दिया था। इन्हीं वीरांगनाओं की फेहरिस्त में मामकौर गड़रिया, राजकौर, रणवीरी, जमीला पठान और शोभा भी थीं। बाद में अंग्रेजों ने इन्हें फांसी पर लटका दिया था।
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उठी थी लोकगीतों की लहर
आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने देशभक्ति से ओतप्रोत लोकगीतों का भी सहारा लिया था। इनकी टोलियों में गाए जाने वाले गीतों में अंग्रेजों के प्रति ताने-उलाहने होते थे। आजाद भारत में बाद की पीढ़ी उन गीतों को सहेज न सकी। उनका संकलन भी न हो सका। फिर भी जोश और जज्बा भरने में ये गीत बड़े काम के बताए जाते हैं।
भगत ¨सह से मिलने सहारनपुर जाते थे नौजवान
जब अंग्रेजी हुकूमत से क्रांतिकारी लोहा ले रहे थे, उस समय भगत ¨सह सहारनपुर चौक में चुपके से आते थे। छींके पर जब कद्दू लटका दिया जाता था तो उसका मतलब होता था कि भगत ¨सह आ गए हैं। यह सूचना गोपनीय तरीके से शामली में भी पहुंच जाती थी। यहां के नौजवान भगत ¨सह से मिलने जाया करते थे।
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