उत्पादन की चाह में जैविक खेती भूले किसान
सम्भल। पिछले कुछ सालों से खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। किसान अधिक उत्पादन की चाह में रासायनिक खाद का इस्तेमाल मक्का, धान, गेहूं तथा सब्जियों को उगाने में कर रहे हैं। जबकि रासायनिक खाद जमीन की उर्वरा शक्ति को नष्ट कर रही है साथ ही मानव शरीर पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। इसके बाद भी कृषि विभाग द्वारा जैविक खाद के माध्यम से खेती किये जाने को लेकर कोई खास रुचि नहीं दिखाई जा रही है। जिसके चलते जैविक खाद तैयार करने की जो योजनाएं सरकार द्वारा चलायी जा रही हैं वह कागजों तक सीमित होती जा रही हैं। विभाग की इसी लापरवाही के चलते रासायनिक खेती को और बढ़ावा मिल रहा है।
पहले किसान अपने खेतों में खाद के तौर पर बड़े पैमाने पर गोबर उपयोग करते थे। रासायनिक खाद का उतना चलन नहीं था। इसीलिए गांवों में जगह-जगह गोबर के ढेर लगे रहते थे, लेकिन अधिक उत्पादन की चाह में किसानों ने रासायनिक खाद का प्रयोग करना शुरू कर दिया। जिसका परिणाम रहा कि रासायनिक खेती ने जैविक खेती को बहुत पीछे छोड़ दिया है। यही वजह है कि अब गांव व देहातों में मवेशियों की संख्या में भारी गिरावट आ गई है। जिसके कारण गोबर मिल नहीं पा रहा है। ऐसा नहीं किसानों को रासायनिक खाद से होने वाले नुकसान व जैविक खाद के फायदों की जानकारी नहीं है, लेकिन लालच बस धड़ल्ले से रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। प्रगतिशील किसान अजय बीर ने बताया कि पिछले बीस सालों में रासायनिक खाद का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। क्योंकि गांवों में अब जैविक खादों की उपलब्धता रह नहीं गयी है। पशुओं को संख्या घटती जा रही है। जिसकी वजह से गोबर मिलना भी मुश्किल हो गया है। रासायनिक खादों के असंतुलित प्रयोग से खेत बंजर होते जा रहे हैं। जमीन की उर्वरा शक्ति निरंतर घटती जा रही है। रासायनिक खाद के प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभाव को रोकने के लिए किसानों को जागरूक करने की जरूरत है। किसान खेत की घटी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए किसान हरी खाद का इस्तेमाल करें। किसान रुमाल सिंह ने बताया कि जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई साल पहले गांवों में कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए गड्ढे खुदवाये गये थे, लेकिन आज उनका कहीं पता ही नहीं है। सरकारी धन का दुरुपयोग किया जा रहा है।
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इनसेट-
वर्मीकम्पोस्ट को भूले किसान
-मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता को लंबे समय तक बनाये रखने में पोषक तत्वों के संतुलन का विशेष योगदान है। जिसके लिए फसल, मृदा तथा पौधे पोषक तत्वों का संतुलन बनाये रखने में हर प्रकार के जैविक अवयवों जैसे फसल अवशेष, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, जीवाणु खाद इत्यादि की अनुशंसा की जाती है। वर्मीकंपोस्ट उत्पादन के लिए केंचुओं को विशेष प्रकार के गड्ढों में तैयार किया जाता है तथा इन केचुओं के माध्यम से अनुपयोगी जैविक वनस्पति जीवांशों को अल्प अवधि में मूल्यांकन जैविक का निर्माण करके, इसके उपयोग से मृदा के स्वास्थ्य में आशातीत सुधार होता है एवं मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। लेकिन कृषि विभाग गड्ढा खोदने के बाद भूल गया। किसानों में जागरूकता न होने के कारण गड्ढे का उपयोग ही नहीं किया गया।
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इनसेट-
जैविक खेती से होने वाले लाभ
-भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
-सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है।
-रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।
-फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।
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इनसेट-
मिट्टी की दृष्टि से लाभ
-जैविक खाद का उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
-भूमि की जलधारा क्षमता बढ़ती है
-भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।
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इनसेट-
पर्यावरण की दृष्टि से लाभ
. भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।
. मिट्टी खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने प्रदूषण में कमी आती है।
. फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि ।
. अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता को खरा उतरना।
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वर्जन-
किसानों को जैविक खेती करने में अधिक रुचि लेनी चाहिए। क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी। रासायनिक खेती से मिट्टी पर दुष्प्रभाव पड़ने के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसीलिए किसानों को जैविक खेती करने के प्रति समय-समय पर जागरूक किया जाता है।
-व्यास मुनि मिश्रा, जिला कृषि अधिकारी सम्भल।
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