पुरुषार्थ के मंदिर तराशकर हासिल किया मुकम्मल जहां
पुरुषार्थ से सब कुछ पाया जा सकता है। रजनीश ने पुरुषार्थ के इसी सिद्धांत को जिदगी का फलसफा बनाकर कामयाबी की नई कहानी लिख दी। शून्य से अपनी शुरुआत करने ...और पढ़ें

सहारनपुर, जेएनएन। पुरुषार्थ से सब कुछ पाया जा सकता है। रजनीश ने पुरुषार्थ के इसी सिद्धांत को जिदगी का फलसफा बनाकर कामयाबी की नई कहानी लिख दी। शून्य से अपनी शुरुआत करने वाले रजनीश के लिये नक्काशी के शहर सहारनपुर में कुछ अलग करना चुनौती था। उन्होंने नक्काशीदार मंदिरों को अपने हुनर की पहचान बनाया। मेहनत रंग लाई तथा मंदिरों की मांग बढने लगी। अब उनके नक्काशीदार मंदिर देश के सभी बड़े बाजारों में डिमांड के साथ बिकते हैं।
सहारनपुर का नक्काशीदार फर्नीचर तथा वुडक्राफ्ट दुनिया भर में मशहूर है। रजनीश मल्होत्रा ने नक्काशी के इस शहर में कुछ नया कर अपनी अलग पहचान बनाने की चुनौती स्वीकारी। उन्होंने जय अम्बा क्राफ्ट्स के नाम से वुडक्राफ्ट प्रतिष्ठान खोला, तथा इसमें मुख्यत: लकड़ी के नक्काशीदार मंदिर बनाने शुरू किये। पांच साल पूर्व नक्काशीदार मंदिर बनाकर वुडक्राफ्ट की दुनिया में कुछ अलग कर पाना असंभव लग रहा था। वह कई बार मायूस हुये। नुकसान हुआ, लड़खड़ाये भी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। मंदिरों की डिमांड बढी तो अपने बेटे आर्यन को भी इस काम में जोड़ लिया।
आनलाइन प्लेटफार्म पर भी डिमांड
रजनीश बताते हैं कि दीपावली व नवरात्रि में ही हजारों मंदिर बिक जाते हैं। लकड़ी के मंदिरों को वह यूपी के अलावा कई अन्य राज्यों में भेजते हैं। तीन साल से अमे•ान और फ्लिपकार्ट पर भी बिक्री हो रही है। शीशम और सागौन की लकड़ी से बने मंदिरों की कीमत 200 रुपए से लेकर लाखों तक है। आकर्षक बनाने के लिए ग्राहक की मनपसंद नक्काशी, देवी देवता की छवि को उकेरा जाता है।
वुडकार्विंग के कारोबार में डेढ़ लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। करीब 150 निर्यातक यहां बने तमाम उत्पादों को पूरी दुनिया में भेजते हैं। 200-300 करोड़ से अधिक का निर्यात होता है। यहां के बने मंदिरों की दुनिया भर में डिमांड हैं।
-औसाफ गुड्डू, एक्सपोर्टर

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