रामपुर में नवाबी दौर में हुआ था बड़ा किसान आंदोलन, कद्दू के लिए हुई लड़ाई में 40 लोग मारे गए थे Rampur News
रामपुर के इतिहास में इस बात का भी उल्लेख है कि किसानों के इस आंदोलन मेंं सभी धर्मों के लोग शामिल हुए और हिंदू -मुस्लिम नेता एक मंच पर आए।
रामपुर (मुस्लेमीन)। नवाबी दौर से ही रामपुर के किसान आंदोलनकारी रहे हैं। 1946 में यहां बड़ा आंदोलन हुआ था, तब पुलिस फायरिंग में एक युवक की मौत हो गई थी और कई किसान जख्मी हुए थे।
रामपुर के आखिरी नवाब रजा अली खां की अरबों रुपये की दौलत को लेकर नवाब खानदान में बंटवारे की प्रक्रिया चल रही है। आखिरी नवाब के राज में एक दौर ऐसा आया था, जब गेहूं की किल्लत हो गई। तब रियासत की ओर से जबरन गल्ला वसूलने का आदेश जारी किया गया। गेहूं की सरकारी खरीदारी में सख्ती बरती गई। इससे किसानों पर अत्याचार और क्रूरता की शिकायतें भी सामने आईं। रामपुर का इतिहास लिखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता शौकत अली खां कहते हैं कि तब देश में स्वतंत्रता आंदोलन का शंखनाद भी हो रहा था। इसी दौरान रामपुर के किसानों में भी आजादी की भावना पैदा हुई। शाहबाद और मिलक के किसानों ने पटवाई के किसान नेता झंडू ङ्क्षसह और असालतपुरा के ठाकुरदास की अगुआई में आंदोलन किया। 1946 में दोनों तहसीलों के हजारों किसान पनबडिय़ा में जमा हुए और जुलूस के साथ नवाब को ज्ञापन देने के लिए कोठी खासबाग की तरफ चल पड़े। पुलिस ने किसानों को रोक लिया, लेकिन किसान रुकने को तैयार नहीं थे। इसपर फोर्स ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करना शुरू कर दिया। किसानों ने भी ईंट पत्थरों से पुलिस पर हमला किया। किसानों ने एक सिपाही को अपने कब्जे में ले लिया। इसपर पुलिस ने सिपाही को किसानों के कब्जे से छुड़ाने के लिए गोली चला दी, इसमें एक किसान मारा गया और कई घायल हुए। शौकत अली खां बताते हैं कि इस हादसे पर नवाब रजा अली खान ने खेद प्रकट करते हुए कहा था कि हमें यह मालूम होकर बहुत अफसोस हुआ कि किसानों ने गलत बातें की, जिसके परिणाम स्वरूप एक गरीब किसान की जान गई। हमारी तमाम प्रजा को इस बात का बखूबी एहसास है कि हमें किसानों का हित कितना प्रिय है। हमारी हमेशा कोशिश रही है कि उनकी कठिनाइयों को अच्छी तरह समझा और उनका निस्तारण किया जाए। किसानों का यह आंदोलन रामपुर में धर्मनिरपेक्ष राजनीति का जनक रहा।
कद्दू को लेकर भी हुआ था खूनखराबा
रामपुर का इतिहास लिखने वाले शौकत अली खां बताते हैं कि नवाबी दौर में कद्दू को लेकर भी बड़ा बवाल हुआ था। कद्दू खरीदने को लेकर मुरादाबाद और रामपुर के लोगों में संघर्ष हुआ। पहले मूढ़ापांडेय क्षेत्र के व्यक्ति से रामपुर के एक पठान का झगड़ा हुआ, जिसने बाद में बड़ी लड़ाई का रूप ले लिया। करीब चालीस लोग मारे गए थे। बाद में समझौता होने पर ही मामला शांत हुआ था।
नवाब रेलवे स्टेशन और किले का होगा संरक्षण
नवाबी दौर की ऐतिहासिक इमारतों को सहेजने की कवायद शुरू हो गई है। यह कोशिश कामयाब रही तो भविष्य में ये इमारतें दोबारा चमाचम होंगी और अपने मूल रूप में नजर आएंगी। इसकी शुरुआत नवाब स्टेशन और किले से की जा रही है। नवाब स्टेशन के संरक्षण की जिम्मेदारी रेलवे को सौंपी जा रही है। रामपुर में वर्ष 1774 से 1949 तक नवाबों का राज हुआ करता था। रजा अली खां रामपुर के आखिरी नवाब थे। नवाबी दौर भले ही खत्म हो चुका है, लेकिन उस दौर में बनी ऐतिहासिक इमारतें आज भी बुलंदी से खड़ी हैं। हालांकि देखरेख के अभाव में कई इमारते खंडहर हो गई हैं। ऐसी ही एक इमारत रेलवे स्टेशन के पास है। इसे नवाब स्टेशन के नाम से जाना जाता है। रामपुर के नौवें नवाब हामिद अली खां के दौर में जब जिले से रेलवे लाइन गुजरी तो उन्होंने रेलवे स्टेशन के करीब ही अपने लिए अलग स्टेशन बनवाया था। दिल्ली या लखनऊ जाते समय नवाब परिवार अपने महल से सीधे नवाब स्टेशन जाते और यहां से अपनी बोगियों में बैठ जाते। रामपुर स्टेशन पर ट्रेन आने पर नवाबों की बोगियां उसमें जोड़ दी जाती थीं। नवाबी दौर खत्म होने पर इन परिवारों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हो गया। मामला कोर्ट में चला गया, जिसके बाद नवाब स्टेशन की देखभाल नहीं हो सकी। इससे नवाब स्टेशन खंडहर बन गया। यहां कभी शाही अंदाज में सजी रहने वाली बोगियों में जंक लग चुकी है। बोगियों के सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद कर दिए हैं। बोगी के दरवाजों पर ताले जड़े हुए हैं। नवाब स्टेशन का इस्तेमाल अब साइकिल स्टैंड के रूप में किया जा रहा है। जिलाधिकारी आन्जनेय कुमार ङ्क्षसह ने बताया कि नवाब रेलवे स्टेशन के संरक्षण के लिए रेलवे को लिखा जा रहा है, जबकि किले के संरक्षण के लिए रजा लाइब्रेरी बोर्ड से मदद ली जाएगी। लाइब्रेरी भी किले के अंदर है।