दिव्यांग बच्चों की यशोदा बनीं रीना
बेटियां बोझ नहीं जीवन का सहारा हैं। गर्भ में हत्या तो सबसे बड़ा अपराध है।
नरेंद्र यादव, शाहजहांपुर : बेटियां बोझ नहीं जीवन का सहारा हैं। गर्भ में हत्या तो सबसे बड़ा अपराध है। मेरी बेटी एलिस ऑटिज्म पीड़ित है। डेढ़ साल की उम्र में बीमारी का पता चला। लखनऊ, दिल्ली, बंगलौर समेत दर्जन भर शहरों में इलाज के साथ परवरिश को प्रशिक्षण भी लिया। इस बीच बेटी की ही तरह आíथक रूप से कमजोर परिवारों के मानसिक मंदित बच्चों की दशा देख ममता द्रवित हो उठीं और सेरेब्रेल पॉल्सी, ऑटिज्स, हायपर एक्टिव, एडीएचडी समेत मानसिक मंदित दिव्यांग बच्चों की परवरिश का संकल्प ले लिया। 11 साल के ममत्व के अनुभव भरे यह शब्द है दिव्यांग बच्चों के लिए यशोदा बनीं रीना वर्मा के।
गुदड़ी बाजार निवासी पंकज वर्मा की पत्नी रीना सराफा व्यवसायी परिवार से है। 2015 में उन्होंने बेटी एलिस को समर्पित तारे जमीन पर नाम से स्कूल खोला। वर्तमान में 40 मानसिक मंदित दिव्यांग बच्चे दर्जन भर विशेषज्ञ शिक्षकों के दिशा निर्देशन में शिक्षण व प्रशिक्षण ले रहे हैं।
सास आशा के प्रोत्साहन से पूरी हुई अभिलाषा
रीना ने सास बहु के रिश्ते को भी नए आयाम दिए। मानसिक मंदित बेटी एलिस की सेवा देख सराफा व्यवसायी ससुर रामबाबू शर्मा व सास आशा का भी दिल पसीजा। उन्होंने रीना वर्मा के हौसले को देख संबल दिया। पति पंकज वर्मा भी मदद में सहभागी बने। रीना के दिल की आवाज सुन आशा वर्मा ने मानसिक मंदिर बच्चों के लिए स्कूल खोलने को प्रोत्साहित किया।
लखनऊ के परवरिश स्कूल से मिली मिली प्रेरणा
रीना वर्मा बताती है 2011 में बेटी एलिस तीन साल की थी। मानसिक मंदित की पुष्टि होने पर लखनऊ के परवरिश स्कूल में प्रवेश दिलाया। खुद भी वहां रहने लगी। परवरिश स्कूल की संस्थापक कुसुम मैडम का बच्चा भी मानसिक मंदित था। उनके समर्पण भाव को देख मानसिक मंदित बच्चों के लिए स्कूल खोलने की ठान ली।
आवासीय विद्यालय को संजोया सपना
मानसिक मंदित बच्चों के शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए तारे जमीन पर विद्यालय में दर्जन भर विशेष शिक्षक कार्यरत हैं। शैलेंद्र कुमार, शिवेंद्र, शांति, नीलम, रूबी के जिम्मे मुख्य व्यवस्था है। रीना वर्मा ने मानसिक मंदित दिव्यांगों को जीवन भर सहारा देने के लिए बरेली मोड़ पर आवासीय विद्यालय का सपना संजोया है।
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