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    Sharadiya Navratri : शारदीय नवरात्र में कैसे करें कलश स्थापना, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

    Updated: Sun, 21 Sep 2025 06:12 PM (IST)

    शारदीय नवरात्र 22 सितंबर से शुरू हो रहे हैं जिसमें माता दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी जो सुख-समृद्धि का प्रतीक है। कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त सुबह 603 से 822 बजे और 1040 से 1256 बजे तक हैं। कलश में हल्दी सुपारी और अन्य सामग्री डालकर स्थापित करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। माता की पूजा विधिपूर्वक करें और आरती के साथ समापन करें।

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    शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त। जागरण

    संवाद सहयोगी, रामपुर । कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त अश्विन मास की प्रतिपदा 22 सितंबर को है। इसी दिन से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं। तृतीया तिथि बढ़ जाने के कारण एक अक्तूबर को नवरात्र पूर्ण होंगे। शारदीय नवरात्र सोमवार से शुरू हो रहे हैं। इस बार मां जगत जननी दुर्गाजी का आगमन हाथी पर होगा।

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    तृतीया तिथि बढ़ जाने के कारण एक अक्तूबर को नवरात्र पूर्ण होंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार हाथी पर मां का आगमन शुभ माना जाता है। नवरात्र में जो भक्त सच्चे मन से पूजा करते हैं माता उनकी झोली खुशियों से भर देती हैं।

    कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त रामपुर

    ज्योतिषाचार्य पंडित नवनीत शर्मा ने बताया कि हाथी पर मां के आगमन से देश और जन समुदाय में सुख-समृद्धि, वैभव एवं यश की प्राप्ति होगी। माता रानी सभी को ऐश्वर्य, विजय एवं संपन्नता प्रदान करेंगी। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:03 से लेकर 8:22 बजे तक और 10:40 से लेकर दोपहर 12:56 बजे तक अति शुभ रहेगा। इस बार गज पर आगमन होने से माता धन-धान्य की वृद्धि, कृषि कार्य में बढ़ोतरी, अच्छी वर्षा, सुख-समृद्धि एवं विजय प्रदान करेंगी।

    देवी पूजन से पहले घट स्थापना जरूरी रामपुर

    जिला ब्राह्मण महासभा के जिलाध्यक्ष पंडित संजय शर्मा ने बताया कि जब भी सोमवार से नवरात्र शुरू होते है तो माता रानी हाथी पर सवार होकर आती हैं जो बहुत शुभ और फलदायी माने जाते हैं। हिंदू पुराणों में मान्यता है कि कलश को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है इसलिए देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन किया जाता है।

    इस तरह करें कलश स्थापना

    नवरात्र में घट स्थापना का बड़ा महत्व है। कलश में हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर जौ बोए जाते हैं। इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती व दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले पूजा स्थान की गंगाजल से शुद्धि करें।

    अब हल्दी से अष्टदल बना लें। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं। अब एक मिट्टी या तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें। अब इस लोटे में साफ पानी भरकर उसमें कुछ बूंदे गंगाजल की मिलाएं। अब इस कलश के पानी में सिक्का, हल्दी, सुपारी, अक्षत, पान, फूल और इलायची डालें। फिर पांच प्रकार के पत्ते रखें और कलश को ढक दें। इसके बाद लाल चुनरी में नारियल लपेट कलश के ऊपर रख दें।

    क्या है पूरी विधि?

    - सुबह उठकर स्नान करें और मंदिर साफ करें।

    - दुर्गा माता का गंगाजल से अभिषेक करें।

    - मैया को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी और लाल पुष्प अर्पित करें।

    - सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक कर फल, फूल और तिलक लगाएं।

    - कलश स्थापित करें।

    - प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।

    - घर के मंदिर में धूपबत्ती और घी का दीपक जलाएं।

    - दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

    - पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रख माता की आरती करें।

    - अंत में क्षमा प्रार्थना करें।