Sambhal: बेमिसाल कारीगरी का नमूना है चंदौसी की यह ऐतिहासिक इमारत, रुहेलों के शासनकाल में आबाद हुआ था शहर
Sambhal यूं तो ऐतिहासिक शहर चंदौसी की कई विशेषताएं हैं। सन् 1757 में जब रुहेलों का शासनकाल था तब इस शहर की चहारदीवारी बनवाकर सभी दिशाओं में दस गेट बनवाए गए थे। इन दरबाजों से ही शहर में आया-जाया जा सकता था।

संभल (चंदौसी), ओमप्रकाश शंखधार: यूं तो ऐतिहासिक शहर चंदौसी की कई विशेषताएं हैं। सन् 1757 में जब रुहेलों का शासनकाल था तब इस शहर की चहारदीवारी बनवाकर सभी दिशाओं में दस गेट बनवाए गए थे। इन दरबाजों से ही शहर में आया-जाया जा सकता था।
फौलाद के बने इन दरबाजों में शाम होते ही ताले जड़ दिए जाते थे। यही नहीं गेटों पर बनीं छतरियों पर दरवान पहरेदारी करते थे। उसी समय सल्तनत बदली और अंग्रेज की हुकूमत शुरू हुई। रुहेलों और इनके बाद अंग्रेजों द्वारा बनवाई गई भव्य इमारतें इनके जाने के बाद भी अवशेषों के रूप में अभी भी मौजूद हैं।
इन खाली पड़ी इमारतों पर स्थानीय लोग काबिज हो गए। ऐसी ही एक बुलंद इमारत शहर के बीचोबीच थी। इसमें थके हारे सैनिक रहते थे और उनके घोड़े बांधे जाते थे। देश को आजादी मिलने के करीब नौ साल बाद 1956 में शहर के फुब्बारा चौक स्थित इस सराय को आदर्श नगर का नाम देते हुए इसे आवाद किया गया।
नगर पालिका के तत्कालीन अध्यक्ष चौधरी भगवत शरण ने सराय में आवासीय कालोनी का प्रस्ताव पास कर मामूली परिवर्तन कर लोगों के लिए आवंटन किया।
संभल जनपद की तहसील चंदौसी सन् 1757 में रुहेलों का शासनकाल में आवाद हुआ था। यहां से उनका कारोबार चलता था। इसीलिए शहर की हिफाजत के लिए हर दिशा में दरबाजे बनवाए गए थे। तभी से यहां का माहौल कारोबारी हो गया और अंग्रेजों की भी इस पर खास नजर थी।
आज़ादी से पहले कहा जाता था 'कंपनी बाग'
आजादी के पूर्व से ही कारोबारी माहौल ने व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित किया तो कस्बे में तब्दील हो गया। देशी घी की प्राचीन मंडी से लेकर दलहन, तिलहन के बाजार इस शहर की खास पहचान बन गए। पहले रुहेलों और बाद में अंग्रेजों की फौज के सिपाही चंदौसी में रात को ठहरते थे, अपने घोड़े भी यहीं रखते थे। इसे कंपनी बाग कहा जाता था। इसे आजादी के बाद गांधी पार्क के नाम से जाना जाता है। इसके ठीक बराबर में एक बड़ी इमारत में मवेशी अस्पताल और घुड़साल संचालित किया जाता था।
कालेज के हास्टल के रूप में उपयोग हुआ
बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजों के जाने के बाद कुछ समय के लिए इसी इमारत को एसएम कालेज के हास्टल के रूप में उपयोग में लाया गया था। इसके बाद तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष चौधरी भगवत शरण ने एसएम कालेज के प्रोफेसर और नगर पालिका के अधिकारियों के लिए इसे कालोनी के रूप में विकसित किया।
एसएम कालेज के कई प्रोफेसर, नगर पालिका के कर्मचारी समेत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राममोहन, गांधी आश्रम के कर्मचारियों के लिए आवास आवंटित किए गए। फिलहाल आदर्श नगर कालोनी में तीसरी पीढ़ी रह रही है। नगर पालिका ने कालोनी विकसित करने के लिए सराय और घुड़साल को आवास का रूप देने के लिए इस इमारत में अलग से रसोई, शौचालय आदि का निर्माण कराया था।
आदर्श नगर कालोनी में रह रहे बीस से अधिक परिवार
जासं, चंदौसी: अंग्रेजों के जाने के बाद अमल में आई आदर्श नगर कालोनी में वर्तमान समय में 20 से अधिक परिवार रह रहे हैं। अधिकतर मकानों में तीसरी पीढ़ी रह रही है। कालोनी के ही डा. तुमुल विजय शास्त्री बताते हैं कि उनके पिता राममोहन स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी मां के नाम पर आवास का आवंटन हुआ था। तब पूरी कालोनी का एक ही बिजली कनेक्शन हुआ करता था।
बिजली बिल का भुगतान नगर पालिका को किया जाता था। करीब 1960 के बाद नगर पालिका की पहल पर सभी आवासों में बिजली और पानी के कनेक्शन आवकर दिए गए। जिन लोगों के नाम आवास का आवंटन हुआ था वो तो अब नहीं रहे। उनके वारिस के तौर पर रही उनकी तीसरी पीढ़ी के नाम आवास आवंटन हस्तांतरण में पालिका की ओर से परेशानी पैदा की जा रही है।
बेमिसाल कारीगरी का नमूना है ऐतिहासिक इमारत
जासं, चंदौसी: नगर का दिल कहा जाने वाले फुब्बारा चौक स्थित आदर्श नगर कालोनी की ऐतिहासिक इमारत 18वीं सदी की बनी हुई है। इमारत की छत सुर्खी चूने के मिश्रण के साथ ढाट विधि से बनी हुई हैं। बेहद मजबूत और आकर्षक छतों की कारीगरी और मजबूती के लोग कायल हैं।
इतना ही नहीं इमारत में लगी हुईं इंट पर 1874 से लेकर 1876 की मोहर है। दीवारों की मजबूती और सुंदरता देखते ही बनती है। कालोनी में प्राचीन शैली का एक बेहद आकर्षक मुख्य द्वार भी है। शहर में आदर्श नगर कालोनी की अपनी अलग ही पहचान है। इमारत में फर्श के लिए भी खास तौर पर तैयारी की गई टाइल्स का प्रयोग किया गया है।
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