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    18 साल के संघर्ष से मिला न्याय, 12 साल बाद दर्ज हुआ मुकदमा, 2004 से 2011 तक न्याय के लिए अधिकारियों और नेताओं से चक्कर लगाते रहे रामकीर्ति

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 19 Feb 2022 12:53 AM (IST)

    चचुआपुर निवासी रामकीर्ति के धैर्य संयम व साहस के बदौलत ही 18 साल बाद तत्कालीन पुलिस अधीक्षक दस थानाध्यक्ष समेत 18 पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हो सका। निश्चित ही इस मुकाम तक पहुंचने में वादी को कई समस्याओं से जूझना पड़ा होगा। लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद रामकीर्ति का कानून पर भरोसा मजबूत हुआ। इससे सच की लड़ाई लगने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संघर्ष की प्रेरणा की भी मिलेगी।

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    18 साल के संघर्ष से मिला न्याय, 12 साल बाद दर्ज हुआ मुकदमा, 2004 से 2011 तक न्याय के लिए अधिकारियों और नेताओं से चक्कर लगाते रहे रामकीर्ति

    जेएनएन, शाहजहांपुर : चचुआपुर निवासी रामकीर्ति के धैर्य, संयम व साहस के बदौलत ही 18 साल बाद तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, दस थानाध्यक्ष समेत 18 पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हो सका। निश्चित ही इस मुकाम तक पहुंचने में वादी को कई समस्याओं से जूझना पड़ा होगा। लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद रामकीर्ति का कानून पर भरोसा मजबूत हुआ। इससे सच की लड़ाई लगने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संघर्ष की प्रेरणा की भी मिलेगी।

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    रामकीर्ति का अपने भाई प्रह्लाद और पडोसी धनपाल से बेहद प्रेम था। जब पुलिस ने अक्टूबर 2004 में एंकाउंटर में मार दिया, तो उन्होंने न्याय दिलाने की ठान ली। रामकीर्ति बताते है कि पहले प्रशासन पर भरोसा जताया। डीएम के यहां न्याय की गुहार की। तत्कालीन जिलाधिकारी अमित घोष ने बात सुनी। उन्होंने घटना को संदिग्ध माना। लेकिन पुलिस ने विभाग को बचाने के लिए मुकदमा दर्ज नहीं किया। विभाग के सभी उच्चाधिकारियों से फरियाद की। लेकिन किसी ने नहीं सुनी। राजनेताओं ने कोई ध्यान नहीं दिया। 2012 में मुकदमा दर्ज कराने के लिए सीजेएम कोर्ट में वाद दायर किया। लेकिन खचिका खारिज हो गई। लेकिन रामकीर्ति ने हार नही मानी।

    कोई अपराधिक रिकार्ड नहीं : रामकीर्ति के मुताबिक प्रहलाद व धनपाल का कोई अपराधिक रिकार्ड नहीं था। लेकिन उसके बाद भी पुलिस ने नरेशा धीमर गिरोह का सदस्य बताकर एनकाउंटर कर दिया। उन्होंने बताया कि फर्जी एनकाउंटर करने के बाद एसपी ने सभी पुलिसकर्मियों को सम्मानित भी किया था।

    पुलिस ने ऐसी रची थी कहानी : एनकाउंटर को सही साबित करने के लिए पुलिस ने पूरी प्लानिग की थी। जो रिपोर्ट तत्कालीन एसपी की ओर से कोर्ट में पेश की गई थी। उसमे बताया गया था कि नरेशा धीमर गिरोह के सफाया के लिए रामगंगा की कटरी में तीन टीमें गठित की गई थी। एक टीम को नेतृत्व सीओ जलालाबाद जय करन भदौरिया, दूसरी का सीओ तिलहर मुन्नू लाल वर्मा व तीसरी टीम को नेतृत्व सीओ सदर आरके सिंह कर रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया कि नरेशा धीमर गिरोह के साथ कटरी में मौजूद है। वह गिरोह के सदस्यों के साथ खाना बना रहा है। जब टीमें पहुंची तो एक छच्चर में 15 बदमाश बैठे थे। सभी के पास तमंचे व बंदूकें थी। बदमाशें ने पुलिस टीम पर फायरिग शुरू कर दी। आत्मसमर्पण के लिए कहा गया कि तो गोलियां चलाना शुरू कर दी। गोली कांस्टेबल बदन सिंह व मोहम्मद अनीस के लगी। जवाबी फायरिग में कुछ बदमाश भी घायल हो गए। कुछ मगटोरा की कटरी में भाग गए। फायरिग करते हुए पीछा किया तो दो बदमाश मरे पड़े मिले।

    143 राउंड फायरिग हुई : पुलिस के मुताबिक बदमाशों से मुठभेड़ के दौरान 143 राउंड फायरिग हुई। जिसमे सिर्फ 25 खोखे बरामद हुए। जबकि बाकी खोखे रामगंगा नदी में खो गए।

    ग्रामीणों को भगाया : रामकीर्ति के मुताबिक जिस समय एनकाउंटर किया गया था उस समय तमाम ग्रामीण मौके पर थे। लेकिन पुलिसकर्मियों ने सभी को भगा दिया। ग्रामीणों के मुताबिक जब धनपाल व प्रहलाद को जब गोली मारी तब सभी ने पतेल से छिपकर देखा भी था।