मगह से पड़ा मगहर का नाम !
संपूर्ण विश्व को प्रेम, सौहार्द का संदेश देने वाले संतकबीर दास की निर्वाण स्थली मगहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे को लेकर हलचल बढ़ गई है। मानवता का संदेश देने वाली कबीर की धरती आस्था के साथ इतिहास भी समेटे हुए है। जनपद मुख्यालय से आठ किमी दूर स्थित मगहर का नाम कभी मगह था।
वेदप्रकाश गुप्त, संतकबीर नगर : संपूर्ण विश्व को प्रेम, सौहार्द का संदेश देने वाले संतकबीर दास की निर्वाण स्थली मगहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे को लेकर हलचल बढ़ गई है। मानवता का संदेश देने वाली कबीर की धरती आस्था के साथ इतिहास भी समेटे हुए है। जनपद मुख्यालय से आठ किमी दूर स्थित मगहर का नाम कभी मगह था। नामकरण के बारे में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। कबीर मठ के महंत विचारदास बताते हैं कि संतकबीर दास ने लिखा है कि काशी मरै सो जाए मुक्ति को, मगह गधा होय। यहां मगह का अर्थ मगध से है। यही मगह बाद में मगहर हो गया। मगहर से पूरी दुनिया को धार्मिक सौहार्द का संदेश मिलता है। कबीर साहब की निर्वाण स्थली के बिल्कुल समीप स्थित मजार पर ¨हदू व मुस्लिम समुदाय के लोग मत्था टेकते हैं।
एक जनश्रुति के मुताबिक प्राचीन काल में मगध (मगह) देश के राजा ने इस बस्ती की स्थापना की थी। इसलिए इस स्थान का नाम मगह पड़ गया जो कालांतर में मगहर के नाम से परिवर्तित हो गया। हालांकि पुरातात्विक साक्ष्यों में इस जनश्रुति की पुष्टि नहीं होती है।
कबीर साहब की समाधि एवं मजार का निर्माण कब हुआ, कह पाना कठिन है। माना जाता है कि मूल भवन का समय-समय पर इस प्रकार जीर्णोद्धार किया जाता रहा, जिससे उसका मूल स्वरूप अवस्थित रह सके। विचारदास बताते एक अन्य जनश्रुति का हवाला देते हैं और बताते हैं कि संतकबीर की समाधि एवं मजार का सर्वप्रथम जीर्णोद्धार सन् 1567 में गाजीपुर के शासक पहाड़ खां के दत्तक पुत्र बिजली खां द्वारा किया गया था। संतकबीर साहब की मजार शुरू से जुलाहा परिवार की देखरेख में रही। एक अन्य ¨कवदंती के अनुसार मगहर शुरू से ही थारुओं के आधिपत्य में रहा, जिसके किले के अवशेष नजदीक के ग्राम घनश्यामपुर में स्थित हैं।
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