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    Sambhal News: पांच-पांच पैसे के दान से बना भव्‍य लक्ष्‍मीनारायण मंदिर, चार धर्मशालाएं भी हो रहीं संचालित

    By Manmohan VarshneyEdited By: Vivek Bajpai
    Updated: Wed, 02 Nov 2022 11:53 AM (IST)

    वर्ष 1986 में मंडी समिति बनने के बाद आढ़तियों की संख्या सवा दो सौ के आसपास होने पर सनातन धर्म सभा क्षेत्र समिति का गठन किया गया। यह रकम बैंक में जमा की जाने लगी। रकम करोड़ों में होने पर पहले धर्मशालाओं का निर्माण कराया गया।

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    बहजोई स्थित मंडी समिति में बना भव्‍य लक्ष्‍मीनारायण मंदिर। जागरण

    संभल, (मनमोहन वार्ष्‍णेय)। यह आस्था है दान की। पाई-पाई जोड़कर अस्थावानों ने जो दान दिया, उससे सेवा का महल तैयार हो गया। ये दानदाता मंडी समिति के आढ़ती हैं। हर सौ रुपये की खरीद और बिक्री पर पांच-पांच पैसे एकत्र करते हैं। जो धनराशि एकत्र हुई, उससे लक्ष्मी नारायण मंदिर बन गया। चार धर्मशालाएं बन गईं। 1962 से शुरु हुई इस परंपरा ने करोड़ों की विरासत तैयार कर दी है।

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    धर्मादान से हो रहे सभी काम

    संभल जिले के कस्बा बहजोई में यह परंपरा मिसाल बन गई है। दान की इस धनराशि से दो धर्मशाला राजघाट (बुलंदशहर) व दो धर्मशाला बहजोई में बनवाई गई हैं। बताते हैं कि वर्ष 1962 में रामलीला मंचन में धन की समस्या आई। तय हुआ कि कस्बे के आढ़ती अनाज बेचने वाले और अपने पास से प्रति सौ रुपये में पांच-पांच पैसे जमा किए। इस रकम को मंचन में खर्च किया जाने लगा। इस फंड को धर्मादान नाम दिया गया है।

    राजस्‍थानी शैली में बना हैं लक्ष्‍मीनारायण मंदिर

    वर्ष 1986 में मंडी समिति बनने के बाद आढ़तियों की संख्या सवा दो सौ के आसपास होने पर सनातन धर्म सभा क्षेत्र समिति का गठन किया गया। यह रकम बैंक में जमा की जाने लगी। रकम करोड़ों में होने पर पहले धर्मशालाओं का निर्माण कराया गया। वर्ष 2006 में मंडी समिति परिसर में लक्ष्मी नारायण मंदिर की नींव रखी गई। दो करोड़ से अधिक लागत से राजस्थानी शैली का मंदिर बनकर तैयार हो गया है। इतनी ही धनराशि धर्मशालाओं के निर्माण में खर्च की गई है।

    मंदिर व धर्मशाला का खर्चा भी उठाती है समिति

    आढ़तियों से धनराशि एकत्र करने के लिए एक कर्मचारी तैनात है। समिति की ओर से एक, सौ और दो सौ रुपये की रसीद छपवा रखी है। आढ़तियों को धनराशि जमा करने पर रसीद दी जाती है। सनातन धर्म सभा क्षेत्र समिति के पास ही मंदिर व धर्मशालाओं का संचालन होता है। मंदिर के पुजारी को मंदिर के चढ़ावे के साथ हर माह वेतन भी दिया जाता है। इसी तरह धर्मशालाओं में काम करने वालों को भी समिति वेतन देती है। इससे काफी लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।

    1962 से चली आ रही परंपरा

    सनातन धर्म सभा क्षेत्र समिति के प्रबंधक जयप्रकाश वार्ष्णेय ने कहा कि 1962 से लगातार यह परंपरा चली आ रही है। मंडी समिति में अनाज बेचने आने वाले किसान भी खुशी-खुशी दान देते हैं। आज तक किसी ने आपत्ति नहीं की है। समिति मंदिर व धर्मशालाओं का संचालन करने के साथ जरूरतमंदों की मदद भी कर रही है।