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    सावधान रहें किसान! मौसम अनुकलू, सरसों की फसल पर रोग-कीटों का खतरा बढ़ा

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 12:40 PM (IST)

    संभल जिले में रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल सरसों अपनी बढ़वार के महत्वपूर्ण चरण में है। कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल की नियमित निग ...और पढ़ें

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    सरसों की फसल। जागरण

    संवाद सूत्र, जागरण, रजपुरा। संभल जिले में रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल सरसों इस समय अपनी बढ़वार के महत्वपूर्ण चरण में पहुंच चुकी है। बीते एक सप्ताह से जिले में मौसम अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है। दिन का तापमान 22 से 24 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 10 से 11 डिग्री सेल्सियस के बीच दर्ज किया जा रहा है।

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    दिन में हल्की धूप, रात में ठंड और सुबह के समय धुंध व ओस की परत सरसों की फसल के लिए जहां अनुकूल मानी जा रही है, वहीं इसी नमी के कारण कुछ रोगों और कीटों के सक्रिय होने का खतरा भी बढ़ गया है। कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल की नियमित निगरानी और समय पर उपचार की सलाह दी है।

    जनपद में सरसों अपनी बढ़वार के अहम चरण में


    कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जनपद में मौजूदा तापमान और वातावरण में मौजूद नमी झुलसा रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना रही है। सुबह के समय पत्तियों पर लंबे समय तक ओस टिके रहने से यह रोग तेजी से फैल सकता है। झुलसा रोग की पहचान पत्तियों, तनों और फलियों पर भूरे-काले रंग के गोल धब्बों और छल्लों के रूप में होती है। यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं और फलियों का विकास रुक जाता है, जिससे उपज पर सीधा असर पड़ता है।

    ओस और नमी से झुलसा व फफूंदी रोग की आशंका

    कृषि विभाग ने झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए किसानों को मैन्कोज़ेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी का 2.5 से 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी है। आवश्यकता पड़ने पर 10 से 12 दिन बाद दोबारा स्प्रे करने की भी सलाह दी। इसके साथ ही जिले में सफेद फफूंदी रोग का खतरा भी बना हुआ है, खासकर उन खेतों में जहां सुबह के समय नमी अधिक रहती है। इस रोग के कारण पत्तियों की निचली सतह पर सफेद उभरे हुए धब्बे और ऊपर की सतह पर पीले रंग के निशान दिखाई देने लगते हैं। कई मामलों में यह रोग फूलों और तनों को भी प्रभावित करता है, जिससे पौधे टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं और उनकी बढ़वार रुक जाती है।

    घाेल बनाकर करें छिड़काव

    कृषि वैज्ञानिकों ने सफेद फफूंदी के नियंत्रण के लिए मेटालैक्सिल प्लस मैन्कोज़ेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी है। साथ ही प्रभावित पत्तियों और पौधों के हिस्सों को खेत से निकालकर नष्ट करने पर जोर दिया गया है, ताकि रोग का फैलाव रोका जा सके। मौसम साफ रहने की स्थिति में कुछ पत्ती खाने वाले कीट भी सक्रिय हो सकते हैं। इनमें पत्तागुंडी प्रमुख है, जो पत्तियों को कुतरकर पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता को कम कर देती है। इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और उत्पादन प्रभावित होता है।

     तापमान में थोड़ी वृद्धि होती है, माहू तेजी से फैल सकता है

    विशेषज्ञों के अनुसार पत्तागुंडी के नियंत्रण के लिए स्पिनोसेड 45 एससी का 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना प्रभावी माना गया है। सरसों की फसल में नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीटों में माहू का प्रकोप फिलहाल कम देखा जा रहा है। ठंड के कारण इनकी सक्रियता अभी सीमित है, लेकिन जैसे ही तापमान में थोड़ी वृद्धि होती है, माहू तेजी से फैल सकता है। यह कीट कोमल पत्तियों, कलियों और फूलों का रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देता है। इसकी पहचान पत्तियों पर चिपचिपे पदार्थ और मुड़ने लगे पत्तों से की जा सकती है।

    सुबह व शाम के समय करें स्प्रे


    कृषि विभाग ने माहू के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 0.25 से 0.30 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सुबह 9 बजे से पहले या शाम के समय स्प्रे करने से इसका प्रभाव अधिक होता है।

    अधिक नमी और बरसात होने पर खतरा बढ़ने की अधिक आशंका

    कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार संभल जिले में वर्तमान परिस्थितियों में रोग और कीटों का जोखिम मध्यम स्तर पर है, लेकिन यदि आने वाले दिनों में नमी बढ़ती है या हल्की बारिश होती है तो फफूंदी जनित रोगों के फैलने की संभावना और बढ़ सकती है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे फसल की नियमित निगरानी करें और किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उपचार करें।

    खेतों में साफ-सफाई और पानी की निकासी के लिए रखें व्यवस्था

    कृषि विभाग ने किसानों को यह भी सलाह दी है कि वे खेतों में साफ-सफाई बनाए रखें, उचित जल निकास की व्यवस्था करें, पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखें और संतुलित पोषण प्रबंधन अपनाएं। साथ ही अनियंत्रित और आवश्यकता से अधिक दवाओं के प्रयोग से बचें और केवल अनुशंसित मात्रा में ही कीटनाशक या फफूंदनाशक का उपयोग करें, ताकि फसल सुरक्षित रहे और उत्पादन में कोई कमी न आए।