संभल में दंगों से ठहर गई कारोबार की रफ्तार, आर्थिक प्रगति पर कैसे लगा ब्रेक? समझिए पूरा गणित
Sambhal News |Sambhal Violence | UP News | संभल दंगों और दहशत के कारण अपनी औद्योगिक पहचान खो रहा है। कभी यहाँ गुड़ मूंगफली और खंडसारी की बड़ी मंडी थी ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, संभल। दंगा, दहशत और पलायन। बदलती परिस्थितियों में संभल अपनी औद्योगिक पहचान भी खोता जा रहा है। एक दौर था जब संभल में बड़ी गुड़, मूंगफली और खंडसारी की बड़ी मंडी थी।
पंजाब, बंगाल और रोहतक(हरियाणा) के कारोबारी भी यहां आते थे। लेकिन, आजादी के बाद दंगे होने की वजह से बाहरी व्यापारी डर गए। वह संभल आने से परहेज करने लगे। यही कारण है कि अब न तो गुड़ मंडी है और न ही मूंगफली और खंडसारी का कारोबार।
मैंथा के काम में भी रिकार्ड गिरावट आई है। हैंडीक्राफ्ट उत्पाद के निर्यात में भी अपेक्षा के अनुरूप वृद्धि नहीं हो सकी है। खराब माहौल के कारण बाहरी व्यापारी घरेलू बाजार के लिए यहां आने से कतराते हैं, जिससे स्थानीय कारोबारियों को अन्य शहरों में जाना पड़ता है।
संभल आजादी के बाद से ही दंगों से जूझता रहा है। जामा मस्जिद के सर्वे के विरोध में 24 नवंबर 2024 को हुई हिंसा से पहले 1947 से लेकर 2019 तक 15 बार दंगे भड़क चुके हैं, जिसमें 213 लोगों की हत्या की गई। 73 दिन कर्फ्यू भी लगा रहा है।
29 मार्च, 1978 को दंगा भड़कने पर 184 हिंदुओं की हत्या कर दी। एक महीने से अधिक कर्फ्यू लगाने के बाद स्थिति पर काबू पाया जा सका। हाल ही में न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में हिंदुओं के बड़े स्तर पर पलायन की बात कही गई है।
इसके अलावा आतंकी नक्शे पर भी संभल का नाम अक्सर सामने आता है। इन सबका सीधा असर संभल शहर की आर्थिकी पर पड़ा है। तीर्थनगरी के रूप में प्रसिद्ध यह शहर दहशत के कारण पर्यटकों की पसंद नहीं बन सका है।
हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष ताहिर सलामी बताते हैं कि दंगों से व्यवसाय को वित्तीय नुकसान होता है। दंगों के साथ कर्फ्यू भी लगते हैं, जिससे बाहरी कारोबारी महीनों तक शहर में नहीं आते। इंटरनेट सेवा बंद होने से बाहरी संपर्क भी कट जाता है।
शहर के विष्णु शरण रस्तोगी के अनुसार, आजादी के आसपास यहां लगभग 70 आढ़त थीं, अब केवल 30 के करीब रह गई हैं।
दंगे की आर्थिकी पर चोट
संभल में हैंडीक्राफ्ट की लगभग 1500 इकाइयां हैं, जिनका कारोबार 500 करोड़ के आसपास है। लेकिन दंगों के कारण उत्पादन अपेक्षा के अनुसार नहीं बढ़ सका है। 24 नवंबर, 2024 को हुई हिंसा के बाद कारोबार लगभग 50 प्रतिशत तक घट गया है।
मैंथा की मंडी एशिया की सबसे बड़ी मानी जाती थी, लेकिन अब केवल 20 से 25 प्लांट ही चल रहे हैं। मैंथा एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दीपक गुप्ता का कहना है कि दंगों के साथ मैंथा कारोबार पर मंडी शुल्क लगाना और सिंथेटिक की मार की वजह से भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
हां, आलू पर जरूर प्रभाव नहीं पड़ा है। कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष रामकेहर आर्य कहते हैं कि संभल में 69 कोल्ड स्टोरेज है। जिनका सालाना कारोबार लगभग पांच अरब पहुंच जाता है।
व्यावसायिक बाधा
हिंसा के बाद पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा कड़े इंतजाम किए जाते हैं, जिसमें जगह जगह पिकेट या घेराबंदी की वजह से कारोबारी अपने दुकान या प्रतिष्ठान तक नहीं पहुंच पाते तो उसको बंद करना पड़ता है, दूसरी ओर डर की वजह से मजदूर भी काम पर नहीं आते, जिससे उनका काम ठप हो जाता है।
यही नहीं क्षेत्र में हिंसा के बाद हुई अशांति के कारण ग्राहक भी खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, जिससे वह उस बाजार में न जाकर दूसरे क्षेत्र में स्थित बाजार में जाकर खरीदारी करना ज्यादा बेहतर समझते हैं। हिंसा के बाद इंटरनेट बंद होने से ई बिल नही बनता हैं।

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