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    Sambhal News: फर्जी अस्पताल संचालन और रजिस्ट्रेशन सिंडिकेट का पर्दाफाश, चार गिरफ्तार, तीन फरार

    Updated: Fri, 19 Sep 2025 04:52 PM (IST)

    संभल में पुलिस ने फर्जी अस्पताल चलाने और पंजीकरण के लिए नकली दस्तावेज बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया है। चार लोग गिरफ्तार हुए हैं जबकि तीन फरार हैं। गिरोह अवैध अस्पतालों से पैसे वसूलता था और उन्हें नकली पंजीकरण देता था। जांच में पता चला कि गिरोह के सदस्यों का स्वास्थ्य विभाग से सीधा संबंध था। पुलिस मामले की गहराई से जांच कर रही है।

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    फर्जी अस्पताल संचालन और रजिस्ट्रेशन सिंडिकेट का पर्दाफाश

    जागरण संवाददाता, संभल। जिले में फर्जी अस्पतालों के संचालन और उनकी सील खुलवाने के लिए कूट रचित पंजीकरण प्रमाणपत्र तैयार कराने वाले गिरोह का पुलिस ने पर्दाफाश किया है, जिसमें चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है जबकि तीन फरार हैं।

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    यह गिरोह अवैध अस्पतालों से मोटी वसूली करता था, उनके संचालन में मदद करता था और कार्रवाई को प्रभावहीन बनाने के लिए मध्यस्थता करता था, बहजोई रिजर्व पुलिस लाइन में हुई संयुक्त प्रेस वार्ता में डीएम डाॅ. राजेंद्र पैंसिया, एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई, अपर पुलिस अधीक्षक अनुकृति शर्मा और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ. तरुण पाठक ने बताया कि जनपद में अवैध रूप से चल रहे अस्पतालों को पंजीकरण के नाम पर फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराए जा रहे थे, दो मामले सामने आए हैं।

    जिसमें बहजोई के लाइफ केयर हास्पिटल को आरोपित जगतपाल ने 40 हजार रुपये लेकर फर्जी प्रमाणपत्र उपलब्ध कराया जो कानपुर नगर का निकला, इसी प्रकार गुन्नौर के कृष्णा नर्सिंग होम को डेढ़ लाख रुपये लेकर नकली पंजीकरण दिया गया।

    खास बात यह है कि दोनों संचालकों ने आनलाइन आवेदन किया था जो निरस्त हुआ, तीसरी बार किया गया आवेदन अभी तक लंबित है, पुलिस ने इस मामले में जगतपाल निवासी गांव सादात वाड़ी थाना बहजोई, प्रेम सिंह निवासी अहरौला नवाजी थाना जुनावई, बबलू गिरी निवासी बहट करन थाना रजपुरा और संगम निवासी मोहल्ला कर्म धर्म कस्बा नरौरा जनपद बुलंदशहर को गिरफ्तार किया है।

    वहीं चंदौसी के नितिन उर्फ जितेंद्र, गौरव बंसल और राजीव कौशिक के नाम भी सामने आए हैं जो फरार हैं, इन सातों के द्वारा अवैध वसूली कर रकम आपस में बांटी जाती थी, पुलिस यह भी तलाश कर रही है कि कहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इसमें शामिल तो नहीं।

    हालांकि, डीएम ने चिकित्सकों की संलिप्तता से इनकार किया है, गौरव बंसल चंदौसी का रहने वाला है और फिजियोथैरेपिस्ट के पद पर बहजोई में तैनात है, प्रेम सिंह की पत्नी 2016 से एएनएम के पद पर जुनावई में कार्यरत है और बबलू गिरी की पत्नी 2019 से वार्ड आया के पद पर कार्यरत है, जिससे इनका स्वास्थ्य विभाग से सीधा जुड़ाव पाया गया, प्रेम सिंह किसान यूनियन संगठन का पदाधिकारी और अधिवक्ता भी बताया जा रहा है।

    अस्पताल संचालकों से इस तरह वसूली करता था गिरोह

    • फर्जी पंजीकरण प्रमाणपत्र तैयार कर अस्पताल संचालकों को उपलब्ध कराए जाते थे।
    • रजिस्टर्ड अस्पताल का नाम और दस्तावेज बदलकर स्थानीय अस्पतालों के लिए उपयोग किया जाता था।
    • आनलाइन आवेदन निरस्त होने पर भी नकली दस्तावेज उपलब्ध कराए जाते थे।
    • नवीनीकरण (रिन्यूअल) के नाम पर हर साल एक से पांच लाख रुपये तक वसूले जाते थे।
    • सील किए गए अस्पतालों को खुलवाने के लिए बिचौलिये रुपये लेकर स्वास्थ्य विभाग से सिफारिश कराते थे।
    • झोलाछाप चिकित्सकों को भी इस नेटवर्क के जरिए पंजीकरण जैसे फर्जी कागजात उपलब्ध कराए जाते थे।
    • कार्रवाई की भनक लगने पर संबंधित अस्पताल संचालकों से मोटी रकम लेकर मामला दबा दिया जाता था।
    • वसूली की रकम गिरोह के सदस्यों में आपस में बांटी जाती थी और कुछ हिस्सा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कर्मियों तक पहुंचता था।
    • शिकायत करने वाले अस्पताल संचालकों को जान से मारने की धमकी दी जाती थी।
    • स्थानीय स्तर पर गिरोह की पहुंच इतनी मजबूत थी कि बिना पहचान और सहयोग के कोई अस्पताल चल ही नहीं सकता था।

    गिरोह से सांठगांठ पर उठे सवाल, क्या केवल बिचौलियों तक सीमित रहेगी कार्रवाई?

    फर्जी अस्पताल रजिस्ट्रेशन और संचालन के पर्दाफाश के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि इतने लंबे समय तक यह खेल कैसे चलता रहा। गिरोह संचालकों से हर साल एक से पांच लाख रुपये वसूली करता था और सील किए गए अस्पताल भी रुपये लेकर खुलवा दिए जाते थे। यह रकम कहां जाती थी, यह भी बड़ा सवाल है।

    आरोपितों के स्वास्थ्य विभाग से सीधे संबंध थे

    किसी की पत्नी एएनएम, किसी की वार्ड आया और कोई खुद फिजियोथैरेपिस्ट के पद पर तैनात था। ऐसे में बिना विभागीय सहयोग के इतना बड़ा सिंडिकेट लंबे समय तक चल पाना संभव नहीं दिखता। स्थानीय नोडल अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या वे आंख मूंदकर सब देखते रहे या फिर उन्हें दबाव में चुप रहना पड़ा?

    क्या मुख्य चिकित्सा अधिकारी और अन्य जिम्मेदार अधिकारी अब तक मूक दर्शक बने रहे? आखिर क्यों खुफिया तरीकों से इसकी सूचना प्रशासन तक पहले नहीं पहुंची? अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कार्रवाई केवल इन बिचौलियों तक सीमित रहेगी या फिर स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के उन जिम्मेदार लोगों तक भी जाएगी, जिनकी छत्रछाया में यह गोरखधंधा फलता-फूलता रहा।

    16 सितंबर को चला अभियान, 31 अस्पतालों की जांच में 19 पर दर्ज हुई रिपोर्ट

    डीएम और एसपी के निर्देश पर 16 सितंबर को स्थानीय मजिस्ट्रेट, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने जिले भर में अस्पतालों की चेकिंग की। इस दौरान कुल 31 अस्पतालों की जांच हुई। इनमें गुन्नौर के 9 में से छह, रजपुरा के पांच में से चार, धनारी के दो में से दो, रायसत्ती के एक में से एक, जुनावई के एक में से एक, बहजोई के सात में से दो और चंदौसी के चारा में से तीन अस्पतालों पर रिपोर्ट दर्ज कराई गई। वहीं हयातनगर और असमोली के एक-एक अस्पताल सही पाए गए।

    गुन्नौर और बहजोई के अस्पतालों को कानपुर के आईवीएफ सेंटर का बनाया पंजीयन

    गिरफ्तार किए गए जगतपाल पर दो अस्पतालों को फर्जी पंजीकरण प्रमाणपत्र उपलब्ध कराने का आरोप है। गुन्नौर के कृष्णा नर्सिंग होम से उसने डेढ़ लाख रुपये लेकर कूट रचित पंजीकरण दिया, जो इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल लिमिटेड, कानपुर नगर का निकला।

    इसी तरह बहजोई के लाइफ केयर हास्पिटल को 40 हजार रुपये लेकर फर्जी प्रमाणपत्र दिया गया, जो इंदिरा आईवीएफ एवं फर्टिलिटी सेंटर, कानपुर नगर का पाया गया। दोनों ही मामलों में आनलाइन आवेदन पहले ही निरस्त हो चुका था, इसके बावजूद जगतपाल ने कागजात उपलब्ध कराए। पुलिस अब अन्य अस्पतालों के पंजीकरण भी खंगाल रही है।