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सेहत व पर्यावरण सुधार रही सल्फर फ्री चीनी

जुबान को भाने वाली चीनी कई बार सेहत को नुकसान पहुंचाती थी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 12:29 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 12:29 AM (IST)
सेहत व पर्यावरण सुधार रही सल्फर फ्री चीनी
सेहत व पर्यावरण सुधार रही सल्फर फ्री चीनी

जेएनएन, शाहजहांपुर : जुबान को भाने वाली चीनी कई बार सेहत को नुकसान पहुंचाती थी। इसका तोड़ निकाला सल्फर फ्री चीनी से। जिले की निगोही स्थित चीनी मिल ने भी सल्फर मुक्त चीनी का उत्पादन शुरू कर दिया है। पहले ही वर्ष में इसकी मांग भी बढ़ने लगी। खास बात, चीनी मिलों से सल्फर युक्त पानी निकलने ने खेतों, फसलों को अब तक हो रहा नुकसान भी नहीं होगा। अब तक डबल सल्फिटेशन प्रक्रिया से बनती थी चीनी

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सामान्य चीनी बनाने के लिए डबल सल्फिटेशन प्रक्रिया यानी गन्ना के रस को दो बार सल्फर में घोलकर साफ किया जाता था। इसमें प्रति क्विंटल चीनी उत्पादन में 220 ग्राम चूना तथा 80 ग्राम सल्फर का प्रयोग होता था। इससे कई बार चीनी में सल्फर की मात्रा निर्धारित 20 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) के सापेक्ष 70 पीपीएम तक समाहित हो जाती थी।

सल्फर की मात्रा मानक से अधिक होने के कारण चीनी का निर्यात भी प्रभावित था। चीनी को साफ करने के लिए अभी तक सभी मिलों में इसी प्रक्रिया से काम होता है। अब सल्फर फ्री चीनी का उत्पाद होने से विश्व बाजार में भारतीय चीनी की डिमांड बढ़ गई। नई तकनीकि में सिर्फ चूना का उपयोग

सल्फर फ्री चीनी उत्पादन के लिए जिस नई तकनीकि का उपयोग किया जा रहा है, उसमें दो बार गन्ना के रस को सिर्फ चूना घोलकर साफ किया जाता है। इसके बाद चीनी तैयार की जाती है, लेकिन यह चीनी खाने लायक नहीं होती है। इसे पुन: पानी और चूना मिलाकर गर्म किया जाता है। तब जाकर सल्फर फ्री शुद्ध चीनी बनती है। निगोही चीनी मिल समेत सूबे की करीब दर्जन भर चीनी मिलें अब इसी तकनीकि से सल्फर फ्री चीनी बना रही है। सल्फर फ्री चीनी से बन रही पेप्सी व कैडबरी

सल्फर फ्री चीनी की मांग तेजी से बढ़ रही है। निगोही चीनी मिल के अध्याशी कुलदीप कुमार बताते हैं कि पेप्सी, नेस्ले, कैडबरी, हेंज सरीखी 15 बहुराष्ट्रीय कंपनी उनसे सल्फर फ्री चीनी की मांग करती है। सेना में भी अब सल्फर फ्री चीनी की ही डिमांड है। गला संबंधी रोग, संक्रमण करता है सल्फर

चिकित्सकों के मुताबिक, सल्फर भारी रसायन है। यह जीवों के लिए खतरनाक माना जाता है। सल्फरयुक्त चीनी गला संबंधी रोग, संक्रमण का कारण बनती थी। इससे मुक्त चीनी से ब्रॉन्कायटिस, अस्थमा, जकड़न, गला जनित रोगों से निजात मिल सकेगी। खेतों को नुकसान पहुंचा रहा था पानी

सल्फर से शोधित चीनी के बाद निकलने वाला पानी बाहर खेतों में छोड़ दिया जाता है। खेतों की उर्वरा शक्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वहीं, चीनी बनाने की प्रक्रिया के दौरान सल्फर डाई ऑक्साइड उत्सर्जन से वायुमंडल को नुकसान पहुंच रहा है। निगोही चीनी मिल के अध्याशी कुलदीप कुमार बताते हैं कि अब ट्रीटमेंट प्लांट से शोधित और सल्फर मुक्त जल ही बाहर आता है। वर्जन

सल्फर फ्री चीनी की मांग बढ़ी है। कुल चीनी में से करीब 30 फीसद सल्फर फ्री चीनी का उत्पादन हो रहा है। सभी चीनी मिलों को सल्फरमुक्त चीनी उत्पादन में परिवर्तित करने की योजना है।

-संजय आर भूसरेड्डी, गन्ना आयुक्त व प्रमुख सचिव


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