कबीर धूनी संतकबीर, गुरु गोरक्षनाथ, नानक देव, संत रविदास के मिलन का साक्षी
आमी के तट पर स्थित है कबीर धूनी ...और पढ़ें

संतकबीर नगर : संतकबीर की निर्वाण स्थली मगहर से करीब एक किमी दूर गोरखपुर व संतकबीर नगर सीमा पर आमी नदी के तट पर गोरख तलैया व कबीर धूनी है। यह स्थली संतकबीर दास, गुरु गोरक्षनाथ, नानक देव, संत रविदास व वैष्णव संत केशरदास के मिलन का साक्षी है। कबीर धूनी के पुजारी रामशरण दास ने बताया कि सूखा पड़ने पर संतकबीर दास
119 वर्ष की अवस्था में जौनपुर के नवाब बिजली खां की प्रार्थना पर काशी से यहां आए थे। यह क्षेत्र 12 वर्ष से अकालग्रस्त था। बारिश न होने से खेत-खलिहान सूखे थे। लोग दाने-दाने को तरस रहे थे। नवाब की प्रार्थना पर कबीर यहां आने को तैयार हुए। यहां पर गुरु गोरक्षनाथ, गुरुनानक देव, संत रविदास, वैष्णव संत केशरदास ने सत्संग किया था। अछ्वुत मिलन के बाद से यहां धूनि जल रही है। यहां भंडारा आदि करके प्रसाद वितरण हो रहा है। पास में गुरुद्वारा भी निर्मित हुआ। मगहर में होने वाले कार्यक्रम का शुभारंभ यहीं से होता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर कबीर धुनि स्थित है। समाधि स्थल से एक किमी दूर पर योग साधना एवं संत साधना के मिलने ¨बदु के रूप में स्थित यह स्थान श्रमिक परंपरा का संगम है। यहां योग और संत साधना का अछ्वुत समन्वय स्थापित हुआ। संतकबीर दास के आगमन से केशर दास उत्साहित थे। विशाल भोज का आयोजन किया। जटाधारी, धुनीधारी, खड़ेसरी, चुंडिम, मुंडित, षष्ट दर्शन संतों का जमावड़ा हुआ। आमंत्रण पर आए महान योगी गुरु गोरखनाथ ने अपनी धुनि लगाई थी। सूखा व अकाल से झुलसती हुई भूमि को जल से अभि¨सचित करने के लिए संतकबीर ने यही पर तेज धूप में धुनि लगाई। आग जलती रही धुनि सुलगती रही। 119 वर्ष की अवस्था में कबीर धुनी, धुना और धुन, ताप, तप और तपन में तपते रहे। लोगों की गुहार पर उन्होंने हठ योगी गुरुगोरक्ष नाम की ओर इशारा किया। इसके बाद चुनौती को स्वीकार कर गोरक्षनाथ ने दाहिने पांव से पृथ्वी को दबाया, जल निकलने के बाद तलैया बन गई। जल कम था फिर लोगों ने कबीर को पुकारा थोड़ी ही देर में घनघोर बरसात हुई। यहां गोरख योगी धुनी के पा रामधुन लगाते रहे। यही बाद में कबीर धुनि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां मंदिर भी बना हुआ है।
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