तामेश्वरनाथ धाम की महिमा अपरंपार
संतकबीर नगर : प्राचीन शिवमंदिर तामेश्वरनाथ धाम का इतिहास आदि काल से जुड़ा है। द्वापर युग में पांडवों
संतकबीर नगर : प्राचीन शिवमंदिर तामेश्वरनाथ धाम का इतिहास आदि काल से जुड़ा है। द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती ने यहां शिव की आराधना कर राजपाट के लिए आशीर्वाद मांगा था। राजकुमार सिद्धार्थ यहां राजसी वस्त्र त्याग कर मुंडन कराकर तथागत बने। मनोवांछित फल प्राप्ति होने से यहां जलाभिषेक करके पूजन अर्चन की परंपरा चली आ रही है।
देवाधिदेव महादेव बाबा तामेश्वरनाथ धाम पूर्व में ताम्रगढ़ के नाम से जाना जाता था। धाम का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। यहां स्वत: शिवलिग प्रगट होने का प्रमाण मिलता है। ऐतिहासिक शिवलिग को दूसरे स्थान पर ले जाने का प्रयास हुआ लेकिन संभव नही हो सका। खलीलाबाद बसने के बाद भी खुदाई की गई कितु सफलता नहीं मिली। डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन बांसी नरेश रतनसेन सिंह ने यहां मंदिर का स्वरूप दिया। बाद में सेठ रामनिवास रुंगटा ने संतान की मुराद पूरी होने पर विस्तार दिया। मुख्य मंदिर के साथ छोटे-बड़े कुल सोलह मंदिर हैं। एक मंदिर देवस्वरूप उस मानव का है जिन्होंने जीते जी समाधि ले ली। प्रसिद्ध संत देवरहवा बाबा को यहीं से प्रेरणा प्राप्त हुई थी। गोस्वामी वंशज पूजन-अर्चन की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं।
ऐसे पहुंचे तामेश्वरनाथ धाम
खलीलाबाद-धनघटा मार्ग करीब आठ दक्षिण की तरफ तामेश्वरनाथ धाम स्थित है। शहर से यहां पहुंचने के लिए मैनसिर चौराहा और इसके पूरब नौरंगिया होते हुए जाना पड़ता है। धाम के नाम से पुलिस चौकी भी स्थापित है। पुलिस चौकी के सामने शिव मंदिर का मुख्य द्वार है। धनघटा की तरफ से भी आने वाले श्रद्धालुओं को मैनसिर के निकट नौरंगिया के पास जाना पड़ता है।
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