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    ध्वनि प्रदूषण से कम हो रही सुनने की क्षमता

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 02 Mar 2022 11:18 PM (IST)

    शामली जेएनएन। उम्रदराज होने पर तो कम सुनने की समस्या काफी लोगों को होती है लेकिन ध्वनि प्रदूषण के कारण भी कान की बीमारी बढ़ रही है। चिकित्सकों की सलाह है कि कान में कोई दिक्कत महसूस हो तो चिकित्सक को तुरंत दिखा लें। लापरवाही करने से बीमारी बढ़ सकती है और पूरी तरह बहरा होने का खतरा होता है।

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    ध्वनि प्रदूषण से कम हो रही सुनने की क्षमता

    शामली, जेएनएन। उम्रदराज होने पर तो कम सुनने की समस्या काफी लोगों को होती है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण के कारण भी कान की बीमारी बढ़ रही है। चिकित्सकों की सलाह है कि कान में कोई दिक्कत महसूस हो तो चिकित्सक को तुरंत दिखा लें। लापरवाही करने से बीमारी बढ़ सकती है और पूरी तरह बहरा होने का खतरा होता है।

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    सीएचसी शामली के कान, नाक एवं गला (ईएनटी) विशेषज्ञ डा. सोमपाल सिंह का कहना है कि कम सुनने की समस्या आमतौर पर 60 वर्ष से अधिक आयु होने पर शुरू होती है। क्योंकि कान की नसें कमजोर होने लगती हैं। समस्या अधिक बढ़ती है तो मशीन की जरूरत पड़ती है। तेज आवाज यानी ध्वनि प्रदूषण भी बहरेपन का एक बड़ा कारण है। वहीं, अगर 80 डेसीबल से अधिक ध्वनि का स्तर रहता है तो यह कानों के लिए बेहद खतरनाक होता है। कान की नसों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और कान के पर्दे भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

    ध्वनि का स्तर सामान्य रूप से 20 से लेकर 40 डेसीबल तक ही होना चाहिए। बच्चों में कान बहने की समस्या रहती है। इसे हल्के में न लें और देर किए बिना विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं। समय से उपचार शुरू होना बेहद जरूरी होता है। बहरेपन की समस्या अनुवांशिक भी होती है। ऐसे मामलों में एक सर्जरी होती है और कान में कोक्लियर इंप्लांट नामक मशीन लगाई जाती है। अगर पांच वर्ष आयु से पहले कोक्लियर इंप्लांट लग जाए तो कुछ हद तक सुनाई देने लगता है। ईएनटी डा. रजनीश बहल ने बताया कि कान में चोट लगने से भी व्यक्ति बहरेपन का शिकार हो सकता है। साथ ही आटोटाक्सिस दवाओं के प्रयोग से भी दिक्कत आती है। आटोटाक्सिस टीबी आदि की बीमारी में प्रयोग होने वाली दवा होती हैं। अधिक ध्वनि तो प्रमुख कारणों में से एक है ही।

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    यह बरतें सावधानी

    -नहाते या तैराकी करते समय कानों में रूई लगा लें। ईयर प्लग भी लगा सकते हैं। कान में पानी जाने से कम सुनने की समस्या हो सकती है।

    -छोटे बच्चों को गर्दन के ऊपर की तरफ रखकर ही दूध पिलाएं। ऐसा करने से गले के रास्ते कान में दूध जाने का खतरा नहीं रहेगा।

    -कहीं अत्यधिक शोर है तो भी कानों में रूई लगा लें।