खेल के नहीं मैदान, बच्चे हो रहे परेशान
रामपुर : गांवों में खेल के मैदान न होने से बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। वा
रामपुर : गांवों में खेल के मैदान न होने से बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। वॉलीबाल खेल प्रेमियों ने सड़क को ही खेल का मैदान बना लिया। यहीं पर खेल कर युवा अपना शौक पूरा कर रहे हैं।
भागमभाग भरी ¨जदगी में इंसान के पास खेलने के लिए समय निकाल पाना मुश्किल हो गया है। इन व्यस्तताओं के बीच थोड़ा बहुत समय निकाल भी लिया जाए तो खेल के लिए जगह नहीं मिल पाती है। मैदान न होने से बच्चे मोबाइल में ही गेम खेलने लगते हैं। इससे वे तरह-तरह की बीमारियों में घिरने लगते हैं। युवाओं की मांग है कि कम से संकुल स्तर खेल का मैदान होना चाहिए, जिससे ग्रामीण स्तर पर खेलों को बढ़ावा मिल सके।
ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन संसाधनों के अभाव में ग्रामीण प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं, जबकि कई खिलाड़ी इसी परिवेश में खेलकर राष्ट्रीय स्तर पहुंचे हैं। बागपत की मेघना और नीलम इन्हीं झोंपड़-पट्टियों में खेल-कूद कर राष्ट्रीय स्तर की रेसलर बनकर उभरी हैं।
खेल इंसान की जन्मजात प्रवृति है। बच्चा जन्म के कुछ महीने बाद से ही माता-पिता के साथ खेलने लगता है। बड़ा होने पर अपने भाई-बहनों के अलावा मित्रों के साथ खेलने को आतुर रहता है। इसके बाद खिलौने उसके साथी बन जाते हैं। कबड्डी, कुश्ती, लुका-छुपी, गुल्ली-डंडा, दौड़, लंबी कूद, ऊंची कूद, वॉलीबाल और कुश्ती की इज्जत से कौन वाकिफ नहीं है। क्रिकेट में तो जैसे बच्चों की जान बसी है। गांव व शहर के गली मुहल्ले में बच्चे क्रिकेट का बल्ला थामे नजर आते हैं। बच्चे हो या बड़े, खेल सभी को पसंद हैं, लेकिन बढ़ती आबादी के चलते गांव के खेत-खलियान सिमट कर छोटे हो गए हैं। ग्राम समाज और खलियान की भूमि पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जे कर लिए, जो स्थान बचे हैं तो उनका ग्रामीण कूड़ा डालने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। इससे बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं बचे हैं। अब ऐसे में बच्चे खेलें तो कहां? स्कूल कॉलेजों में भी खेल के मैदानों का टोटा है। खेल के मैदान नहीं होने से ग्रामीण खेल प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं, जबकि कई खिलाड़ी इन्हीं ग्रामीण परिवेश में खेल कर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे हैं। बागपत की दो सगी बहनें नीलम और मेघना भी इन्हीं मैदानों से खेलते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में सफल हुई हैं। उनकी सफलता की कहानी इन्हीं गली-मुहल्लों से शुरु होकर राष्ट्रीय स्तर लोहा मनवा रही है।
स्वार और सैदनगर ब्लाक में एक भी खेल का मैदान नहीं है। इसके चलते खेल प्रेमियों को मायूस होना पड़ता है। खेमपुर, खौद, समोदिया, रसूलपुर, फरीदपुर, सोनकपुर, लखीमपुर, नानकार रानी, नरपत नगर, शिकारपुर, स्वार नगर आदि में बहुत बड़ी तादाद में वॉलीबाल समेत कई खेलों के प्रेमी हैं। खेल के मैदान न होने के बावजूद भी जहां-तहां खेलते नजर आते हैं। खेमपुर रसूलपुर के युवाओं ने तो सड़क को ही खेल का मैदान बना लिया है। हर रोज दोपहर बाद रामपुर-स्वार मार्ग पर वॉलीबाल प्रेमी सड़क पर खेल रहे हैं। खेल प्रेमियों ने प्रशासन से गांव स्तर न सही संकुल या फिर ब्लाक स्तर पर कम से कम एक खेल का मैदान बनाने की मांग की है।
उप जिला अधिकारी लालता प्रसाद शाक्य का कहना है कि भूमि तलाश कराई जाएगी, जिससे क्षेत्र में स्पोर्ट स्टेडियम बनवाया जा सके।
खेल सभी के लिए जरूरी हैं। शहर में तो स्टेडियम हैं, लेकिन गांवों में खेल के मैदान नहीं होने से ग्रामीण प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पाती हैं।
तारिक मोहम्मद गांव खेमपुर इमरती खेल के मैदान न होने से खिलाड़ी मायूस हैं। अभ्यास के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिससे समय और धन दोनों की बर्बादी होती है। कई तो संसाधनों के अभाव में आगे नहीं जा पाते।
शाहनवाज, समोदिया (वर्ष 2017 में क्रिकेट के जोनल प्लेयर) गांव खेल का मैदान न होने से हर साल गणतंत्र दिवस पर होने वाली तीन दिवसीय कुश्ती प्रतियोगिता खेत में ही कराना पड़ती है। इसमें दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड समेत कई राज्यों के खिलाड़ी भाग लेते हैं।
मुंसफ अली प्रधान, धनपुर-शाहदरा
गांव स्तर पर न सही कम से कम संकुल स्तर पर प्रशासन को एक स्पोर्ट स्टेडियम बनाना चाहिए, जिससे ग्रामीण खेल प्रतिभाएं आगे बढ़ सकें।
डॉ. इफ्तेखार अली, गांव रसूलपुर
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