धर्म की रक्षा के लिए गुरू तेग बहादुर ने दिया बलिदान
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संत कबीर नगर:
मानवता व अहिंसा के साथ धर्म रक्षा में कड़ी में अनेक तत्वदर्शियों, मनीषियों, गुरूओं ने स्वधर्म ध्वज का लहराकर अहिंसा व मानवता का संदेश दिया। इनकी गौरव गाथा का वर्णन इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। अपने धर्म और सुख-स्वार्थ के लिए त्याग करने वालों से धरा खाली नहीं है। औरों के हित के लिए सर्वत्र समर्पण व बलिदान करने वाला विरला ही होता है। सिख समाज में दसों गुरू भी इस धराधाम पर धर्म रक्षा के लिए अवतरित हुए। शीश झुकाने के बजाय शीश कटाने का संकल्प लेकर कार्य करने वाले महान गुरू का पवित्र बलिदान आज भी लोगों के रक्त में हिलोरे ले रहा है। गुरू परम्परा में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले गुरू तेग बहादुर ही थे। जिनका नाम आज परम श्रद्धा से लिया जाता है।
शहीदों के सिरताज हिन्द की चादर श्री गुरूतेग बहादुर सिंह का स्वर्णिम इतिहास रहा है। गुरू का सारा जीवन त्याग व बलिदान से परिपूर्ण है, जिन्होंने मानवता, सदाचार,आपसी सद्भाव, भाईचारा का पालन करने संदेश दिया।
गुरू परम्परा की नवम् ज्योति नौवी पात शाही के गुरू तेग बहादुर सिंह के बलिदान दिवस पर मंगलवार को बातचीत के दौरान समाज के लोगों में गुरू के प्रति त्याग, समर्पण व आदर का भाव दिखा।
गुरू पंथ के दास गुरूद्वारा गुरू सिंह सभा खलीलाबाद के अध्यक्ष अजीत सिंह ने कहा कि शहीदों के सिरताज गुरू तेग बहादुर की शहादत धर्म रक्षा के साथ अहिंसा व मानवता का संदेश देती रहेगी। कश्मीर के पण्डितों को जब जबरन धर्मान्तरण के लिए विवश किया गया, उनके परिवार को प्रताड़ित किया जाने लगा तो सवा मन जनेऊ उतरवाकर जबरन धर्मान्तरण कराने वाले का गुरू ने गर्व गुमान किया।
हरभजन सिंह ने कहा कि पंडितों द्वारा हिन्दू समाज का दुखड़ा सुन कर पटना के राजा गुरू तेग बहादुर ने महापुरूष के बलिदान देकर समस्या के समाधान की बात कहीं। दरबार में उनके पुत्र सात वर्षीय गुरू गोविन्द राय ने पिता को सबसे बड़ा महापुरूष कह कर उन्हें बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। सात वर्षीय पुत्र की धर्म के प्रति आस्था देख गुरू ने संदेश दिया। औरंगजेब तक संदेश पहुंचा कि एक परिवार को मुसलमान बना लेने पर सभी धर्म परिवर्तन स्वीकार कर लेंगे। नित्य के मारकाट से बचने के लिए औरंगजेब ने मुंह मागी मुराद पाकर आक्रमण किया, जिसमें गुरू ने बलिदान देकर समाज की रक्षा किया। उसके पश्चात दसवे गुरू के रूप में गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना व पंच प्यारे धर्म रक्षा के लिए सर्वत्र समर्पण कर दिया। जगजीत सिंह ने कहा कि गुरू ने दिल्ली के चांदनी चौक पर सिर कटा दिया पर धर्म न बदला। मानवता की रक्षा व औरों का हित हो जिसमें ऐसा करने की सीख गुरू ने दिया।
बीबी बलवंत सिंह, सतविन्दर टीटू, राजिन्दर कौर, रवीन्द्र पाल सिंह टोनी, जगवीर सिंह, मनजीत सिंह ने कहा कि शांति व अहिंसा के पुजारी गुरू तेग नाम के भांति बहादुर महापुरूष थे। धर्म रक्षा में शीश कटाने में विलम्ब नहीं किया। उनकी शहादत के बाद हिन्दू धर्म जगा और जालिम औरंगजेब का मुकाबला शुरू हुआ। गुरू चरन सिंह ने कहा कि गुरू का बलिदान समूचे समाज का प्रेरणा प्रदान कर रहा उनके आदर्शो से समाज का कल्याण संभव है।
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