संस्कारशाला : परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म
शामली : भारत में सदा ही 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' की भावना को महत्व दिया गया है। परोपकार का शाब्दिक
शामली : भारत में सदा ही 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' की भावना को महत्व दिया गया है। परोपकार का शाब्दिक अर्थ है पर-उपकार, अर्थात दूसरों का भला करना। परोपकार में स्वार्थ का अंश नहीं होता। परोपकारी दीन-दुखियों के प्रति उदार, असहायों का सहारा तथा जन कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होते हैं।
परोपकार का उदाहरण प्रकृति में दृष्टिगोचर होता है। नदियां दूसरों की प्यास बुझाने के लिए अनवरत रूप से जल प्रवाहित करती हैं। मेघ पृथ्वी को ¨सचित करते हैं। वृक्ष स्वयं तपिश सहकर पथिकों को छाया देकर पूरे ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करते हैं। कवि की ये पंक्तियां स्पष्ट करती हैं।
वृक्ष कबहुं नहि फल भखें, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारनै साधुन धरा शरीर।
प्राचीन काल में भी परोपकार के अनेक दृष्टांत गोचर होते हैं। राजा भगीरथ परोपकार के लिए ही गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी लाए थे। बुद्ध ने परोपकार के लिए राजपाट का त्याग किया था। दधिचि ने परोपकार के लिए अपनी अस्थियां दान की थी। महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस जैसे आजादी के सेनानी परोपकार के लिए कितनी बार जेल गए और कितनों ने मौत को खुशी से गले लगाया। मनुष्य के कर्म की सुंदरता जिन गुणों से प्रकट होती है, उनमें परोपकार सबसे ऊपर है। दान, त्याग, सहिष्णुता, धैर्य, समता और ईश्वरीय सृष्टि का सम्मान करना आदि गुण परोपकार में ही आते हैं। प्रकृति हमें परोपकार का पाठ पढ़ाती है। चंद्रमा शीतलता, अग्नि से तेज, वायु से प्राण, पर्वत से वनस्पति व जड़ी बूटी और वृक्ष से हमें सरस फल मिलते हैं।
मनुष्य की कसौटी परोपकार है। परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। इससे मानव में त्याग तथा बलिदान की भावना का विकास होता है। कहने का अर्थ यह है कि परोपकार से ही मानव कल्याण तथा अंतत: विश्व कल्याण संभव है। कबीरदास ने समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिए सभी धर्मों के उन लोगों की ¨नदा की है जो सामाजिकता, सहिष्णुता को बिगाड़ते हैं। उन्होंने मनुष्य होने का गुण इस प्रकार बताया-
¨हदू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाई, कहै कबीर सो जीवता, जो दुहूं के निकट न जाई।
समाज मानव का कर्म क्षेत्र है। उसे अपने को समाज उपयोगी बनाना पड़ता है। समाज वस्तुत: परोपकार एवं सहानुभूति पर ही आधारित है। सभी लोग यदि अपने-अपने स्वार्थो का परित्याग कर कुछ सहयोग एवं सहानुभूति का वातावरण बनाएं तो समाज की अनेक कमियों का निराकरण हो जाएगा। लोक सेवा के परोपकार से जहां समाज का हित होता है, वहां मानव का व्यक्तित्व उभरता है। निस्वार्थ भाव से दीन दुखियों की सेवा करते हैं, वे ही लोकप्रिय बनते हैं। संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसे दूसरों की सेवा तथा सहानुभूति की अपेक्षा न हो। सबको सहानुभूति एवं सहायता की आवश्यकता होती है, तो सभी में सेवा, सहानुभूति तथा परोपकारी भावना का होना आवश्यक है। इसी का नाम सहयोग है और सहयोग देना मानवीय कर्तव्य है।
-धीर ¨सह, उप प्रधानाचार्य
मदरलैंड पब्लिक स्कूल शामली।
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