कबीर चौरा पर गुरु पूजन, समाधि व मजार पर टेका माथा
संतकबीर परिनिर्वाण स्थली पर तीन दिवस महोत्सव के समापन पर हुआ भंडारा भजन-कीर्तन के साथ साधु-संतों ने किया सद्गुरु की महिमा का बखान

जागरण संवाददाता, संतकबीर नगर : सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक सद्गुरु कबीर का 623वां प्राकट्य दिवस समारोह गुरुवार को संपन्न हुआ। परिनिर्वाण स्थली मगहर में तीन दिवसीय कबीर महोत्सव के समापन पर गुरु पूजा के साथ समाधि व मजार पर माथा टेक कर विचारों को आत्मसात करने की शपथ ली गई। साधु-संतों ने सद्गुरु की वाणी को जन-जन में पहुंचाने की अपील करते हुए सद्भाव का संदेश दिया। अंत में सेवा कार्य के साथ भंडारा करके प्रसाद वितरित किया गया।
महंत विचार दास ने कहा कि कबीर के पदचिह्नों और उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर समाज में काफी सुधार किया जा सकता है। साहेब ने ऊंच-नीच, भेदभाव, जात-पात व कुरीतियों से दूर रहकर परमात्मा को अपने अंदर ढूंढने की बात कही। उनके सत्य, अहिसा, प्रेम और आपसी भाईचारा के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। साहेब के विचार को जन-जन में पहुंचाना ही कार्यक्रम की सार्थकता है। चौका आरती, सत्संग, आरती के बाद संगत विदा हुई।
कबीर के निर्गुण पर झूमे लोग
संतकबीर नगर: सद्गुरु संत कबीर महोत्सव में गुरुवार की शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ के कलाकारों ने कहत कबीर की संगीतमय नाट्य प्रस्तुति की। नाटक में संतों, साधुओं के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को प्रस्तुत किया गया। कबीर की निर्गुण भक्ति परंपरा का प्रभाव प्रदर्शित किया। इसके साथ ही कबीर के निर्गुण पर लोग झूमते रहे। घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे..और कछु लेना न देना मगन रहना.. जैसे भजन सुनकर लोग भक्ति रस में डूब गए। लोगों ने तालियां बजाकर कलाकारों का उत्साह बढ़ाया। निदेशक दिनेश खन्ना, संगीत ज्ञानदीप और आलेख अनिल शर्मा का रहा। पूजन नृत्य कलाकार विशाल कृष्णा के साथ मेधी, रितेश अस्थाना, रितु पांडेय, विक्की, अब्दुल सलाम अंसारी, नीतीश झा, कविता यादव, अंकुर वर्मा, रोहित श्रीवास्तव, अभिषेक, श्यामा, मनीषा, अंजली की प्रस्तुति सराहनीय रही। इस मौके महंत विचारदास, निदेशक प्रोफेसर सुरेश शर्मा, कार्यक्रम प्रभारी विनोद शुक्ल, अमृत द्विवेदी, अरविद शास्त्री, अवधेश सिंह आदि लोग मौजूद रहे।
राकेश उपाध्याय के निर्गुण भजन पर झूमे श्रोता
संतकबीर अकादमी के सभागार में गुरुवार की शाम गोरखपुर के गायक राकेश उपाध्याय ने निर्गुण भजन से लोगों को मुग्ध किया। है हंस ये पिजड़ा नाहीं तेरा, सुनाकर श्रोताओं को जीवन की सत्यता से परिचित कराया। माया महा ठगिनी हम जानी सुनकर श्रोताओं को भक्ति में झूमने को मजबूर कर दिया। इसके बाद झुलनी का रंग सांचा हमार पिया, बीतल चले उमिरिया लोगवा न जाने को भी खूब सराहा गया। इसी के साथ ही गायिका साध्वी सेवादास ने भी कबीर के निर्गुण पर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। चला मना जहां प्रीतम बसे, सुनाकर माहौल को भक्तिमय कर दिया। तोरे गठरी में लागा चोर है, बटोहिया का सोये, पर श्रोता मुग्ध रहे।
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