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    जीवंत जीवन के प्रखर चिंतक थे कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 08 May 2022 07:10 PM (IST)

    हिंदी रिपोर्ताज के जनक पत्रकार व लेखक कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर ने संपूर्ण जीवन संघर्ष किया और कभी हार नहीं मानी।

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    जीवंत जीवन के प्रखर चिंतक थे कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

    जीवंत जीवन के प्रखर चिंतक थे कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

    सहारनपुर, जेएनएन। हिंदी रिपोर्ताज के जनक, पत्रकार व लेखक कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर ने संपूर्ण जीवन संघर्ष किया और कभी हार नहीं मानी। वह निरंतर साहित्य, पत्रकारिता और आजादी के महासमर के मोर्चे पर डटे रहे। जीवन का पूर्ण मूल्य वसूलते हुए एक कदम भी पीछे नहीं हटे। देवबंद में 29 मई 1906 को कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर का जन्म हुआ था। उन्होंने जीवन को खंड-खंड नहीं वरन उसे जीवन समग्र के भावरोध मे देखा। वह निरंतर साहित्य, पत्रकारिता और आजादी के महासमर के मोर्चे पर डटे रहे। जिंदगी लहलहाई, जिंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, महके आंगन चहके द्वार, दीप जले शंख बजे, कारवां आगे बढे़, माटी हो गई सोना, तपती पगडंडियों पर पदयात्रा जैसी अमर कृतियों की रचना की। उनका रचा साहित्य मानवीय चेतना और चिंतन का अक्षय भंडार है। उनके पुत्र हर्ष प्रभाकर व यश प्रभाकर बताते है कि नौ मई को उनकी 27वीं पुण्यतिथि है। चिंतन कहता है जो विचार के प्रवाह मे विद्यमान रहता है उसकी कभी मृत्यु नहीं होती।

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