यूपी में बोले अफगान के विदेश मंत्री- देवबंद की विचारधारा से प्रभावित रहा है तालिबान, बढ़ेगा आने-जाने का सिलसिला
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने देवबंद का दौरा किया और दारुल उलूम में छात्रों से मिले। उन्होंने भारत-अफगानिस्तान के बेहतर होते रिश्तों पर खुशी जताई। मुत्तकी ने कहा कि देवबंद का अफगानिस्तान से गहरा नाता है। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अफगानिस्तान ने भारत की आजादी की लड़ाई से सीख ली। दारुल उलूम ने अफगानी छात्रों को सहयोग का आश्वासन दिया।

दारुल उलूम के अतिथिगृह में मौलाना अरशद मदनी से बातचीत करते अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी। जागरण
जागरण संवाददाता, देवबंद (सहारनपुर)। सात दिन के दौरे पर भारत आए अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी शनिवार को एशिया के बड़े इस्लामिक शिक्षण केंद्र देवबंद पहुंचे। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी समेत वरिष्ठ उलमा ने उनका जोरदार स्वागत किया। मुत्तकी तीन घंटे तक दारुल उलूम में रहे।
छात्रों के साथ बीच कक्षा में बैठे। हदीस पढ़ी और भारत एवं अफगानिस्तान के बीच बेहतर होते रिश्तों पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा देवबंद का अफगानिस्तान से गहरा रिश्ता है, जहां हमारे यहां से छात्र इस्लामी शिक्षा ग्रहण करने पहुंचते हैं। अब उनका आना-जाना और बढ़ जाएगा।
काबुल में भारतीय दूतावास को पुन: सक्रिय करने की घोषणा से दोनों देशों के बीच शैक्षिक और व्यापारिक रिश्तों में और अधिक मजबूती आएगी। दोनों देशों के निकट आने से पूरे क्षेत्र में अमन शांति और स्थिरता के कायम होने में मदद मिलेगी। अफगानिस्तान में सत्तासीन तालिबान के बीच देवबंद के दारुल उमूल का काफी सम्मान है।
तालिबान के कई सीनियर कमांडरों और नेताओं ने पाकिस्तान में पेशावर के पास स्थित दारुल उलूम हक्कानिया में शिक्षा ली है। इसकी स्थापना दारुल उलूम देवबंद की तर्ज पर हुई है। यह पहला मौका है, जब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद वहां का कोई मंत्री देवबंद पहुंचा।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री शनिवार सुबह 11.30 बजे सड़क मार्ग से दारुल उलूम पहुंचे। विदेशमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार से दोनों देशों की सरकारों के बीच समन्वय और सामंजस्य स्थापित हो रहा है, भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। सरकार के नुमाइंदों से अच्छे माहौल में बात हुई है। इससे दोनों देशों के संबंध और मजबूत हुए हैं।
दारुल उलूम से अपना आत्मीय रिश्ता बताया। मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने उन्हें हदीस का पाठ पढ़ाया और सनद ए हदीस की मानद उपाधि से सम्मानित किया। मुत्तकी ने प्रबंधन से अफगानी छात्रों के लिए एजुकेशन वीजा व शैक्षिक सहयोग समेत अन्य मुद्दों पर भी बात की।
दारुल उलूम ने मुत्तकी को हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया। देवबंद में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री का पांच घंटे का कार्यक्रम था, लेकिन अत्यधिक भीड़ की वजह से सिर्फ तीन घंटे में दौरा समाप्त करना पड़ा। उन्होंने अपने सफर को बहुत सार्थक बताया। दोपहर ढाई बजे दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
उधर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई से सीखकर अफगानिस्तान ने रूस और अमेरिका जैसी बड़ी ताकतों को धूल चटाई। यही ताकत उन्हें देवबंद लेकर आई। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि आजादी की लड़ाई के दौरान दारुल उलूम देवबंद के प्रधान अध्यापक शेखुल हिंद मौलाना महमूद हसन के आदेश पर अफगानिस्तान में ही हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक निर्वासित सरकार कायम की थी।
उस सरकार के राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह, प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली और विदेश मंत्री मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी थे। हमने उन ब्रिटिश शासकों से लंबी जद्दोजहद के बाद आजादी हासिल की, जिनके बारे में कहा जाता था कि उनकी हुकूमत का सूरज कभी डूबता नहीं है।
1866 में स्थापित हुआ दारुल उलूम
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद में मौजूद दारुल उलूम की स्थापना अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में हुए गदर से प्रेरित होकर की गई। अंग्रेज सरकार ने गदर के बाद कई मुस्लिम संस्थाओं को प्रतिबंधित कर दिया था। इस्लामिक विद्वानों ने मिलकर देवबंद में 30 मई 1866 को दारुल उलूम की स्थापना की। तब देवबंद एक छोटा सा कस्बा था।
अब यहां की आबादी एक लाख से ज्यादा हो चुकी है। मौजूद मदरसा इस्लाम के सुन्नी विचारों का गढ़ है। सुन्नी इस्लाम के हनफी विचार को मानने वाले लोग भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भारी संख्या में आबाद हैं, जिन्हें 'देवबंद' कहा जाता है। दारुल उलूम हक्कानिया पाकिस्तान के पेशावर से लगभग 55 किलोमीटर दूर अकोरा खटक में स्थित है। इसे 1947 में स्थापित करने वाले शेख अब्दुल हक देवबंद स्थित दारुल उलूम मदरसे से पढ़े थे।
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