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    श्री राम कथा सुनकर श्रद्धालु हुए भाव विभोर

    विजय कौशल महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लंका दहन के बाद सीता माता से चूड़ाम

    By JagranEdited By: Updated: Sat, 29 Sep 2018 10:28 PM (IST)
    श्री राम कथा सुनकर श्रद्धालु हुए भाव विभोर

    विजय कौशल महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लंका दहन के बाद सीता माता से चूड़ामणि लेकर हनुमान समुद्र के इस पार पहुंचते हैं और श्री राम के पास पहुंचकर सबसे पहले उन्हें चूड़ामणि देते हैं।

    जागरण संवाददाता, शामली :

    श्रीराम कथा के सातवें दिन संत प्रवर विजय कौशल महाराज ने लंका कांड के तहत श्रीराम के रामेश्वरम में शिव पूजा, सेतु बंध, लंका में प्रवेश, लक्ष्मण मूर्छा, मेघनाथ वध तथा रावण वध की कथा का वर्णन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि संत स्वभाव का नाम है शरीर का नहीं। जिससे मिलकर मन शांत, शीतल, प्रसन्न, चिंतामुक्त, पवित्र हो जाए, दुर्गुणों को त्यागने तथा भगवान के भजन की प्रेरणा मिले, वहीं संत है।

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    कैराना रोड स्थित एक बैंक्वेट हॉल में चल रही श्रीरामकथा के सातवें दिन संत प्रवर विजय कौशल महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लंका दहन के बाद सीता माता से चूड़ामणि लेकर हनुमान समुद्र के इस पार पहुंचते हैं और श्री राम के पास पहुंचकर सबसे पहले उन्हें चूड़ामणि देते हैं। इसके बाद अशोक वाटिका में राम के विरह में दुखी सीता को समाचार उन्हें सुनाते हैं। सीता के दुख को सुनकर राम अपनी सेना को लंका प्रस्थान का आदेश देते हैं। समुद्र के किनारे भगवान रामेश्वर में शिव की स्थापना कर शंकर जी की पूजा करते हैं। राक्षसों का उद्धार करने के लिए भगवान स्वयं लंका में पहुंचते हैं। स्वयं अयोध्यानाथ उनका कल्याण करने के लिए लंका में पहुंचते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि राक्षसों को चैबीसों घंटे हनुमान और श्रीराम का ध्यान रहता है और जो मन से संत या भगवंत का ध्यान करता है। भगवान उसे दर्शन देने के लिए स्वयं उसके पास पहुंचते हैं। बताया कि इधर रावण ने राम की सेना के आगमन का समाचार पाकर अपनी राजसभा बुलाई जहां विभीषण ने उन्हे समझाते हुए सीता का वापस लौटाने की सलाह दी। लेकिन रावण ने क्रोधित होकर उसको लात मारी। इसके बाद भी विभीषण ने रावण के पैर पकड़ लिये। वास्तव में मोह का नाता बड़ा प्रबल होता है। जो लात खाकर भी उसे नहीं छोड़ता। विभीषण श्री राम की शरण में पहुंचते हैं। हम संकल्प से पद, पैसा, वैभव को पाना चाहते हैं। परंतु भगवान को सुविधा से पाना चाहते है। महाराज ने कहा कि युद्ध में मेघनाथ पुन: आता है अबकी बार पुन: लक्ष्मण से उसका युद्ध होता है और मेघनाथ मारा जाता है। मेघनाथ काम का प्रतीत है और काम को संयम से ही जीता जा सकता है भोग से नहीं। वास्तव में यह उर्मिला और सुलोचना के पातिव्रत धर्म का युद्ध था। जिसमें उर्मिला की विजय हुई। इस मौके पर राजेश्वर बंसल, राजीव मलिक, रोबिन गर्ग, अखिल बंसल, सारिका बंसल, शिप्रा बंसल, विजय गर्ग, अंजना बंसल चैयरमेन, ओमप्रकाश आदि मौजूद रहे।