गंगोह में छिपा है शताब्दियों पुराना इतिहास
पर्यटन की ²ष्टि से गंगोह क्षेत्र में अनेक एतिहासिक अवशेष आज भी मौजूद हैं। सौहार्द व प्रेम का संदेश देने वाले बाबा हरिदास व हजरत कुतबे आलम के पवित्र स्थल भी यहीं है।
सहारनपुर जेएनएन। पर्यटन की दृष्टि से गंगोह क्षेत्र में अनेक ऐतिहासिक स्थान मौजूद हैं। सौहार्द व प्रेम का संदेश देने वाले बाबा हरिदास व हजरत कुतबे आलम का पवित्र स्थल भी यहीं है। बाहर के लोग भी भारी संख्या में यहां शीश नवाने आते हैं।
गंगा-यमुना के दोआब में स्थित गंगोह शरीफ की भूमि सूफी-संतों की बदौलत पूरे विश्व को सौहार्द का संदेश दे रही है। संत बाबा हरि दास और कुतबे आलम गंगोही ने यहीं से इंसानियत का संदेश दिया। इनके दरबार से कोई खाली नहीं जाता। संत हरिदास व हजरत कुतबे आलम ने केवल अध्यात्म का ही संदेश नहीं दिया, बल्कि भाईचारे की शिक्षा भी दी। कोई भी ताकत यहां का सांप्रदायिक सद्भाव तोड़ नहीं सकी। इब्राहीम लोदी, बाबर व हुमायूं जैसे बादशाह भी उनके मुरीद थे और यहां हाजरी भरने आते थे। हजरत कुतबे आलम का मजार भी हुमायूं ने बनवाया था। हजरत कुतबे आलम बचपन से ही धार्मिक थे। शिक्षा व ज्ञान में इनकी बेहद रुचि थी। हजरत मखदूम साबिर कलियरी के जलाल को जमाल में बदलना इनका बड़ा कारनामा था। हजरत ने मखदूम जहां के पास मजार को एक-एक ईंट पर कुरान-ए-पाक दम करके अपने हाथों से बनाया था। हजरत कुतबे आलम का जीवन बेहद सादगी भरा था। अध्यात्म व लेखन में इन्हें बेहद रुचि थी।
राजा गंग द्वारा बसाया गया गंगोह अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। आसपास के क्षेत्र में भी शताब्दियों पुराना इतिहास छिपा पड़ा है। गंगोह में महाराजा गंग के महल की निशानी महज एक दरवाजा आज भी मौजूद है। गंगोह के मुख्य स्थलों की यदि खुदाई हो तो बहुत पुराने इतिहास का पता लग सकता है। 1978 में सर्राफा बाजार में खुदाई के दौरान हजारों साल पुरानी मूर्तियां निकली थी। यहां से पांच किमी दूर गांव लखनौती भी मुगल काल का इतिहास समेटे हुए है। उस काल की भूलभुलैया, हुजरे, किला व सुरक्षा चौकियों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। पर्यटन विभाग ने 2007 में इन अवशेषों का निरीक्षण किया था लेकिन आज तक यह पता नहीं लग सका कि उस रिपोर्ट का क्या हुआ। गांव बुढ़ाखेड़ा में 1857 की क्रांति के योद्धा फतवा गुर्जर का किला था, जिसका आज कोई पता नहीं है। नगर की पहचान रशीद अहमद गंगोही के नगर के रूप में भी होती है। जिन्होंने जहां दारूल उलूम देवबंद की स्थापना में अपनी भूमिका अदा की वहीं स्वतंत्रता आंदोलन का भी हिस्सा बने। ककराली सरोवर पर भी पर्यटन विभाग की दृष्टि पड़ चुकी है। इन स्थलों को देखने के लिए यहां साल भर में भारी संख्या में लोग आते हैं।