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    Jitiya Vrat 2023: महाभारत काल से जुड़ा है जितिया व्रत का रहस्य, संतान के दीर्घायु के लिए माताएं कल रखेंगी व्रत

    जीवत्पुत्रिका व्रत रखकर कल महिलाएं अपने संतान के दीर्घायु की कामना करेंगी। इस व्रत में नदी व सरोवर के तट पर बरियार के पौधे के पूजन करने की परंपरा है। अगली सुबह महिलाएं दही चिउड़ा का भोग लगाकर पारण करती हैं। पुत्र को धागे में बंधे जिउतिया को पहनाने की तैयारी है। कुछ महिलाएं सोने-चांदी की जिउतिया गुथवा रही हैं।

    By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Thu, 05 Oct 2023 05:07 PM (IST)
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    Jitiya Vrat 2023: निर्जल व्रत रखकर महिलाएं करेंगी पूजन। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    जागरण संवाददा, संतकबीर नगर। संतान के दीर्घायु को माताएं शुक्रवार को जीवत्पुत्रिका व्रत रखेंगी। निर्जल व्रत रखकर प्रचलित पौराणिक कथाओं का श्रवण कर पूजन करेंगी। संतान के यशस्वी होने की कामना करेंगी। पर्व को लेकर महिलाओं में उत्साह है, इसकी तैयारियां पूरी की जा रहीं है। महिलाएं भगवान सूर्य, राजा जीमूतवाहन की पूजा करके सुख-समृद्धि की प्रार्थना करेंगी। कथा सुनकर संतान के कल्याण की मंगलकामना होगी।

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    ये है व्रत की परंपरा

    शाम को महिलाएं स्वच्छ व नए परिधान में टोलियों के साथ मंदिर, पार्क, बाग-बागिचा, नदी व सरोवर के तट पर व्रत की महत्ता वाले बरियार के पौधे के पूजन करने की परंपरा है। अगली सुबह दही, चिउड़ा का भोग लगाकर करके पारण करती हैं। पुत्र को धागे में बंधे जिउतिया को पहनाने की तैयारी है। कुछ महिलाएं सोने-चांदी की जिउतिया गुथवा रही हैं।

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    महाभारत काल से जुड़ा है व्रत

    आचार्य कमलेश पांडेय के अनुसार कथा है कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तो पांडवों की अनुपस्थिति में अश्वत्थामा ने अपने साथियों के साथ उनके सैनिकों व द्रौपदी के पुत्रों का वध कर दिया था। दूसरे ही दिन केशव को सारथी बनाकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का पीछा किया और उसे कैद कर लिया, लेकिन श्रीकृष्ण के यह कहने पर कि ब्राह्मणों का वध नहीं करना चाहिए।

    अर्जुन ने अश्वत्थामा का सिर मुंडवाकर छोड़ दिया था। इस घटना से अश्वत्थामा अपमानित महसूस कर अपना अमोघ अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर चला दिया। स्थिति को भांपते हुए श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप धारण कर उत्तरा के गर्भ में प्रवेश किया और अमोघ अस्त्र को अपने शरीर पर झेल कर शिशु की रक्षा की। यही पुत्र आगे चलकर परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुए। उसी समय से माताओं द्वारा व्रत की परंपरा है।

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