3 'जिगरबाजों' ने हिला दी थी ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें, काकोरी कांड में हंसते-हंसते फंदे पर झूल गए
शाहजहांपुर के युवा क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिला दी थीं। काकोरी में सरकारी खजाना लूटने के बाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठ ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, शाहजहांपुर। जिस उम्र में युवा करियर चुनने की उधेड़बुन में होते हैं। उस आयु में उन वीरों ने अपना रास्ता चुन लिया था। अंजाम पता था, लेकिन उनका लक्ष्य तय था, भारत माता की आजादी...। इसके लिए उन्होंने हर वो कदम उठाया, जिससे ब्रिटिश सरकार की जड़ें कमजोर हों।
अंग्रेजों के सामने झुकने की बजाय फांसी के फंदे को हंसते-हंसते चूम लिया। इन्हीं वीर बलिदानियों का शुक्रवार को बलिदान दिवस है। 19 दिसंबर 1927 यहां के तीन क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था।
देश को पराधीनता से मुक्त कराने के लिए धन की आवश्यकता पड़ी तो सरकारी खजाना लूटने के लिए नौ अगस्त 1925 को काकोरी में लूट की, जिससे अंग्रेज सरकार की चूलें हिल गईं। तीनों को एक दूसरे के विरुद्ध झूठी गवाही देकर सरकारी गवाह बनने पर फांसी की सजा से माफी का लालच दिया गया, लेकिन यह वीर न झुके।
गिरफ्तारी के दो वर्ष बाद पं. रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद व ठाकुर रोशन सिंह को प्रयागराज की नैनी जेल में फांसी दे दी गई। तीनों को अंतिम विदाई देने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ा था।
साहित्यकार डा. प्रशांत अग्निहोत्री बताते हैं कि आधुनिक स्वतंत्रता आंदोलन में अशफाक पहले मुस्लिम थे जिन्हें फांसी हुई। उनका शव शाहजहांपुर लाया जा रहा था तो लखनऊ स्टेशन पर गणेशंकर विद्यार्थी अंतिम दर्शन को पहुंचे।ठाकुर रोशन सिंह का शव घर नहीं लाने दिया गया।
उनको नैनी जेल के बाहर अंतिम विदाई देने के लिए भारी भीड़ पहुंची थी। जबकि बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी के बाद उनके पिता मुरलीधर, मां मूलमती को शव इस शर्त पर दिया कि वह वहीं राप्ती नदी के किनारे अंतिम सस्कार करेेंगे। जबकि चौथे क्रांतिकारी बंगाल निवासी राजेंद्र नाथ लहिड़ी को गोंडा जेल में फांसी दी गई।
40 क्रांतिकारियों को किया गिरफ्तार
नौ अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी में रेलवे स्टेशन के आगे आठ डाउन सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रोककर क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूटा था। इन पर पांच हजार का इनाम घोषित किया गया था। पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह सहित 40 लाेग गिरफ्तार हुए थे।
जबकि अशफाक उल्ला खां को एक वर्ष बाद दिल्ली से पकड़ा जा सका था। चंद्रशेखर आजाद अंतिम सांस तक पकड़े नहीं जा सके।
18 माह चले मुकदमे में 16 क्रांतिकारियों को चार वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा मिली। जबकि रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, ठाकुर रोशन सिंह व राजेंद्र नाथ लहिड़ी को 19 दिसंबर को फांसी दी गई।

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