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सरकारी गवाही की बजाय स्वीकारी थी फांसी

19 दिसंबर 1927..। शाहजहांपुर के तीन क्रांतिकारियों पंडित रामप्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Dec 2020 12:30 AM (IST)Updated: Sat, 19 Dec 2020 12:30 AM (IST)
सरकारी गवाही की बजाय स्वीकारी थी फांसी
सरकारी गवाही की बजाय स्वीकारी थी फांसी

अंबुज मिश्र, शाहजहांपुर : 19 दिसंबर 1927..। शाहजहांपुर के तीन क्रांतिकारियों पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। इससे पहले उनकी एकता को तोड़ने का प्रयास भी किया गया। हिदू-मुस्लिम के नाम दरार डालने की कोशिश हुई, सरकारी गवाह बनाकर बचाने का लालच दिया, मगर अंग्रेजों की कोई चाल कामयाब नहीं हुई। इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बन गया। वे तीनों बलिदानी इस देश के युवाओं की प्रेरणा बन गए।

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नौ अगस्त 1925 को काकोरी में ट्रेन लूटकर क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन एकत्र करने के मामले में अंग्रेजों ने पकड़ा था। जेल में रखा। इसके बाद गोरखपुर में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, फैजाबाद में अशफाक उल्ला खां व इलाहाबाद की नैनी जेल में ठाकुर रोशन सिंह ने हंसते-हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया।

जेल में रहकर मोह छूट गया

22 जनवरी 1892 को खुदागंज के नवादा दरोबस्त गांव में जन्मे ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की नैनी जेल में रखा गया था। उन्होंने वहां से अपने मित्र को पत्र लिखा था, जिसमें कहा था कि दो साल जेल में रहकर ईश्वर का खूब भजन किया। मोह-माया सब छूट गया। फांसी के बाद उनके अंतिम दर्शन के लिए इलाहाबाद में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी थी।

जब वकील हुए शर्मिंदा

साहित्यकार डा. प्रशांत अग्निहोत्री बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में मुकदमे के दौरान कोशिश हुई कि अशफाक अपना जुर्म इकबाल कर लें। बिस्मिल के खिलाफ झूठी बातें बताकर उन्हें सरकारी गवाह बनाने की कोशिश हुई मगर, अशफाक नहीं डिगे। उनके वकील कृपाशंकर हजेला ने भी ऐसा प्रयास किया तो बोले थे कि आपकी ऐसी सलाह पर मुझे हैरत है। जिस पर हजेला शर्मिंदा हुए।

बोले अशफाक, हां है एक अफसोस

कृपाशंकर हजेला की आत्मकथा का हवाला देते हुए डा. प्रशांत बताते हैं कि फैसले के दिन अशफाक उल्ला खां बसंती रंग की धोती पहनकर आए थे, मानो किसी सम्मेलन में जा रहे हों। फांसी की सजा के लिए हजेला ने अफसोस जाहिर किया तो अशफाक ने पलटकर कहा था.. मुझे लगता है था कि जेल में मेरा वजन सबसे ज्यादा बढ़ गया है, मगर एक अन्य कैद का मुझसे भी ज्यादा है। हंसकर बोले, मुझे इस बात का अफसोस कि यदि 10 दिन और जेल में रह लेता तो उससे ज्यादा वजन कर लेता।

बिस्मिल की आंख में आंसू देख मां ने पूछा सवाल

एसएस कालेज में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा. विकास खुराना बताते हैं कि फांसी से एक दिन पहले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की मां उनसे मिलने गोरखपुर जेल गयी। उन्हें देख बिस्मिल की आंख नम हो गई। मां ने उन्हें राजा हरिश्चंद्र और दधीचि के पौराणिक संस्मरण सुनाए। कहा कि तुम बहादुर हो तो यह आंसू कैसे? बिस्मिल ने कहा कि मेरा और तुम्हारा रिश्ता ऐसा है जैसे घी और आग का होता है। जब तुम पास आती हो तो यह दिल पिघलता है।

स्वयं लड़ा था अपना केस

डा. खुराना बताते हैं कि भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से प्रकाशित किताब रिमेम्बर्स अस वन्स इन ए व्हाइल, लेटर्स ऑफ मार्टियर्स में इसका जिक्र है। बिस्मिल ने अपना केस स्वयं लड़ा था। एक बार जज ने जब उनसे डिग्री के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि सम्राट बनाने वालों को डिग्री की कोई जरूरत नहीं होती। उन्हें लिखित पश्चाताप करने पर रुपये देकर बाहर भेजने का भी लालच दिया गया, पर इन्कार कर दिया। फांसी के तख्त पर खड़े होकर कहा था कि मैं ब्रिटिश राज का पतन चाहता हूं।

जिले में हैं तीनों क्रांतिकारियों के घर

अशफाक उल्ला खां का पैतृक घर जलालनगर में है। उनके प्रपौत्र का नाम भी अशफाक उल्ला है, वही देखरेख करते हैं। ठाकुर रोशन सिंह का घर नवादा दरोबस्त में है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वहां जा चुके हैं। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का घर खिरनी बाग में है। उनके परिवार के लोग अब यहां नहीं रहते हैं। मकान दूसरे लोगों ने खरीद लिया था।

शाहजहांपुर के कवि अग्निवेश ने अशफाक उल्ला खां के विचारों को कुछ यूं अभिव्यक्त किया था।

बिस्मिल हिदू हैं, कहते हैं फिर आऊंगा-फिर आऊंगा, ले नया जन्म ऐ भारत मां तुझको आजाद कराऊंगा

जी करता है मैं भी कह दूं पर मजहब में बंध जाता हूं, मैं मुसलमान हूं, पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूं।

हां खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूंगा, और जन्नत के बदले उससे इक नया जन्म मांगूंगा।


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